प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पं. निषाद बाकरे द्वारा प्रस्तुत किए गए ‘भूप’ राग के गायन का संतों, साथ ही आध्यात्मिक कष्ट से ग्रस्त तथा कष्टरहित साधकों पर हुआ परिणाम

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से संगीत के विषय में किए गए शोधकार्यात्मक प्रयोग की क्षणिकाएं !

पं. निषाद बाक्रे

२३.८.२०२२ को ‘ठाणे के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पं. निषाद बाक्रे द्वारा प्रस्तुत ‘भूप’ राग के गायन का आध्यात्मिक कष्ट से ग्रस्त तथा आध्यात्मिक कष्टरहित साधकों पर क्या परिणाम होता है ?’, इसका अध्ययन करने के लिए प्रयोग किया गया । इस प्रयोग के समय पं. बाक्रे को तबले पर गोवा के प्रसिद्ध तबलावादक डॉ. उदय कुलकर्णी तथा संवादिनी पर (हार्माेनियम पर) श्री. दत्तराज म्हाळशी ने संगत की । इस अवसर पर पं. बाक्रे के २ शिष्य श्री. श्रीरंग दातार एवं श्री. साहिल भोगले ने उन्हें गायन में और तानपुरे पर संगत की ।

सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर

परिचय

१. तबलावादक डॉ. उदय कुलकर्णी : इन्होंने पं. निषाद बाक्रे को तबले पर संगत की । वे ‘गोवा कॉलेज ऑफ म्युजिक’ में सहायक प्राध्यापक (एसिस्टंट प्रोफेसर) हैं । उन्हें पं. सोमशेखर, पं. रवींद्र यावगल एवं पं. सूरज पुरंदरे, इन गुरुओं से मार्गदर्शन मिला है । वे ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के ‘ए’ ग्रेड कलाकार हैं ।

२. संवादिनीवादक श्री. दत्तराज म्हाळशी : इन्होंने पं. निषाद बाक्रे को संवादिनी पर (हार्माेनियम) संगत की । वे मूलतः पणजी (गोवा) के हैं । उन्होंने संवादिनी वादन में MPA (Master In Performing Art) की उपाधि प्राप्त की है । उन्हें पं. गुलाब टेंगसे, पं. राया कोरगांवकर तथा पं. सुधीर नायक, इन ३ गुरुओं से मार्गदर्शन मिला है ।

३. पं. निषाद बाक्रे के शिष्य श्री. श्रीरंग दातार और श्री. साहिल भोगले : ये दोनों पं. निषाद बाक्रे से क्रमशः १३ एवं १२ वर्षाें से संगीत सीख रहे हैं ।

१. पं. निषाद बाक्रे द्वारा प्रस्तुत ‘भूप’ राग के गायन के समय प्राप्त अनुभूतियां

१ अ. सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी को प्राप्त अनुभूतियां

अ. गायन के स्पंदन मेरे मूलाधारचक्र तक पहुंच गए हैं, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ और मेरी सुषुम्ना नाडी कार्यरत हुई ।

आ. पं. निषाद बाक्रे द्वारा अंत में प्रस्तुत किए गए ‘तराना’ (टिप्पणी) प्रकार के कारण वातावरण में अधिक मात्रा में शक्ति प्रक्षेपित हो रही है’, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ ।
टिप्पणी – इस गायन प्रकार में अर्थपूर्ण काव्य का उपयोग न कर ‘नादीर’, ‘तन’, ‘दिम्’, ‘तोम्’ जैसे नादमधुर; परंतु अर्थहीन शब्दों का उपयोग किया जाता है । तराना मध्य एवं द्रुतलय में गाया जाता है ।

२. पं. निषाद बाक्रे के गायन के गायकों, वादकों और दर्शकों पर हुए परिणाम का ‘यूनिवर्सल औरा स्कैनर (यूएएस)’

उपकरण के द्वारा किए गए परीक्षणों का निष्कर्ष

२ अ. पं. निषाद बाक्रे (गायक) पर हुआ परिणाम : शास्त्रीय गायक पं. निषाद बाक्रे में विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा ५१ प्रतिशत न्यून हुई और उनमें विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा ८४१ प्रतिशत बढ गई ।
२ आ. वादकों पर हुआ परिणाम : पं. निषाद बाक्रे को साथसंगत करनेवाले तबलावादक डॉ. उदय कुलकर्णी तथा संवादिनीवादक श्री. दत्तराज म्हाळशी में विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा ४० से ५० प्रतिशत न्यून हुई और उनमें सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुई तथा उसका प्रभामंडल क्रमशः ८.९६ मीटर और ८.७५ मीटर था ।

२ इ. एक श्रोता पर हुआ परिणाम : एक साधक-श्रोताओं में से (कु. मृण्मयी केळशीकर में विद्यमान) नकारात्मक ऊर्जा ६५ से ७८ प्रतिशत न्यून हुई और उसमें विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा २८२ प्रतिशत तक बढ गई ।

३. निष्कर्ष

‘भारतीय शास्त्रीय संगीत में मूलतः ही सात्त्विकता होने से उसका गायकों, वादकों और श्रोताओं पर सकारात्मक परिणाम होता है, साथ ही भारतीय संगीत में गायक, वादक एवं श्रोताओं में विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा न्यून करने की भी क्षमता है’, यह भी इस प्रयोग के निष्कर्षाें से स्पष्ट होता है । उसके कारण ही पं. निषाद बाक्रे द्वारा सुरों के साथ एकरूप होकर किए गए भावपूर्ण शास्त्रीय गायन का सभी पर अधिक मात्रा में सकारात्मक परिणाम हुआ, यह ध्यान में आता है ।

– सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत), संगीत विशारद, संगीत समन्वयक, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२३.८.२०२२) ॐ