वर्ष २००२ में हुए गुजरात दंगे से संबंधित सभी मुकदमों को बंद करें ! – सर्वाेच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय

नई देहली – सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष २००२ के गुजरात दंगे से संबंधित सभी मुकदमों को बंद करने के आदेश दिए हैं । इतने दिनों के उपरांत इन प्रकरणों पर सुनवाई करने का कोई सार नहीं है, सरन्यायाधीश उदय ललीत के खंडपीठ ने ऐसे कहा है ।

सर्वोच्च न्यायालय में गुजरात दंगे से संबंधित अनेक याचिकाएं प्रलंबित हैं । सर्वाेच्च न्यायालय ने कहा कि गुजरात दंगे से संबंधित ९ प्रकरणों में से ८ प्रकरणों पर कनिष्ठ न्यायालयों द्वारा सुनवाई की गई है । नरोडा गांव से संबंधित मुकदमों की सुनवाई अब तक चल रही है । ऐसी स्थिति में दंगे से संबंधित किसी भी मुकदमे की स्वतंत्र रूप से सुनवाई करने की आवश्यकता नहीं है ।

नरेंद्र मोदी को ‘क्लिन चिट’ देनेवाले विशेष अन्वेषण दल का विवरण (अहवाल) वैध ही है !- सर्वाेच्च न्यायालय

२४ जून २०२२ को जाकिया जाफरी द्वारा प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध प्रविष्ट की गई याचिका सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा अस्वीकार कर दी गई थी । वर्ष २००२ के गुजरात दंगे में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लिन चिट देनेवाले विशेष अन्वेषण दल के (‘एस.आइ.टी.’ के) ब्योरे के विरुद्ध यह याचिका प्रविष्ट की गई थी ।

गोधरा धार्मिक हिंसा में ६९ लोगों की मृत्यु हुई थी ।

२७ फरवरी २००२ को गोधरा के अग्निकांड के उपरांत गुजरात में धार्मिक हिंसा हुई थी । इसमें जाकिया जाफरी के पति एवं कांग्रेस के भूतपूर्व सांसद एहसान जाफरी के साथ ६९ लोगों की मृत्यु हुई थी । इनमें ३८ लोगों की मृतदेहों को बाहर निकाला गया, जबकि जाफरी के साथ ३१ लोगों के लापता होने की बात कही गई थी ।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित की गई थी ‘एस.आइ.टी.’

गुजरात दंगे के अन्वेषण के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष २००८ में एस.आइ.टी. की स्थापना की गई थी । सर्वाेच्च न्यायालय ने एस.आइ.टी. को इस प्रकरण में भी सभी सुनवाईयाें के ब्योरे प्रस्तुत करने के आदेश दिए । तत्पश्चात जाकिया जाफरी के परिवाद का अन्वेषण भी एस.आइ.टी. को सौंपा गया । एस.आइ.टी. ने मोदी को क्लिन चिट दी एवं वर्ष २०११ में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार एस.आइ.टी. ने न्यायदंडाधिकारी को ‘क्लोजर रिपोर्ट’ प्रस्तुत किया था । जिनकी अध्यक्षता में किसी एक घटना का अन्वेषण चालू रहता है, उनके द्वारा ब्योरे पर हस्ताक्षर कर अन्वेषण बंद करने की अनुमति देने को क्लोजर रिपोर्ट कहते हैं ।

वर्ष २०१३ में जाकिया जाफरी ने क्लोजर रिपोर्ट का विरोध करते हुए न्यायदंडाधिकारी के सामने याचिका प्रविष्ट की थी । दंडाधिकारी ने यह याचिका अस्वीकार कर दी थी । इसके उपरांत जाकिया जाफरी गुजरात उच्च न्यायालय में गए । उच्च न्यायालय ने वर्ष २०१७ में दंडाधिकारी का निर्णय स्थायी रखा । तत्पश्चात जाकिया जाफरी द्वारा उच्च न्यायालय के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी ।