अन्य पंथ तो पूर्वजों के लिए कुछ नहीं करते, फिर उन्हें कष्ट नहीं होता है क्या ?
हिन्दू हो, मुसलमान हो अथवा ईसाई । जो भी शास्त्रों का पालन करेगा, उसे लाभ होगा । आज विदेशों में अधिकतर लोग मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हैं । अमेरिका में ही ५ में से १ व्यक्ति मानसिक रोगी है । भारत जैसे विकासशील देश की तुलना में अमेरिका जैसे विकसित देश में यह समस्या इतनी विशाल मात्रा में बढी हुई है, फिर क्यों इस पर अब तक कोई उपाय नहीं मिला ? इस समस्या का एक कारण पितृदोष हो सकता है । आधुनिक विज्ञान उनको राहत नहीं दे पा रहा है । गया में अनेक विदेशी श्राद्ध के लिए आते हैं, यह इसका प्रमाण है । हॉलिवुड के सुप्रसिद्ध अभिनेता सिल्वेस्टर स्टेलोन का समाचार सभी ने पढा ही होगा । उन्हें अपने मृत बेटे की आत्मा का बार-बार आभास हो रहा था, तब उन्होंने मृत बेटे की शांति के लिए पूरे परिवार को भारत भेजा और हरिद्वार में उसका पिंडदान और श्राद्ध करवाया । तब क्या किसी भी हिन्दू ने यह कहा कि ‘अरे, वह तो ईसाई है । इसलिए पिंडदान नहीं हो सकता ? इसलिए इसमें किसी पंथ का कोई भी संबंध नहीं है और यहां पर पैसे खर्च करने की बात भी नहीं है । शास्त्र के अनुसार घर बैठे ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का जाप कर, अपने पूर्वजों को गति दिलवाकर अपना जीवन कष्टमुक्त बनाया जा सकता है ।
(संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ ‘श्राद्धविधिका अध्यात्मशास्त्रीय आधार’)