चीन, जापान और ताइवान के मध्य व्याप्त शत्रुता तथा राष्ट्रहित संजोनेवाली भारत की भूमिका !
१. चीन द्वारा ताइवान पर दागे गए ११ क्षेपणास्त्रों में से ५ क्षेपणास्त्रों का जापान की सीमा में गिरना तथा उसकी कारणमीमांसा !
‘अमेरिका के प्रतिनिधि सदन की अध्यक्षा नैंसी पेलोसी के ताइवान जाने के उपरांत चीन ने अपना रोष दिखाना आरंभ कर दिया है । चीन ने ताइवान के विरुद्ध अनेक गतिविधियां आरंभ की हैं । उसने ताइवान को चारों ओर से घेर लिया है । बाहर से ताइवान आनेवाले व्यापारिक नौकाओं को भी वहां रोक रखने का प्रयास किया जा रहा है । कुछ दिन पूर्व चीन ने ताइवान पर ११ क्षेपणास्त्र दागे, जिनमें से ५ क्षेपणास्त्र जापान के समुद्र में जा गिरे । वास्तविक लक्ष्य (निशाना) था ताइवान; परंतु वे क्षेपणास्त्र गिरे जापान में ! यहां हमें एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि नैंसी पेलोसी ताइवान की यात्रा समाप्त कर दक्षिण कोरिया गईं और वहां से जापान पहुंचीं । उसके कारण चीन के द्वारा जापान को चेतावनी देने के लिए यह कदम उठाए जाने की संभावना है ।
इसमें दो बातें हो सकती हैं । एक तो वह क्षेपणास्त्र चूक से वहां गिरा होगा अथवा उसे जानबूझकर जापान के निकट गिराया गया होगा । चीनी शस्त्रों की गुणवत्ता का आश्वासन (गारंटी) नहीं दिया जा सकता और उनके द्वारा निर्मित मूलभूत सुविधाएं भी निम्न स्तर की होती हैं । उनके उत्पादों का स्तर भी बहुत निम्न स्तर का होता है, यह अनेक बार प्रमाणित हो चुका है । अनेक बार चीनी लोग भी ‘मेड इन चाइना’ उत्पादों का उपयोग नहीं करते, ऐसा कहा जाता है, अपितु वे बाहरी वस्तुओं के उपयोग को प्रधानता देते हैं ।
२. जापान और चीन में शत्रुता होने के कारण चीन के द्वारा उसे चेतावनी देने के लिए क्षेपणास्त्र दागे जाने की संभावना
नैंसी पेलोसी के जापान पहुंचने पर वहां क्षेपणास्त्र दागे गए । ‘चीन ने जानबूझकर ऐसा किया होगा’, इस बात को अस्वीकार नहीं किया जा सकता । जापान भी चीन का शत्रु है और इन दोनों देशों में ‘सेनकाकू’ टापू को लेकर विवाद है । इतने वर्षाें तक जापान सुरक्षा कारणों पर पैसा व्यय (खर्च) करने के लिए तैयार नहीं था; परंतु आज के समय में चीन के भय के कारण जापान ने अपना रक्षा ‘बजट’ बढाना आरंभ कर दिया है । दूसरे विश्वयुद्ध के उपरांत ऐसा पहली बार हो रहा है । इसके कारण प्रश्न उठता है, ‘क्या अब चीन जापान के साथ शरारत करेगा ?’
३. चीन ने ताइवान के विरुद्ध पारंपरिक पद्धति से युद्ध किया, तो उसे बडे स्तर पर रक्तपात करना पडेगा !
चीन पहले से ही ताइवान के साथ शरारतें करता आया है । चीन ने ताइवान पर साइबर आक्रमण किया है । कहा जाता है कि चीन ने ताइवान की मूलभूत सुविधाओं और ‘नेटवर्क’ पर विश्व का सबसे बडा साइबर (सूचना-प्रौद्योगिकी) आक्रमण किया है ।’ परंतु ताइवान का सुरक्षातंत्र शक्तिशाली होने से उस पर इसका विशेष परिणाम नहीं हुआ । चीन अब ताइवान के साथ चल रहा व्यापार भी बंद करने का प्रयास कर रहा है । उसके कारण चीन की ही हानि होनेवाली है; क्योंकि ताइवान में बनाए जानेवाले ‘सेमीकंडक्टर’ (इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में उपयोग किया जानेवाला एक पुर्जा) चीन में बडे स्तर पर उपयोग में लाए जाते हैं । आज के समय में चीनी विमान ताइवान की सीमा में घुसने का प्रयास करते रहते हैं, जिसका ताइवान तुरंत उत्तर देता है । ताइवान ने भी अपनी हवाई सुरक्षा और क्षेपणास्त्रों को सक्रिय कर रखा है ।
ताइवान के तीनों सैन्य बल बहुत ही सक्षम हैं । उनके पास अत्याधुनिक शस्त्र हैं । उससे युद्ध हुआ भी, तो जिस प्रकार यूक्रेन ने रूस को उत्तर दिया, उस प्रकार से ताइवान भी चीन को उत्तर दे सकता है । ‘चीन कभी ताइवान पर समुद्र की ओर से आक्रमण कर सकता है’, इसे ध्यान में लेकर ताइवान ने समुद्र तट की सुरक्षा सुदृढ करके रखी है; इसलिए यदि चीन ने पारंपरिक आक्रमण करने का प्रयास किया, तो उसे वहां बहुत रक्तपात करना पडेगा ।
४. चीनी सेना में पारंपरिक पद्धति से युद्ध करने का साहस न होने से उसके द्वारा केवल ‘हाइब्रिड वॉर’ (एक भी गोली चलाए बिना किया जानेवाला युद्ध) जारी रखने की संभावना
प्रश्न उठता है, ‘क्या अमेरिका ताइवान की सहायता करेगा ?’ अमेरिका की सेना ने यूक्रेन के युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया; परंतु यूक्रेन को शस्त्रों की सहायता की । आज की स्थिति यह है कि दक्षिण चीनी समुद्र में अमेरिका ने अपने ‘एयरक्राफ्ट कैरियर’ (विमानवाहक नौका) उतारा है । इसलिए यदि आवश्यक हुआ, तो अमेरिका ताइवान को अपने वायुदल और नौसेना की सहायता दे सकता है; परंतु प्रश्न है, ‘क्या अमेरिकी नेतृत्व इसकी इच्छाशक्ति दिखा पाएगा ?’ चीन दादागिरी कर अमेरिका को भय दिखाने का प्रयास कर रहा था । कुछ दिन पूर्व चीन ने अमेरिका को नैंसी पेलोसी को ताइवान नहीं भेजने की, अन्यथा उनका विमान गिराने की धमकी दी थी; परंतु तब भी पेलोसी ताइवान आ गईं, तो उन्हें बाहर न निकलने देने की धमकी दी थी; परंतु पेलोसी ने अपनी यात्रा पूर्ण की और चीन उनका कुछ नहीं बिगाड सका । चीन के द्वारा पारंपरिक पद्धति से युद्ध किए जाने की संभावना बहुत ही अल्प दिखाई देती है; परंतु उनका अपारंपरिक युद्ध अर्थात ‘हाइब्रिड वॉर’ (दुष्प्रचार युद्ध, साइबर युद्ध, आर्थिक युद्ध इत्यादि) चलता रहेगा । चीन इसे बडे स्तर पर बढाने का प्रयास करेगा । चीन कदाचित अमेरिका के विरुद्ध भी व्यापारिक युद्ध आरंभ करे । आज के समय में चीनी सेना में पारंपरिक युद्ध करने का साहस नहीं है ।
५. भारत को ताइवान के साथ आर्थिक संबंध जारी रखकर राष्ट्रहित संजोना आवश्यक !
ताइवान के साथ भारत के राजनीतिक संबंध नहीं हैं; इसलिए उस देश में भारत का दूतावास नहीं है । भले ही ऐसा हो; परंतु भारत एवं ताइवान के व्यापार तीव्रगति से बढ रहे
हैं । प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी ताइवान और भारत के संबंध अच्छे हैं । ताइवान भारत में बडे स्तर पर विदेशी निवेश कर रहा है । भारत को यदि तीव्र गति से प्रगति करनी हो, तो उसके लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है । अमेरिका भारत को जो प्रौद्योगिकी दे रहा है, वह महंगी है । इस्राईल भी भारत को व्यावसायिक स्तर पर प्रौद्योगिकी की आपूर्ति करता है, उस तुलना में ताइवान थोडे से अल्प मूल्य में प्रौद्योगिकी की आपूर्ति करता है । इस पृष्ठभूमि पर भारत को ताइवान के साथ गुप्त रूप से आर्थिक संबंध बढाने चाहिए; परंतु पारंपरिक युद्ध करने की आवश्यकता नहीं है । समाचार वाहिनियों पर चिल्ला-चिल्लाकर चीन को गालियां देने की भी आवश्यकता नहीं है । भारत को जो करना है, उसे जारी रखकर शांति से अपना राष्ट्रहित संजोना चाहिए ।’
– (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, पुणे