हिन्दू धर्म में छोटे बच्चों का श्राद्धकर्म न करने के कारण
१. छोटे बच्चे को किसी प्रकार की आसक्ति तथा उसके इस जन्म का लेन-देन न होने से ऐसे जीव का भुवलोक में न फंसना और उसके कारण हिन्दू धर्म में छोटे बच्चों का श्राद्धकर्म न किया जाना
साधिका : हिन्दू धर्म में छोटे बच्चों का श्राद्धकर्म क्यों नहीं किया जाता ?
सद्गुर (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी : ३ पीढीयोंतक ही श्राद्धकर्म किया जाता है । श्राद्धकर्म करने से पितृऋण चुकाया जाता है । यहां छोटे बच्चे वे होते हैं, जिनके दांत नहीं आए हों, साथ ही जिन में हड्डियां बनने की प्रक्रिया पूर्ण न हुई हो और उनकी मृत्यु हुई हो, तो उनका श्राद्ध नहीं किया जाता । ऐसे बच्चों का लेन-देन पूर्ण हो जानेपर वह ईहलोक से निकल जाता है । इतनी अल्प कालावधि के लिए जन्म लिए जीव में स्वदेह के प्रति कोई आसक्ति ही नहीं होती । आसक्ति और लेन-देन न होने से ऐसा जीव भुवलोक में नहीं फंसता और उसे अगली गति प्राप्त हो जाती है । इसलिए ऐसे छोटे बच्चों का श्राद्धकर्म नहीं किया जाता ।
– श्रीमती सानिका सिंह, वाराणसी (२२.४.२०१८)
२. छोटे बच्चों की (१० वर्ष आयुतक के बच्चों की) मृत्यु होने के संदर्भ में धर्मशास्त्र द्वारा की गई व्यवस्था !
छोटे बच्चों की मृत्यु के पश्चात उनके श्राद्धकर्म के समय पिंडदान के पश्चात उन्हें केवल मंत्रपूर्वक अन्न का नीवाला ही दिया जाता है, जिसे ‘प्रकीर’ कहा जाता है । इन जन्म में ऐसे छोटे जीव के मनपर किसी भी प्रकार के संस्कार न होने से ईश्वर द्वारा उस जीव के लिए यह व्यवस्था की गई है ।
– श्री. दामोदर वझेगुरुजी (सनातन के पुरोहित), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (३१.७.२०१८)
अनिष्ट शक्तियां : वातावरण में अच्छी और अनिष्ट शक्तियां दोनों कार्यरत होती हैं । अच्छी शक्तियां अच्छे कार्य में मनुष्य की सहायता करती हैं, तो अनिष्ट शक्तियां उसे कष्ट देती है । वेद-पुराणों में प्राचीन काल में ऋषिमुनियों द्वारा किए जानेवाले यज्ञकर्मों में राक्षसों द्वारा अनेक बाधाएं उत्पन्न किए जाने की अनेक कथाएं मिलती हैं । अथर्ववेद में अनेक स्थानोंपर अनिष्ट शक्तियां, उदा. वेदादि आध्यात्मिक ग्रंथों में असुर, राक्षस, पिशाच, साथ ही करणी और काले जादू के प्रतिबंध हेतु मंत्र दिए गए हैं, साथ ही अनिष्ट शक्तियों द्वारा दिए जानेवाले कष्टों के निवारण के लिए विविध आध्यात्मिक उपाय भी बताए गए हैं ।