शास्त्रानुसार गणेशोत्सव कैसे मनाएं ?
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१. प्रदूषणमुक्त एवं शास्त्रानुसार गणेशोत्सव मनाकर श्री गणेश की कृपा संपादन करे !
भगवान श्री गणेश सर्व हिंदुओंके आराध्य देवता हैं । इसके साथ ही भगवान गणेश बुद्धी के देवता भी हैं । गणपति सभी को आनंद देनेवाले देवता हैं । ऐसे देवताका उत्सव हमें शास्त्रके अनुसार मनाना चाहिए, तभी हमपर गणपति देवता की कृपा होगी । जब गणेशोत्सव आता है; तो हमें आनंद होता है न ? आज हम शास्त्रानुसार गणेशोत्सव कैसे मनाएं तथा गणपतिके नामोंका अर्थ एवं गणेशोत्सव के अनाचार कैसे बंद करें, यह देखेंगे ।
२. सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाने के पीछे की पार्श्वभूमि
२ अ. लोगोंमें संकीर्णता दूर होकर ‘मेरा गांव मेरा गणपति’, यह व्यापक विचार मनपर अंकित करना
लोकमान्य तिलक द्वारा सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाना आरंभ किया गया । हम पहले घर-घर गणपति बैठाते थे और आज भी वह परंपरा चली आ रही है । तब भी लो. तिलकद्वारा सार्वजनिक उत्सव क्यों आरंभ किया गया ? वह इसलिए कि हमारी संकीर्णता घरतक ही सीमित न रहे, अपितु पूर्ण गांव एवं नगरमें सर्व लोग अपना भेदभाव एवं लडाई-झगडे भुलाकर एकत्र आएं और सभी में संघभावना बढे । ‘मेरा घर मेरा गणपति’ इसकी अपेक्षा ‘मेरा गांव और मेरा गणपति’, यह व्यापक विचार प्रत्येक के मनपर अंकित हो, इसके लिए यह उत्सव सार्वजनिक किया गया ।
२ आ. संगठितता बढाना
उस समय अंग्रेज अत्याचार कर रहे थे । ऐसी स्थितीमें हम सभी संगठित रहें, यही लोकमान्य तिलकका उद्देश्य था । आज देशके सामने आतंकवादके साथ-साथ अनेक समस्याएं हैं और उन्हें दूर करनेके लिए हम सभीको संगठित रहना चाहिए ।
३. धर्मशिक्षा न होने के कारण शास्त्र ज्ञात न होने से अनेक अनाचारों का समावेश होना
गणेशोत्सव शास्त्रके अनुसार मनाना चाहिए, तब ही हमपर गणपति की कृपा होगी । हमें धर्मकी शिक्षा न दी जानेके कारण ‘गणेश’के नामका भावार्थ भी नहीं ज्ञात है, गणेशपूजन शास्त्र के अनुसार कैसे मनाएं, यह भी ज्ञात नहीं; इसलिए आज अपने उत्सवों में अनेक अनाचार हो रहे हैं । उन्हें रोकने से ही हमपर गणपति की कृपा होनेवाली है ।
श्री गणेश चतुर्थी दृश्यपट (Shri Ganesh Chaturthi Video)
४. शास्त्रानुसार गणेशोत्सव कैसे मनाएं ?
अ. उत्सव के लिए बनाए जानेवाली श्री गणेश की झांकी अथवा साज-सज्जा
२ अ १ अ. साज-सज्जा सात्विक तथा पर्यावरण के लिए घातक न होनेवाली होनी चाहिए
हम गणपति आनेसे दो दिन पूर्व सजावट करते हैं । सजावट सात्विक और पर्यावरण के लिए घातक नहीं होनी चाहिए । भगवान गणेशजी का मंडप बांससे बनाएं । उसकी साज-सज्जा के लिए केले के तने का उपयोग कर सकते हैं । नैसर्गिक वस्तुओं का अधिकाधिक उपयोग करने से उन वस्तुओं को विसर्जित कर सकते हैं और उनसे पर्यावरणपर घातक परिणाम भी नहीं होता है । इसके साथ ही यदि उनमें से टिकाऊ वस्तुएं यदि घरमें रह जाएं, तब भी उनमें आए हुए गणेशतरंगों के चैतन्यका लाभ गणेशोत्सव के उपरांत भी घरके सभी सदस्यों को प्राप्त होता है और घर का वातावरण आनंदमय रहता है ।
आ. कागदी पताका का उपयोग करना
साज-सज्जा के लिए कागद की पताकाओं का उपयोग कर सकते हैं । इससे साज-सज्जा अच्छी होती है । तदुपरांत कागद विसर्जित कर सकते हैं ।
इ. आमके पत्तोंका बंदनवार बनाएं
आमके पत्तोका बंदनवार का अधिकाधिक उपयोग करें । इस कारण वातावरण की गणेश तरंगों का अधिकाधिक लाभ होता है एवं किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता है ।
ई. अयोग्य प्रकार की तथा पर्यावरण के लिए घातक साज-सज्जा टालना
४ ई १. थर्मोकोल के कारण प्रदूषण में वृदि्ध होना : आजकल हमें शास्त्र ही ज्ञात न होने के कारण साज-सज्जा के लिए थर्मोकोल का अत्यधिक उपयोग किया जाता है । थर्मोकोल पानी में विसर्जित करने पर वह पानी में घुलता नहीं । जलाने से वातावरण में प्रदूषित वायु छोडी जाती हैं । इससे हम एक-प्रकार से प्रदूषण ही बढाते हैं । यह गणपति को अच्छा लगेगा क्या ? हमें प्रदूषणमुक्त साज-सज्जा करनी चाहिए अथवा नहीं ?
४ ई २. विद्युत दीपों का अनावश्यक उपयोग करना : वर्तमान में हम साज-सज्जा के लिए रोशनाई का अत्यधिक उपयोग करते हैं । अनेक रंगीन दीपकों का उपयोग, उसी प्रकार बडे प्रमाण में बिजली की मालाओं का उपयोग करते हैं । इससे बिजली का अनावश्यक उपयोग होता है और बिजली व्यर्थ होती है । इससे गणेशतरंगों का अधिक लाभ नहीं होता है ।
बिजली बचाना, यह अपना राष्ट्रीय कर्तव्य है । इससे हमपर भगवान गणेश की कृपा ही होनेवाली है । इस गणेशोत्सव में हमें बिजली का अत्यंत अल्प उपयोग करके राष्ट्र की ऊर्जा बचानी है । हम देख ही रहे हैं कि अनेक गावों में बिजली नहीं है । शहरों में भी अनेक घंटे बिना बिजली के रहना पडता है । तब राष्ट्रके एक दक्ष नागरिक के रूपमें राष्ट्रके प्रति अपना कर्तव्य निभाना आवश्यक है । यही गणेशजी को अच्छा लगेगा ।
५. श्री गणेशजी की मूर्ति कैसी होनी चाहिए ?
५ अ. मूर्ति अतिभव्य नहीं होनी चाहिए : श्री गणेशजी की मूर्ति १ से २ फुटकी होनी चाहिए । मूर्तिशास्त्र ज्ञात न होने से २० से २५ फुटकी मूर्ति लाई जाती है । ऐसी भव्य मूर्ति की योग्य निगरानी करना भी कठिन होता है । इस मूर्तिका विसर्जन करते समय उसे ढकेला जाता है, इससे देवताका अनादर होता है । अपने गणेशजीका ऐसा अनादर होते देख हमें अच्छा लगेगा क्या ? नहीं न ? इसलिए बडी मूर्ति लानेके लिए विरोध करना चाहिए ।
५ आ. ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’की मूर्तिकी अपेक्षा प्रदूषण विरहित चिकनी मिट्टीकी मूर्ति लाएं : अपने धर्मशास्त्रमें बताए अनुसार गणेशमूर्ति चिकनी मिट्टीकी होनी चाहिए । वह प्रदूषण विरहित होती है । आजकल हम ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’की मूर्ति लाते हैं । वह शीघ्र पानी में नहीं घुलती है एवं मूर्ति के अवशेष पानी के बाहर आ जाने से मूर्ति का अनादर होता है । क्या ऐसा अनादर होने देना चाहिए ? नहीं न ? फिर हमें ही लोगों का प्रबोधन करके चिकनी मिट्टी की ही मूर्ति लानेके लिए आग्रह करना चाहिए ।
५ इ. कागदकी लुगदीसे बनाई गई मूर्तिका उपयोग करना अयोग्य : कागद की लुगदी से बनाई गई मूर्ति भी न लाएं; वह इसलिए कि शास्त्रानुसार चिकनी मिट्टी की मूर्ति में वातावरण में विद्यमान गणेश तरंगें आकर्षित करनेकी क्षमता अधिक होती है । वह क्षमता कागद में नहीं है । अर्थात पूजक को श्री गणेशजी की तरंगों की पूजा करने से लाभ नहीं होगा ।
५ ई. रासायनिक रंगों की मूर्ति न लाकर नैसर्गिक रंगोंका उपयोग की हुई मूर्तिका उपयोग करें : मूर्ति रंगने के लिए रासायनिक रंगोंका उपयोग किया जाता है; परंतु शास्त्रानुसार नैसर्गिक रंगोंका उपयोग करना चाहिए । जिससे मूर्ति विसर्जित करनेपर उन रंगोंके कारण प्रदूषण नहीं होगा । अपने धर्मशास्त्रने पर्यावरण का सखोल विचार किया है । हमें लोगोंको बताना चाहिए कि नैसर्गिक रंगों का उपयोग की हुई मूर्तिका ही उपयोग करें; वह इसलिए कि इसी से पर्यावरण की रक्षा होगी ।
५ उ. श्री गणेशजी की मूर्ति चित्र-विचित्र आकारों में न बनाकर उनका जो मूल रूप है, उसी रूपमें मूर्ति बनाएं : मूर्ति चित्र-विचित्र आकारों में नहीं बनानी चाहिए । आजकल किसी भी आकार की मूर्ति बनाई जाती है । यह योग्य है क्या ? किसी नेता अथवा किसी संतके रूपमें मूर्ति बनाते हैं । हमें इसका विरोध करना चाहिए । अपने माता-पिताजी को अलग रूपमें दिखाया जाना आपको अच्छा लगेगा क्या ? श्री गणेशजी जैसे मूल रूपमें हैं, वैसी ही मूर्ति होनी चाहिए, तब ही श्री गणेशजी की शक्ति उस मूर्तिमें आएगी एवं हमें उस शक्ति लाभ होगा । इसलिए हमें ऐसी मूर्ति लानेका विरोध करना चाहिए । करेंगे न ?
६. कौनसे कार्यक्रमोंका आयोजन करना चाहिए ?
६ अ. राष्ट्रप्रेम तथा भगवानके प्रति भक्तिभाव जागृत करनेवाले कार्यक्रम होने चाहिए : गणपति लानेके उपरांत प्रवचन, कीर्तन, भजन, भकि्तभाव जागृत करनेवाली नाटिका, क्रांतिकारियोंके जीवनके प्रसंग बतानेवाले व्याख्यान, राष्ट्रपे्रम जागृत करनेवाले कार्यक्रम आयोजित करें । सिनेमाके गीतोंपर नृत्य करना, सिनेमाके गीत-गायनके कार्यक्रम, संगीत कुर्सी इत्यादि कार्यक्रम न रखते हुए गणपति स्तोत्रपठनकी स्पर्धा आयोजित करें । मित्रो, जिन कार्यक्रमोंसे भगवानके विषयमें भक्तीभाव जागृत नहीं होगा, ऐसे कार्यक्रम रखना अयोग्य ही है । ऐसे कार्यक्रमों में सहभागी न हों । अन्यथा हम भी पाप के भागीदार होकर गणपति की अवकृपा के ही पात्र होगे ! हम भगवानसे ही प्रार्थना करेंगे, ‘हे गणेश भगवानजी, मुझे ऐसे कार्यक्रमों से दूर रहने की शक्ती आप ही दें ।’
सौजन्य : सनातन संस्था