श्री गणेश के भक्त-ऋषियों के संदर्भ का प्रसंग तथा श्री गणेश की लीला का आधारभूतशास्त्र !
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‘२.९.२०२१ को श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ द्वारा अत्यंत भावमय स्वर में श्रीगणेश के संदर्भ में आयोजित किया गया ‘ऑनलाईन’ भावसत्संग मैंने सुना । उस समय श्री गणेश की विशेषताएं तथा उनकी कृपा का महत्त्व मेरे मन पर अंकित हो गया । तत्पश्चात मुझे श्री गणेश के विविध भक्त-ऋषियों के संदर्भ में हुई घटनाओं का स्मरण हुआ । इसके साथ ही ईश्वर की कृपा से इन घटनाओं के पीछे का आध्यात्मिक कार्यकारणभाव भी समझ में आया । श्री गणेशजी की कृपा से उनके जीवन में आनेवाले ऋषियों के संदर्भ की घटनाएं तथा उससे सीखने मिले सूत्र यहां मैं लेखबद्ध कर इन शब्दसुमनों को श्रीगणेशजी के श्रीचरणों पर अर्पण कर रही हूं ।
२ अ २. भृशुंडी ऋषि ने श्री गणेशचतुर्थी का व्रत किया, इसलिए नरकयातना सहनेवाले उनके पितरों को सद्गति मिलना एवं प्राप्त होकर स्वर्ग में स्थान प्राप्त होना : एक बार नारदमुनि ने भृशुंडी ऋषि को बताया कि उसके माता-पिता, पत्नी, पुत्री तथा अन्य कुछ सगे-संबंधी ‘कुंभीपाक’ नामक नरक में नरकयातना भोग रहे हैं । इस नरकयातना से मुक्ति के उपायस्वरूप नारद मुनि ने भृशुंडी ऋषि को भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन व्रत करने के लिए बताया । तदनुसार भृशुंडी ऋषि ने यह व्रत अत्यंत भक्तिभाव से किया । इसके फलस्वरूप उनका परिवार नरकयातनाओं से मुक्त हुआ तथा विमान में बैठकर स्वर्गलोक गया । इतना महत्त्व है, भाद्रपद मास के श्री गणेश चतुर्थी के व्रत का ।
२ आ. प्रसंग द्वारा सीखने मिले कुछ सूत्र : ईश्वर की भक्तिभाव से आराधना करने से व्यक्ति में देवता का तत्त्व कार्यरत होकर उसे देवता स्वरूप रूप प्राप्त होता है । उसे ही आध्यात्मिक परिभाषा में ‘सरूप मुक्ति प्राप्त होना’, कहते हैं । साथ ही भृशुंडि ऋषि ने श्री गणेश की भक्तिभाव से मानसपूजा करने के कारण पूजा का प्रत्येक उपचार श्री गणेश तक प्रत्यक्ष पहुंचा । इससे ‘भक्तिभाव से मानसपूजा किस प्रकार करना’, यह सूत्र भी सीखने मिला । साथ ही यह भी सीखने मिला कि,‘श्री गणेशचतुर्थी का व्रत भक्तिभाव से करने से समस्त पाप नष्ट होकर सद्गति मिलती है ।’
३. कलियुग के गणेशभक्त संत मोरया गोसावीजी की महान गणेशभक्ति
३ अ. भृशुंडी ऋषि के अनुसार कलियुग में भी संत मोरया गोसावी के कुल में ७ पीढियों के वंशजों को श्री गणेश समान सूंड होना : भृशुंडी ऋषि के अनुसार कलियुग में भी सूंड प्राप्त होने की अद्भुत घटना घटी है । महाराष्ट्र के पुणे जिले के चिंचवड के महान संत मोरया गोसावी श्री गणेश के परमभक्त थे । उनकी भक्ति पर श्रीगणेश प्रसन्न हुए । अतः उन्हें वृद्धावस्था में ‘चिंतामणी’ नामक बालक की प्राप्ति हुई । ‘चिंतामणी’के रूप में प्रत्यक्ष श्री गणेश ने ही उनके पेट में जन्म लिया । साथ ही ‘संत मोरया गोसावी के वंश की आगे की सात पीढियां श्री गणेश की परमभक्त होने के साथ-साथ श्री गणेश समान सूंडधारी भी होंगे’, यह आशीर्वाद भी श्री गणेश ने संत मोरया गोसावी को दिया । तदनुसार संत मोरया गोसावी के वंश की सात पिढीयां श्री गणेश के परमभक्त हुई तथा उन्हें गणेश के अनुसार सूंड थी । चिंचवड में पवना नदी के किनारे पर संत मोरया गोसावी की समाधी एवं ‘मंगलमूर्ति’ श्री गणेश का मंदिर है । इस मंदिर के आसपास संत मोरया गोसावी के सात पिढीयाें के वंशजों की भी समाधी हैं । इन सात वंशजों को श्रीगणेश के अनुसार सूंड थी तथा उनके नाम भी श्री गणेश के ही थे । इससे यह ध्यान में आता है कि, ‘सत्ययुग के भृशुंडी ऋषि के अनुसार श्रीगणेश की निस्सीम भक्ति कर कलियुग में भी ‘सरूप मुक्ति’ प्राप्त करनेवाले श्री गणेश के महान भक्त इस भारतभूमि में हुए हैं ।’ उसके लिए श्री गणेश तथा उनके महान भक्त संत मोरया गोसावी के चरणाें पर कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें, वह अल्प ही है ।
३ आ. प्रसंग से सीखने मिले सूत्र : कुछ लोगों को यह प्रतीत होता है कि प्राचीन युगों में ही दैवीय चमत्कार होते थे; किंतु संत मोरया गोसावी के उदाहरण से अब ध्यान में आता है कि यदि कलियुग में भी ईश्वर की निस्सीम भक्ति की, तो कलियुग में भी व्यक्ति को देवता का स्वरूप प्राप्त हो सकता है । इससे यह सूत्र ध्यान में आता है कि, ‘ईश्वर का भक्तवत्सल रूप जिसप्रकार सत्य, त्रेता तथा द्वापर युगों में था, उसी प्रकार वह कलियुग में भी कार्यरत है ।’ अतः हमारे ध्यान में यह सूत्र आता है कि, ‘यदि किसी भी युग में जन्म हुआ, तो साधना करने के पश्चात ईश्वर उसका फल अवश्य देता है ।’
– कु. मधुरा भोसले (आध्यात्मिक स्तर ६४ प्रतिशत) (सूक्ष्म द्वारा प्राप्त ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा ।
(३.९.२०२१)