राष्ट्रभाषा को बचाएं एवं राष्ट्रीय एकता बनाए रखें !
शुद्ध हिन्दी भाषा की अनिवार्यता
१. राष्ट्रभाषा के होते प्रादेशिक भाषाओं की अस्मिताएं त्यागें ! : ‘सनातन हिन्दू संस्कृति का उपदेश है कि गांव के लिए परिवार को त्यागना, जनपद के लिए गांव को त्यागना, राज्य के लिए जनपद को त्यागना एवं राष्ट्रके लिए राज्य को त्यागना आवश्यक है । इस तत्त्व के अनुसार समस्त राज्य राष्ट्रभाषा की अपेक्षा अपनी-अपनी प्रादेशिक भाषा को गौण स्थान दें एवं राष्ट्राभिमान जागृत करने हेतु योगदान दें ।’
२. हिन्दी में बोलते समय एवं लिखते समय शुद्ध हिन्दी भाषा का ही उपयोग करें ! : हिन्दी राष्ट्रभाषा की वर्तमान स्थिति देखें, तो हमारे द्वारा उपयोग में लाई जानेवाली, शुद्ध हिन्दी भाषा नहीं है, वह अरबी-फारसी-उर्दू-मिश्रित हिन्दी भाषा है । विदेशियों के स्थूल आक्रमण के उपरांत उनका भाषापर आक्रमण था । ‘भाषाभिमानशून्य देश विलय को प्राप्त होता है’, यह तत्त्व ध्यान में रखकर प्रत्येक राष्ट्रप्रेमी नागरिक को स्वभाषा पर होनेवाले आक्रमण को निरस्त करना होगा । वर्तमान में सर्वत्र उर्दू-मिश्रित हिन्दी भाषा प्रयुक्त होने के कारण हिन्दी मासिक ‘सनातन प्रभात’ एवं सनातन-निर्मित हिन्दी ग्रंथों में प्रयुक्त भाषा के संदर्भ में पाठकों का कहना है कि ‘सनातन के प्रकाशनों में मराठी-मिश्रित भाषा का प्रयोग किया जाता है । वह समझने में कठिन होता है ।’ संस्कृत सर्व राष्ट्रीय भाषाओं की जननी है, इस कारण संस्कृत के कुछ शब्द सर्व राष्ट्रीय भाषाओं में प्रयोग में लाए जाते हैं, उसी प्रकार वे मराठी में भी प्रयोग में लाए जाते हैं । हिन्दी समान मराठी भाषा में भी उर्दू एवं फारसी शब्दों का प्रवेश होने के कारण सनातन ने मराठी भाषा के शुद्धीकरण का आंदोलन आरंभ किया है । इस कारण सनातन के मराठी वाङ्मय में उर्दू एवं फारसी शब्दों को विकल्प के रूप में संस्कृत पाए जाते हैं । यही संस्कृत शब्द हिन्दी में आने से तथा इनमें अनेक शब्द विद्यमान प्रयोग में रहे उर्दू-मिश्रित हिन्दी में प्रचलित न होने के कारण पाठकों को सनातनका वाङ्मय मराठी-मिश्रित हिन्दी प्रतीत होता है; परंतु वास्तविक रूपमें वह संस्कृत-मिश्रित हिन्दी है, इस ओर पाठक ध्यान दें ।