रामायण-महाभारत पर खोज करनेवाले प्रा. लाल !
ब्रज बसीलाल अर्थात पुरातत्वशास्त्रज्ञ और लेखक प्रा. बी.बी. लाल का जब निधन इसी महीने १० सितंबर २०२२ को हुआ, तब वे १०१ वर्ष के थे । उनका नाम श्रीरामजन्मभूमि अभियोग से जुडने पर अनेक लोगों को उनके विषय में जानकारी हुई । प्रा. लाल ने बाबरी ढांचा के दक्षिणी भाग में उत्खनन कर मंदिर का स्तंभ मिलने का प्रमाण दिया । उन्होंने बाबरी ढांचा के पास स्तंभ मिलने के विषय में ७ पृष्ठों का प्राथमिक प्रतिवेदन तैयार किया था । यह प्रतिवेदन इसके पहले कहीं भी प्रस्तुत नहीं किया गया था । श्रीरामजन्मभूमि अभियोग के समय बाबरी ढांचा के नीचे मंदिर का स्तंभ मिलना, यह एक मुख्य प्रमाण के रूप में न्यायालय में प्रस्तुत किया गया था । ‘न्यायालय ने उसे ग्राह्य मानकर ही बाबरी के स्थान पर मंदिर था’, यह निर्णय श्रीराममंदिर के पक्ष में दिया था । परिणामस्वररूप, अब श्रीराममंदिर निर्माण का कार्य पूरी गति से चल रहा है । श्रीरामजन्मभूमि हिन्दुओं को पुन: मिलने में प्रा. लाल का योगदान बडा है ।
बाबरी ढांचा के नीचे मंदिर होने के विषय में बताना
प्रा. लाल का जन्म वर्ष १९२१ में हुआ । संस्कृत विषय में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात उनका झुकाव पुरातत्व विभाग की ओर बढने लगा । वहीं कार्य करते समय वर्ष १९६८ से वर्ष १९७२ के मध्य वे भारतीय पुरातत्व विभाग के महासंचालक बने और अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि स्थान का उत्खनन करनेवाले दल का नेतृत्व किया । प्रा. लाल के प्रयास से बाबरी ढांचा के नीचे मंदिर के खंभे (स्तंभ) मिलने पर, प्रशासन ने यह उत्खनन कार्य रोक दिया । उसी प्रकार, वहांसे तांत्रिक सुविधाएं भी हटा दी गईं । प्रा. लाल के बार-बार प्रयास करने पर भी, वहां पुन: उत्खनन आरंभ नहीं किया गया । उनके ‘बाबरी के नीचे मंदिर है’, यह दावा करने पर, अनेक साम्यवादी इतिहासकारों ने उनपर आलोचनाओं की बौछार कर दी । प्रा. लाल के कथनानुसार, उत्खनन में मंदिर के खंभों के समान खंभे मिले हैं, जिनका उपयोग बाबरी ढांचे की नींव में किया गया है । हिन्दुओं का गौरवशाली इतिहास सामने न आए, इसके लिए उनका विरोध किया गया; तब भी, उन्होंने एक व्रती कर्मयोगी के समान शोधकार्य जारी रखा । उनके शोध का लाभ अगली पीढी को अवश्य होगा !
प्रा. लाल के नेतृत्व में अयोध्या, नंदीग्राम, श्रुंगवेरपुर, भारद्वाज आश्रम और चित्रकूट, इन रामायणकालीन स्थानों पर उत्खनन करने पर वहां भारत की प्राचीन धरोहर, गौरवशाली इतिहास जिन्हें साम्यवादी इतिहासकारों ने संसार के सामने नहीं आने दिया था, वे पुन: सामने आए । उनकी लिखी पुस्तकें, ‘राम, उनकी ऐतिहासिकता, मंदिर और सेतु साहित्य, पुरातत्व और अन्य विज्ञान’ के कारण श्रीराममंदिर के अभियोग में बहस की दिशा ही पूर्णत: बदल गई । हडप्पा संस्कृति से श्रीरामजन्मभूमि तक के शोध में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है । साम्यवादियों द्वारा जानबूझकर प्रस्तुत किया गया झूठा सिद्धांत, ‘आर्य भारत में बाहर से आए हैं, द्रविड भारत के मूलनिवासी हैं’, को असत्य सिद्ध करने में प्रा. लाल का योगदान बहुत बडा है । उनके इस कार्य के कारण उन्हें साम्यवादियों के तीव्र रोष का सामना करना पडा । परंतु, इस विरोध से अप्रभावित रहकर प्रा. लाल ने उत्खनन, शोध और शोधपत्र तैयार करने का कार्य जारी रखा ।
महाभारत का अचूक स्थान
उनके अन्य उत्खनन कार्यों में हस्तिनापुर (उत्तरप्रदेश), शिशुपालगढ (ओडिशा), पुराना किला (देहली), कालीबंगन (राजस्थान) का भी समावेश है । उन्होंने महाभारत के विषय में भी उत्खनन किया है । प्रा. लाल कहते हैं, ‘महाभारत में बताया गया स्थान अत्यंत अचूक है ।’ ऐतिहासिक दृष्टि से उन्हें खोजने का प्रयत्न उन्होंने अनेक बार किया था । प्रा. लाल का मानना था कि यमुना के प्रवाहपरिवर्तन के कारण प्राचीन काल में पांडवों ने अपनी राजधानी बदली थी । उनके गहन शोध करने पर उन्हें इससे संबंधित एक श्लोक महाभारत में मिला । तब, उन्होंने उस आधार पर उत्खनन कर सिद्ध किया कि महाभारतकाल में आई अनेक भीषण बाढों के कारण और यमुना का प्रवाह परिवर्तित होने के कारण पांडवों को अपनी राजधानी दूसरी ओर स्थानांतरित करनी पडी । प्रा. लाल ने पुरातत्व विभाग में काम करते समय अपने शोध पर आधारित १५० से अधिक शोधपत्र (रिसर्च पेपर) तथा ५० से अधिक पुस्तकें लिखी हैं । आयु के सौवें वर्ष में भी उन्होंने लेखन और वाचन आरंभ रखा था । उनकी, ‘ऋग्वेदीय जनता’, इस विषय पर एक पुस्तक कुछ ही दिनों में प्रकाशित होनेवाली थी । उन्हें लेखन का व्यासंग था । पुरातत्वीय शोध में योगदान के कारण उन्हें वर्ष २००० में ‘पद्मभूषण’ तथा ९ नवंबर २०२१ को देश का दूसरा सर्वाेच्च सम्मान ‘पद्मविभूषण’ देकर सम्मानित किया गया था ।
प्रा. लाल का संदेश
अनेक प्राचीन मंदिर, गढ, दुर्गों की दुरवस्था देखकर ‘भारतीय पुरातत्व विभाग क्या कार्य करता है ?’, यह प्रश्न सर्वसामान्य जनता के मन में उठता है । ऐसी स्थिति में प्रा. लाल का कार्य दैदिप्यमान लगता है । उन्होंने इस क्षेत्र में ४ दशक कार्य कर, अनेक उदीयमान पुरातत्वविदों को दिशा दी है । प्रा. लाल ने नए पुरातत्वविदों को संदेश दिया है, ‘आपको क्या साध्य करना है,’ यह पहले निश्चित करें, फिर अध्ययन करें और पश्चात ही उत्खनन कार्य आरंभ करें । उसका परिणाम शीघ्रातिशीघ्र प्रकाशित करें । कान और आंख खुले रखें ।’ यदि आज के पुरातत्वविद प्रा. लाल का यह संदेश आचरण में लाएंगे, तो जो दुरवस्था पुरातत्व विभाग की तथा प्राचीन स्थलों की हुई है, वैसी कभी नहीं होगी तथा विश्व को भारत के सनातनी गौरवशाली धरोहर, प्रगल्भ हिन्दू संस्कृति के दर्शन हो सकेंगे ।