श्रीगणेशजी को अडहुल के पुष्प अर्पण करें
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देवताओंको पुष्प अर्पित करनेका मुख्य उद्देश्य : देवताओं से प्रक्षेपित स्पंदन मुख्यतः निर्गुण तत्त्वसे संबंधित होते हैं । देवताओं को अर्पित पुष्प तत्त्व ग्रहण कर पूजक को प्रदान करते हैं, जिससे पुष्पमें आकर्षित स्पंदन भी पूजक को मिलते हैं ।
पुष्प भी मनुष्यकी भांति सत्त्व, रज एवं तम प्रवृत्ति के होना
जिस प्रकार मनुष्य सत्त्व, रज एवं तम प्रवृत्तिके होते हैं, उसी प्रकार अन्य सजीव घटकोंके (प्राणी एवं वनस्पतियोंके) संदर्भमें भी होता है । देवतापूजन हेतु विहित पुष्प सत्त्वप्रधान होते हैं । सजावट हेतु प्रयुक्त भारतीय पुष्प रजोगुणी होते हैं, जबकि सजावट हेतु प्रयुक्त विदेशी पुष्प तमोगुणी होते हैं ।
कौनसा फुष्प किस देवताका तत्त्व आकर्षित करता है ?
कौनसा फुष्प किस देवताका तत्त्व आकर्षित करता है यह शास्त्रोंद्वारा निर्धारित है, उदा. अडहुल – गणेशतत्त्व, मदारके पत्र एवं पुष्प – हनुमानतत्त्व आदि ।
श्री गणेशपूजनमें प्रयुक्त विशेष वस्तुएं
१. लाल रंगकी वस्तुएं
श्री गणपतिका वर्ण लाल है; उनकी पूजामें लाल वस्त्र, लाल फूल एवं रक्तचंदनका प्रयोग किया जाता है । इस लाल रंगके कारण वातावरणसे गणपतिके पवित्रक मूर्तिमें अधिक मात्रामें आकर्षित होते हैं एवं मूर्तिके जागृतिकरणमें सहायता मिलती है । चूंकि यह समझना कठिन है, इसलिए ‘गणपतिको लाल वस्त्र, लाल फूल एवं रक्तचंदन प्रिय हैं’, ऐसा कहकर यह विषय प्रायः समाप्त कर दिया जाता है ।
अडहुलके पुष्पमें विद्यमान रंगकणों एवं गंधकणोंके कारण ब्रह्मांडमंडलके गणेशतत्त्वके पवित्रक उसकी ओर आकर्षित होते हैं ।
लाल अडहुल एवं अन्य रंगके अडहुलमें भेद
अ. लाल रंगके अडहुलके पुष्पमें विद्यमान रंग एवं गंधकणोंके कारण ब्रह्मांडमंडलमें विद्यमान गणेशतत्त्व आकर्षित करनेकी क्षमता अधिक होती है, अन्य रंगोंके अडहुलके पुष्पोंकी ओर ब्रह्मांडमंडलसे गणेशतत्त्व आकर्षित करनेकी मात्रा अल्प होती है ।
आ. कलम (ग्राफ्टिंग) किए अडहुलके विविध रंगोंके फुष्पोंमें अल्प मात्रामें मायावी स्पंदन आकर्षित होते हैं ।
पुष्पका कार्य
अ. अडहुलके पुष्पके डंठलमें गणेशतत्त्व आकर्षित होता है । फुष्पकी पंखुडियोंके मध्यभागमें वह सक्रिय होता है तथा पंखुडियोंके माध्यमसे वातावरणमें प्रक्षेपित होता है ।
आ. पुंकेसर पंखुडियोंके बाहर रहनेवाले (पंखुडियोंसे बडे) अडहुलके फुष्पमें ब्रह्मांडसे आकर्षित देवताके निर्गुण तत्त्वका सगुणमें रूपांतरण होकर वह पुष्पमें संजोया रहता है और निरंतर प्रक्षेपित होता रहता है ।
२. शमीकी पत्तियां
शमीमें आग्नका वास है । अपने शस्त्रोंको तेजस्वी रखने हेतु पांडवोंने उन्हें शमीके वृक्षकी कोटरमें रखा था । जिस लकडीके मंथनद्वारा आग्न उत्पन्न करते हैं, वह मंथा शमी वृक्षका होता है ।
३. मदारकी पत्तियां
रुई एवं मदारमें अंतर है । रुईके फल रंगीन होते हैं तथा मदारके फल श्वेत होते हैं । जैसे औषधियोंमें पारा रसायन है, वैसे मदार वानस्पत्य रसायन है ।
पुष्पसे निर्माल्यतक की परिवर्तन-प्रक्रिया
देवतापर चढानेके 24 घंटेकी अवधिके पश्चात पुष्पकी स्पंदन आकर्षित करने एवं प्रक्षेपित करनेकी क्षमता धीरे-धीरे घटने लगती है एवं वह निर्माल्य बनकर देवताके चरणोंमें विलीन होता है ।’
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘श्री गणपति’
सौजन्य : सनातन संस्था