परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा साधकों को साधना के आरंभ में कुलदेवता की उपासना करने के लिए कहकर उनसे आदिशक्ति की उपासना करवा लेना !
‘सनातन संस्था के माध्यम से साधक जब साधना करने लगे, उस समय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने पहले साधकों को उनकी कुलदेवता की उपासना करने के लिए कहा और सभी साधकों से उनकी कुलदेवता का नामस्मरण करवा लिया । कुलदेवता की उपासना ही आदिशक्ति की उपासना है ! साधना की प्राथमिक अवस्था में गुरुदेवजी ने हम साधकों से ‘कुलदेवी की उपासना, नामस्मरण तथा कुलाचार पालन’, यह सब करवा लिया । देवी आदिशक्ति ने भी साधकों को भरपूर आशीर्वाद दिया । देवी ने ही साधकों की साधना के प्राथमिक स्तर की सभी बाधाएं दूर की । हम साधकों से आदिशक्ति की उपासना करवा लेनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में चाहे कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, अल्प ही है ।
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
– तन्त्रोक्त देवीसूक्त, श्लोक ६
अर्थ : सभी जीवों में जो ‘विष्णुमाया’ के रूप में जानी जाती है, उस देवी को हमारा त्रिवार नमस्कार है ।’
आज तक कई साधकों ने अनेक क्षात्रगीत लिखे हैं; परंतु गुरुदेवजी रचित एकमात्र क्षात्रगीत है – आदिशक्ति का स्तवन !
आदिशक्ति तू, अंतशक्ति तू ।
जगज्जननी तू, लयकारी तू ।
इन प्रथम २ पंक्तियों में गुरुदेवजी ने आदिशक्ति के स्वरूप का वर्णन किया है और शेष पंक्तियों में आदिशक्ति के कार्य की व्यापकता तथा उनकी महिमा का वर्णन किया है । गुरुदेवजी ने अनेक वर्षाें तक साधकों से विभिन्न कार्यक्रमों में यह शक्तिस्तवन गवाया भी है । अब गुरुदेवजी के कार्य के लिए अर्थात ही धर्मसंस्थापना हेतु आदिशक्ति का अवतरण हुआ है ।
‘हे आदिशक्ति, आप ही हमें शक्ति, बुद्धि, स्वास्थ्य, धैर्य, भक्ति प्रदान करें और इस आपातकाल से पार होने के लिए हमें अपना कवच प्रदान करें’, यह आपके चरणों में प्रार्थना है ।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
– श्रीदुर्गासप्तशती, अध्याय ५, श्लोक ३२
अर्थ : ‘जो देवी सभी प्राणिमात्रों में शक्तिरूप में विराजमान हैं, उस देवी को हमारा त्रिवार नमस्कार है ।’
१. प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों के पास सूक्ष्म से जान लेने की बडी शक्ति होना और उसके द्वारा उन्होंने उन्हें दिखाई दिए देवताओं का वर्णन किया जाना
‘दुर्गादेवी आदिशक्ति का सगुण रूप हैं ! लाखों वर्ष पूर्व आज की भांति ऋषि-मुनियों के पास किसी प्रकार के साधन नहीं थे; परंतु उनके पास सूक्ष्म से जानने की अगाध शक्ति थी । देवताओं का अस्तित्व तथा ईश्वरीय शक्ति के संकेत उनकी समझ में आते थे । ऋषि-मुनियों को प्रथम देवताओं का सगुण रूप होमाग्नि में दिखाई दिया । उसके कारण ही ऋषि-मुनियों ने उनके लेखन में देवताओं का अचूकता से वर्णन किया ।
२. सूक्ष्म का जानने की क्षमता रखनेवालीं सद्गुरु अनुराधा वाडेकरजी के सामने साक्षात दुर्गादेवी खडी होना और उनके द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में देवी का चित्र बनाया जाना
कलियुग में विज्ञानयुग का आरंभ हुआ और विभिन्न साधन उपलब्ध हुए । देवताओं का रूप चित्र रूप में साकार करने का साधन उपलब्ध हुआ । ऐसे समय में प.पू. गुरुदेवजी की (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की) कृपा से सनातन संस्था को सद्गुरु अनुराधा वाडेकरजी मिलीं । उन्होंने चित्रकला की शिक्षा ली थी । आगे जाकर उनमें गुरुकृपा से सूक्ष्म से जानने की क्षमता उत्पन्न हुई । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से तथा सद्गुरु अनुराधा वाडेकरजी में विद्यमान भाव के कारण साक्षात दुर्गादेवी सूक्ष्म से उनके सामने खडी रहीं । देवी ने ही सद्गुरु अनुराधा वाडेकरजी के द्वारा उनका चित्र तैयार करवा लिया । आगे जाकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में उन्होंने वह चित्र पूर्ण किया ।
संप्रति कलियुग में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से तथा सद्गुरु अनुराधा वाडेकरजी के प्रयासों से मनुष्यजाति को आदिशक्ति का अर्थात ही दुर्गादेवी का सगुण रूप चित्र रूप में प्राप्त हुआ है । इसके लिए संपूर्ण मानवजाति परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं सद्गुरु अनुराधा वाडेकरजी के प्रति सदैव कृतज्ञ रहेगी !
या देवी सर्वभूतेषु छायारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
– श्रीदुर्गासप्तशती
अर्थ : ‘जो देवी सभी प्राणिमात्रों में छायारूप में विराजमान है, उस देवी को मेरा त्रिवार नमस्कार है ।’
१. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा के कारण सनातन के कुछ साधकों को सूक्ष्म से उच्च लोकों का ज्ञान प्राप्त होना
‘गुरुदेवजी ने साधकों को ज्ञानदायिनी आदिशक्ति का ज्ञानरूपी आशीर्वाद प्राप्त करवा दिया है । उसके कारण पृथ्वी के सामान्य साधकों को ब्रह्मांड के विभिन्न लोकों का ज्ञान प्राप्त हो रहा है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से विगत अनेक वर्षाें से सनातन के कुछ साधकों को ब्रह्मांड के उच्च लोकों का ज्ञान प्राप्त हो रहा है । ज्ञान का माध्यम चाहे कुछ भी हो; परंतु तब भी ज्ञान का मूल स्रोत ईश्वरीय है । केवल ज्ञानदायिनी आदिशक्ति के कारण ही सनातन के सामान्य साधकों को असामान्य ज्ञान मिल सकता है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से सनातन के साधकों को यह आशीर्वाद प्राप्त हुआ है ।
२. सनातन संस्था में ‘कविता की रचना करनेवाले, राष्ट्र एवं धर्म के विषय पर अध्ययनपूर्ण भाष्य करनेवाले अथवा साधना के विभिन्न पहलुओं पर लेखन करनेवाले अनेक साधन होना; क्योंकि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा उन्हें श्री सरस्वतीदेवी का कृपाशीर्वाद प्राप्त करवा दिया जाना
एक ओर सूक्ष्म का ज्ञान प्राप्त करनेवाले साधक, गुरुदेवजी की आज्ञा के अनुसार ग्रंथों का संकलन करनेवाले साधक, तो राष्ट्र एवं धर्म पर भाष्य करनेवाले धर्मपरायण (राष्ट्र एवं धर्म के संबंध में अध्ययनपूर्ण विवेचन करनेवाले) साधक और दूसरी ओर सनातन संस्था के बहुत ही अल्पायु से लेकर सभी आयुसमूहों के साधकों को श्री सरस्वती देवी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है । सनातन संस्था में ‘कविता की रचना करनेवाले, अनुभूतियों का लेखन करनेवाले और साधना के विभिन्न पहलुओं पर लेखन करनेवाले सहस्रों साधक तैयार हुए हैं । कालिदासजी को देवी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, तब उनसे दैवी लेखन हुआ; परंतु सनातन के सर्वसामान्य साधकों को बिना कुछ प्रयास से ही गुरुदेवजी ने देवी का आशीर्वाद प्राप्त करवा दिया है । ‘हमें ऐसे महान गुरु प्राप्त हुए’; इसके लिए हम गुरुदेवजी के चरणों में कृतज्ञ हैं ।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
– श्रीदुर्गासप्तशती, अध्याय ५, श्लोक २०
अर्थ : ‘जो देवी सभी प्राणिमात्रों में बुद्धिरूप में विराजमान हैं, उस देवी को हमारा त्रिवार नमस्कार है ।’
सनातन के साधक संख्या में अल्प होते हुए भी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से उनके द्वारा ‘धर्मरक्षा हेतु अनेक अभियान, न्यायालयीन लडाई और विभिन्न आंदोलन’ जैसी अनेक सफल लडाईयां लडी जाने के कारण उनमें विद्यमान तेज जागृत होना और यह आदिशक्ति की उपासना ही होना : ‘आदिशक्ति का अर्थ धैर्य, पराक्रम एवं विजय है ! सनातन के युवा साधक समाज के सर्वसाधारण लोगों की भांति सादगीपूर्ण हैं । सनातन संस्था में ‘बाहुबल, धन का बल अथवा राजनीतिक बल’ जैसा किसी प्रकार का बल नहीं है; परंतु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधकों में भावभक्तिरूपी बल तैयार किया है । इस भावभक्तिरूपी बल के कारण संख्या में कुछ सहस्र सनातन के साधकों ने धर्मरक्षा हेतु ‘सफल अभियान, आंदोलन, न्यायालयीन लडाइयां, मंदिर भ्रष्टाचार के विरुद्ध लडाईयां’ जैसी अनेक लडाईयां लडी हैं । इसके साथ ही सर्वसामान्य सनातन के साधकों ने परात्पर गुरुदेवजी की कृपा से धर्मजागृति हेतु असामान्य हिन्दू धर्मजागृति सभाओं में सहभाग लिया । परात्पर गुरुदेवजी ने अभियान, आंदोलन, धर्मसभाएं इत्यादि माध्यमों से साधकों में वीरत्व उत्पन्न किया है । गुरुदेवजी ने एक प्रकार से साधकों से आदिशक्ति की उपासना ही करवा ली है । जहां धैर्य होता है, वहां आदिशक्ति होती ही हैं !
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
– श्रीदुर्गासप्तशक्ति, अध्याय ५, श्लोक ३५
अर्थ : जो देवी सभी प्राणिमात्रों में तृष्णारूप में विराजमान हैं, उस देवी को मेरा त्रिवार नमस्कार है ।’
१. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा सनातन के आश्रम में संतों एवं सद्गुरुओं द्वारा ‘समष्टि कल्याण एवं हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’ हेतु देवी से संबंधित अनेक यज्ञ करवाकर साधकों के मन में देवी के प्रति भक्ति उत्पन्न करना
‘जब से सनातन संस्था की स्थापना हुई है । तब से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधकों से गुरुकृपायोग के अनुसार साधना करवा ली । गुरुदेवजी द्वारा बताई साधना करने से १३२० साधक जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो चुके हैं तथा ११४ साधक संत बन गए हैं । विगत ५-६ वर्षाें से गुरुदेवजी ने संतों एवं सद्गुरुओं से समष्टि कल्याण एवं हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए अनेक यज्ञ-याग करवा लिए हैं । विशेष बात यह कि अभीतक रामनाथी, गोवा के सनातन के आश्रम में देवी से संबंधित अनेक याग संपन्न हुए हैं । उनमें चंडियाग, राजमातंगी होम, बगलामुखी होम, चामुंडा होम, प्रत्यंगिरा होम प्रमुख हैं । गुरुदेवजी द्वारा ये सभी याग आश्रम में करवा लेने से साधकों के मन में देवी के प्रति भाव उत्पन्न हुआ और उन्हें देवी के प्रति प्रेम लगने लगा । संक्षेप में बताना हो, तो गुरुदेवजी ने इस माध्यम से साधकों से देवी की उपासना करवा ली ।
२. वर्ष २०१९ में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से कर्नाटक की श्री विद्याचौडेश्वरी देवी का रामनाथी आश्रम में आना और साधकों को आशीर्वाद देना
आज तक आश्रम में रहनेवाले और प्रसार में रत सहस्रों साधकों को देवी के विषय में अनुभूतियां हुई हैं और होमाग्नि में देवी के दर्शन हुए हैं । वर्ष २०१९ में गुरुदेवजी की कृपा से ही कर्नाटक की श्री विद्याचौडेश्वरी देवी रामनाथी आश्रम में पधारीं और उन्होंने साधकों को आशीर्वाद दिया । हम साधकों से अनेक पद्धतियों से आदिशक्ति की उपासना करवा लेनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, अल्प ही है ।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
– श्रीदुर्गासप्तशति, अध्याय ५, श्लोक ६५
अर्थ : जो देवी सभी प्राणिमात्रों में दयारूप में विराजमान हैं, उस देवी को मेरा त्रिवार नमस्कार !’
१. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने रामनाथी आश्रम में श्री भवानीदेवी की मूर्ति की स्थापना की !
‘प.पू. गुरुदेवजी ने (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने) हम साधकों से अनेक प्रकार से आदिशक्ति की उपासना करवा ली है तथा हम साधकों में आदिशक्ति के प्रति प्रेम एवं भक्ति उत्पन्न की है । ‘साधकों को आदिशक्ति की कृपा निरंतर मिलती रहे और साधक उनकी भक्ति कर सकें’; इसके लिए गुरुदेवजी ने रामनाथी आश्रम में श्री भवानीदेवी की मूर्ति स्थापित की । कोई भी मंदिर शाश्वत नहीं होता; परंतु उस स्थान पर स्थित दैवी ऊर्जा का स्रोत शाश्वत है । गुरुदेवजी के करकमलों से श्री भवानीदेवी की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा किए जाने के कारण उस मूर्ति में शक्तिपीठ के समान ऊर्जा उत्पन्न हुई है ।
२. आद्य शंकराचार्यजी द्वारा उल्लेख किए अनुसार देवी के १०८ शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ गोवा के कैवल्यपुरी (कवळे, गोवा) में है तथा उस मंदिर का सनातन के आश्रम के बहुत ही निकट होना
विशेष बात यह कि इस पृथ्वी पर आदिशक्ति के मात्र ५१ शक्तिपीठ नहीं हैं, अपितु उनकी संख्या बहुत है । आद्य शंकराचार्यजी द्वारा उल्लेखित देवी के १०८ शक्तिपीठों में से गोवा के कैवल्यपुरी में स्थित श्री शांतादुर्गा देवी का उल्लेख है । यह कैवल्यपुरी है आज का गोवा का कवळे गांव ! यहां प्रसिद्ध श्री शांतादुर्गा देवी का मंदिर है । उस मंदिर से बहुत ही निकट रामनाथी में सनातन संस्था का आश्रम है । आश्रम के प्रवेशद्वार के निकट श्री भवानीदेवी की मूर्ति की स्थापना की गई है । श्री शांतादुर्गादेवी की भांति श्री भवानीदेवी की दृष्टि भी उत्तर की ओर है । रामनाथी आश्रम में श्री भवानीदेवी की मूर्ति के माध्यम से साधकों के लिए आदिशक्ति का अखंड ऊर्जास्रोत लानेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में हम साधक कोटि-कोटि कृतज्ञ हैं ।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
अर्थ : सभी मंगल विषयों में विद्यमान मांगल्यस्वरूप, पवित्र एवं सभी मनोकामनाएं पूर्ण करनेवाली, सभी की शरणस्थान, त्रिनेत्रधारिणी तथा हे गौरवर्णी नारायणीदेवी (श्री दुर्गादेवी), मैं आपको नमस्कार करता हूं ।’
– श्री. विनायक शानभाग, बेंगळूरु, कर्नाटक. (२६.९.२०२१)