ज्येष्ठा गौरी
१. तिथि
‘भाद्रपद शुक्ल अष्टमी (४.९.२०२२)
२. इतिहास एवं उद्देश्य
असुरों द्वारा पीडित सभी स्त्रियां श्री महालक्ष्मी गौरी की शरण में गईं एवं उन्होंने अपने अक्षुण्ण सौभाग्य हेतु प्रार्थना की । श्री महालक्ष्मी गौरी ने भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को असुरों का संहार कर शरण आई हुईं स्त्रियों के पतियों को तथा पृथ्वी के प्राणियों को सुखी किया; इसलिए अखंड सौभाग्य प्राप्त होने हेतु स्त्रियां ज्येष्ठा गौरी का व्रत करती हैं ।
३. व्रत रखने की पद्धति
अ. यह व्रत तीन दिन तक होता है । प्रांतों के अनुसार यह व्रत मनाने की विविध पद्धतियां हैं । इसमें धातु की, मिट्टी की प्रतिमा बनाकर अथवा कागज पर श्री लक्ष्मी का चित्र बनाकर, तो कुछ स्थानों पर नदी तट के पांच छोटे पत्थर लाकर उनका गौरी के रूप में पूजन किया जाता है ।
महाराष्ट्र में अधिकांश स्थानों पर पांच छोटी मटकियों को उत्तरोतर रचाकर उनपर गौरी का मिट्टी का मुखौटा रखते हैं । कुछ स्थानों पर सुगंधित पुष्पवाली वनस्पतियों के पौधे अथवा गुलमेंहदी के पौधे एकत्र बांधकर उनकी प्रतिमा बनाते हैं तथा उनपर मिट्टी का मुखौटा चढाते हैं । उस मूर्ति को साडी पहनाकर अलंकारों से सजाया जाता है ।
आ. गौरी की स्थापना होने के उपरांत दूसरे दिन उनकी पूजा कर भोग लगाते हैं ।
इ. तीसरे दिन गौरी का नदी में विसर्जन किया जाता है तथा घर लौटते समय नदी की थोडी बालू अथवा मिट्टी लाकर वह संपूर्ण घर में छिडक देते हैं ।