‘हाई प्रोफाइल’ (उच्चवर्गियों के) प्रकरण एवं उनके अन्वेषण की दिशा !
‘कानून सभी के लिए समान है’, यह किसी भी आदर्श राज्यप्रणाली की महत्त्वपूर्ण पहचान है; परंतु कटु एवं सार्वकालिक सत्य यह है कि न्यायदान इस पर होता है कि पीडित अथवा आरोपी कौन है । प्रस्तुत लेख में मुंबई के विशेष सरकारी अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर ने उच्चवर्गियों से संबंधित न्यायालयीन प्रकरण में उन्हें मिल रहा महत्त्व एवं उससे उनके अन्वेषण पर किस प्रकार परिणाम होता है एवं उसके लिए कारणभूत घटकों पर प्रकाश डाला है ।
१. उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के निकट गाडी में पाए गए जिलेटिन एवं उस संबंध से मनसुख हिरेन की मृत्यु का प्रकरण चर्चा में आना एवं वह ‘हाई प्रोफाइल’ (उच्चवर्गीय) के रूप में उसकी गणना होना
‘२६ फरवरी २०२१ को उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के नीचे खडी स्कॉर्पियो गाडी में जिलेटिन पाए गए । ‘इस घटना का दायित्व ‘जैश-उल्-हिंद’ नामक संगठन ने स्वीकारा है’, ऐसा पुलिस ने बताया था; परंतु इस संगठन ने पत्रक निकालकर स्पष्ट किया है कि यह गलत है । तदुपरांत अन्वेषण में यह पता चला कि गाडी का मालिक मनसुख हिरेन है । इस प्रकरण में पुलिस की पूछताछ प्रारंभ होने पर अर्थात ५ मार्च को कळवा खाडी में हिरेन की मृतदेह मिली । तब से संपूर्ण राज्य में यह चर्चा का विषय बन गया है । सत्ताधारी दल, विरोधी दल एवं उसके सहकारी विविध दावे-प्रतिदावे कर रहे हैं । इस प्रकरण में अब ‘एटीएस’ (आतंकवाद विरोधी पथक) एवं ‘एनआइए’ (राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण) अन्वेषण कर रही है । जिसके घर के बाहर यह गाडी मिली, वह अंबानी परिवार कोई सामान्य नहीं । मुकेश अंबानी का व्यवसाय कितना बडा है, यह बताने की आवश्यकता नहीं । इसके साथ ही पुलिस अधिकारी सचिन वाझे का भी नाम इस प्रकरण में सामने आया है । सचिन वाझे द्वारा किए एनकाउंटर, ख्वाजा युनूस प्रकरण में आया उसका नाम, एक राजनीतिक दल में कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने किया प्रवेश एवं अनेक वर्ष नौकरी करते हुए उन्हें मिले पद, इसके साथ ही अंबानी, जिलेटिन, आतंकवाद विरोधी पथक, इन सभी के कारण मनसुख हिरेन की मृत्यु के प्रकरण की गणना एक ‘हाई प्रोफाईल’ (उच्चवर्गियों के) प्रकरण में हो रही है ।
२. ‘हाई प्रोफाइल’ (उच्चवर्गियों के) प्रकरण में प्रत्येक का अपना ‘एजेंडा’ (कार्यसूची) लेकर स्वार्थ साधने का प्रयत्न करना
अब तक का इतिहास है कि जिस समय आरोपी अथवा पीडित व्यक्ति आर्थिक दृष्टि से सक्षम, इसके साथ ही राजनेता, फिल्म जगत अथवा धर्मगुरु के संदर्भ में होता है, तो उस प्रकरण की गणना अपनेआप ‘हाई प्रोफाइल’ में होती है । ऐसे प्रकरण के विषय में प्रत्येक जन अपना-अपना अलग ‘एजेंडा’ लेकर उस प्रकरण के अन्वेषण पर प्रभाव डालकर अपनी रोटी सेंकने का प्रयत्न करता है । अपना हित साध्य करनेवाले व्यक्ति सामान्य न होने से अपनेआप ही उस प्रकरण का परिणाम अन्वेषण एवं अन्वेषण अधिकारियों पर होता है । अनेक बार अन्वेषण अधिकारी उचित दिशा में अन्वेषण करते हुए भी दबाव के कारण उन्हें अन्वेषण की दिशा बदलकर गलत दिशा में जाना पडता है ।
३. ‘हाई प्रोफाइल’ प्रकरणों में प्रसारमाध्यमों द्वारा बारंबार आनेवाले समाचार एवं भेंटवार्ताओं के कारण अन्वेषण पर गलत परिणाम होना
ऐसे प्रकरणों के अन्वेषण के विषय में प्रत्येक क्षण क्या-क्या हो रहा है, इस विषय में सभी जानने के इच्छुक रहते हैं । वर्तमान के इस ‘डिजिटल’ युग में यह समाचार तुरंत हम तक पहुंचता है । अपराध करने के उपरांत के प्रारंभ के कुछ दिन प्रमाण जुटाने एवं प्रमाण नष्ट करने की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं । प्रसारमाध्यमों में बारंबार आनेवाले ऐसे समाचार एवं विविध भेंटवार्ताओं (मुलाकातों) के कारण अपराधी के सतर्क हो जाने एवं प्रमाण नष्ट करने की संभावना
होती है ।
मनसुख हिरेन हत्या प्रकरण में पुलिस को अब तक प्रत्यक्षदर्शी साक्षीदार नहीं मिला है । इसलिए यह प्रकरण परिस्थितिजन्य प्रमाणों पर आधारित प्रकरण होनेवाला है । मृत्यु से पहले वे कहां-कहां गए थे, उन्होंने किस-किससे दूरभाष, संदेश, ‘वॉट्सएप’ द्वारा संपर्क किया था ? उन्हें किस-किस ने संपर्क किया था ? घर से निकलने पर जहां वह मृतदेह पाई गई और उस मार्ग में किस स्थान पर ‘सीसीटीवी’ हैं ? उनका चल-दूरभाष संच बंद कर दिया गया, उस समय वे किस ‘लोकेशन’ में थे ? उन्हें अंत में किसके साथ देखा गया ? उनके शरीर पर कहां-कहां घाव थे ? उनके शरीर से कुछ चोरी हुआ है क्या ? ऐसे विविध बिन्दुओं को एकत्र कर पुलिस को घटनाक्रम की शृंखला पूर्ण कर दिखानी होगी । तब ही वे अपराधी को पकडकर प्रकरण को दोष सिद्ध होने तक लेकर जा सकते हैं । अनेक ‘हाई प्रोफाइल’ प्रकरणों में हमने देखा है कि आरंभ में बहुत होहल्ला होता है; परंतु कालांतर में आरोपी निर्दाेष छूट जाते हैं । उन प्रकरणों के अन्वेषण के समय जो वक्तव्य प्रभावी लोगों ने किए थे, वे पूरी तरह से गलत सिद्ध होते हैं । जैसा कि हमें ज्ञात है कि कुछ बडे प्रकरणों में विविध जांच एजेंसियां विविध निष्कर्ष तक पहुंची थीं । उदाहरणार्थ, मालेगांव विस्फोट प्रकरण में एक जांच एजेंसियों का कहना था कि यह अपराध हिन्दू आरोपियों ने किया, तो दूसरी जांच एजेंसियों का कहना था कि यह अपराध मुसलमान आरोपी ने किया है । इस प्रकरण में १० वर्षाें में सत्र न्यायालय ने ९ मुसलमान आरोपियों को मुक्त किया ।
४. असफलता को ढकने के लिए एवं मानहानि टालने के लिए जांच एजेंसियों द्वारा प्रकरण खींचना
अनेक बडे-बडे अपराधों में पुलिस का दिशाभ्रम होने से एक ही हत्या प्रकरण में २-३ दोषारोप पत्र भी प्रस्तुत किए गए हैं, जबकि प्रत्यक्ष में उनमें कोई भी तालमेल नहीं था । ऐसे समय पर स्वयं की असफलता सामने न आए एवं मानहानि न हो, इसके लिए अब जांच एजेंसियों के पास एक ही मार्ग शेष रह जाता है, वह है प्रकरण न चलाकर विविध कारणों से उसे खींचते रहना एवं आरोपियों को कारागृह में सडाना । इसमें आरोपी ही नहीं, अपितु उसके पूरे परिवार को जटिल समस्याओं का सामना करना पडता है । मनसुख हिरेन प्रकरण में अन्वेषण पूर्ण होने में जितनी देर लगेगी, उतना ही वह प्रकरण कमजोर हो जाएगा । इस प्रकरण में राजनेता द्वारा अपनी रोटियां सेंकने के स्थान पर हिरेन कुटुंबियों को न्याय दिलवाना आवश्यक है ।
परिस्थितिजन्य प्रमाणों के विषय में समय-समय पर सर्वाेच्च न्यायालय एवं अन्य उच्च न्यायालय ने ऐसा निर्देश दिया है कि प्रत्येक घटना की शृंखला पूर्ण होनी आवश्यक है । उनमें से एक भी कडी टूट जाए, तो दो निष्कर्ष सामने आ सकते हैं ओर उस समय जो निष्कर्ष आरोपी के हित में है, वह निष्कर्ष स्वीकार्य
हो । ऐसा कानून होने से आरोपी को उसका लाभ होता है और वह निर्दाेष छूट सकता है । इसलिए सभी संशयित एवं पीडित परिजनों की छानबीन कर तकनीकी प्रमाण एकत्र करना आवश्यक है । इस माध्यम से ही उचित निष्कर्ष तक जांच एजेंसियां पहुंच सकती हैं । यदि वास्तव में मनसुख हिरेन की हत्या हुई है और आरोपी को तुरंत पकडकर अभियोग चलाया गया, तो पुन: ऐसा करने का कोई विचार भी नहीं करेगा ।’
– अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर, विशेष सरकारी अधिवक्ता, मुंबई.