वाई (जनपद सातारा) की पू. (श्रीमती) मालती नवनीतदास शहा (आयु ८३ वर्ष) के संतसम्मान समारोह का भाववृत्तांत !
वाई (जनपद सातारा) – मूल पुणे की तथा वर्तमान में वाई स्थित श्रीमती मालती नवनीतदास शहा (आयु ८३ वर्ष) सनातन की १२० वीं व्यष्टि संतपद पर विराजमान हुईं, सदगुरु स्वाती खाड्ये ने ४ अगस्त २०२२ को सभी को यह शुभ समाचार दिया । संत सम्मान के समय सद्गुरु स्वाती खाडये, श्रीमती मनीषा पाठक (आध्यात्मिक स्तर ६९ प्रतिशत), उनकी लडकी कु. प्रार्थना महेश पाठक (आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत), कु. प्राची शिंत्रे, पू. (श्रीमती) शहा आजी का समस्त परिवार तथा सातारा के सनातन के कुछ साधक उपस्थित थे । संत घोषित करने के पश्चात पू. आजी ने भोले भाव से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के चरणों में नमस्कार अर्पण किया । उपस्थित सभी ने इस समारोह के भावानंद को अनुभव किया ।
प्रेमभाव, स्थिर वृत्ति तथा ईश्वर पर दृढ श्रद्धा रखनेवाली पुणे की श्रीमती मालती नवनीतदास शहा (आयु ८३ वर्ष ) सनातन के १२० वें संतपद पर विराजमान!‘पुणे की श्रीमती मालती नवनीतदास शहा पिछले २० वर्षाें से सनातन संस्था के मार्गदर्शनानुसार साधना कर रही हैं । पहले से ही श्रीदत्तगुरु पर उनकी श्रद्धा है । आयु के ६३ वें वर्ष में उन्होंने सनातन के मार्गदर्शनानुसार साधना आरंभ की । मूल से ही सात्त्विक वृत्ति तथा ईश्वर प्रति अधिक लगन होने के कारण उन्होंने त्वरित नामजप तथा सेवा करना आरंभ किया । सेवा के लिए आजी के घर में अधिकांश साधकों का आना-जाना था । आजी में स्थित प्रेमभाव के कारण उन्होंने सभी साधकों को अपना बना लिया है । आजी के स्नेही एवं सत्कारशील स्वभाव के कारण साधकों को भी उनके सान्निध्य में रहना अच्छा प्रतीत होता है । आजी के जीवन में अधिकतर प्रतिकूल प्रसंग आए । साधना के कारण सहनशीलता एवं ईश्वर के प्रति दृढ श्रद्धा के कारण उन्होंने स्थिर रहकर सभी प्रसंगों का सामना किया । आजी के पति तथा बहन का निधन हुआ । उस समय परिवार तथा साधकों को उनकी स्थिरता का दर्शन हुआ । आजी ने उनके बच्चों पर भी अच्छे संस्कार किए हैं । उनका बडा बेटा श्री. शिरीष शहा (आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत) का पूरा परिवार सनातन संस्था के मार्गदर्शनानुसार साधना कर रहा है । आयु के कारण आजी की प्रकृति ठीक नहीं रहती, किंतु वे अखंड ईश्वर के अनुसंधान में रहती हैं । स्थिरता, निरासक्त वृत्ति एवं ईश्वर के प्रति दृढ श्रद्धा रहने के कारण आजी की आध्यात्मिक उन्नति तीव्र गति से हो रही है । आज के शुभ दिन पर श्रीमती मालती शहा आजी ने ७१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया है । वे ‘व्यष्टि संत’ के रूप में सनातन के १२० वें संतपद पर विराजमान हुई हैं । मुझे विश्वास है कि पू. (श्रीमती) मालती नवनीतदास शहा की आगे की प्रगति इसी प्रकार तीव्र गति से होगी । – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी (४.८.२०२२) |
सनातन की सद्गुरु स्वाती खाडये ने चैतन्यदायी वाणी में घोषित किया दैवी गुणरत्नव्याप्त श्रीमती शहा आजी के संतत्व का रहस्य !
१. स्नेहमयी एवं आनंदी रहनेवाली !
श्रीमती मालती नवनीतदास शहा की मूलतः सात्त्विक वृत्ति तथा साधकों के प्रति प्रेमभाव होने के कारण साधकों को भी उनके सान्निध्य में रहकर आनंद प्राप्त होता था । पहले पू. आजी अपने परिवार के साथ पुणे के काळाराम मंदिर के निकटवर्ती एक कक्ष में रहती थीं । उस समय उन्हें अत्यंत प्रतिकूल परिस्थिति का सामना करना पडा था; किंतु उसमें भी वह आनंदी एवं स्थिर रहती थीं । सनातन के साधक जब उनके घर जाते थे, तब वे प्यार तथा अपनेपन से साधकों की पूछताछ करती थीं । साधकों को कुछ न कुछ खाद्य सामग्री देती थीं । साधकों को भी उनके प्रति अत्यंत प्रेम था ।
२. स्वयं में व्याप्त उत्कट भावभक्ति का दर्शन करानेवाली शहा आजी !
श्रीराम तथा दत्तगुरु पर उनकी अपार श्रद्धा है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति भी उनके मन में अत्यंत भाव हैं । उनके स्मरण के अतिरिक्त पू. आजी पानी का एक बूंद भी नहीं लेतीं । उनमें स्थित इस उत्कट भाव तथा भक्ति के कारण उनके बच्चों में भी साधना एवं भावभक्ति का बीज अंकुरित हुआ है ।
३. सहनशीलता तथा प्रतिकूल परिस्थिति में स्थिर रहनेवाली आजी !
आजी में अत्यधिक सहनशीलता है । आजी के जीवन में अनेक कठिन प्रसंग आए, किंतु वे स्थिर रहीं । वर्तमान में उन्हें अधिकतर शारीरिक सीमाएं हैं । उनका एक पैर नहीं होने के कारण उन्हें कक्ष से बाहर निकलना सहज नहीं है । पहले इतने साधकों में रहनेवाली आजी को आज एक ही कक्ष में रहना पडता है; किंतु उन्होंने इस परिस्थिति को स्वीकार कर लिया है । इस स्थिति में भी उनका नामजप अखंड चल रहा है । वे निरंतर ईश्वर के अनुसंधान में रहती हैं । उनमें स्थित इन दैवी गुणों के कारण ही वे आज सनातन के १२० वें व्यष्टि संतपद पर विराजमान हैं ।
श्री. शिरीष शहा (बडा लडका) ने व्यक्त किया अपना मनोगत कोई भी परिस्थिति हो, सहजता से उसे स्वीकारने पू. मां !
१. पू. मां के कारण स्वयं में साधना का बीज अंकित हुआ !
मुझे पू. मां से साधना के संस्कार मिले हैं । उनके कारण ही मुझ में साधना का बीज बोया गया । उसकी भावभक्ति के कारण ही मुझे साधना में आना संभव हुआ । मेरे पिताजी के निधन के पश्चात भी वे अत्यंत स्थिर थीं ।
१ अ. आजी की वर्तमान साधना : मेरी मां (श्रीमती मालती नवनीतदास शहा) वर्तमान में नामजप करती हैं । वह नित्य हरिपाठ, मारुतिस्तोत्र तथा श्रीरामरक्षा पढती हैं । वह बगलामुखी स्तोत्र एवं देवीकवच सुनती हैं ।
१ आ. शारीरिक स्थिति में सुधार होने के पश्चात स्वावलंबी होने का प्रयास करना : दो वर्ष पूर्व मां पूना में स्नानगृह में गिर गई थीं । तत्पश्चात २ माह उन्हें उठना-बैठना संभव नहीं था । पिछले डेढ वर्षाें से मैं उन्हें नहलाता हूं । रात्रि पेशाब के लिए बेडपॅन (पेशाब करने का पात्र) रखना पडता था अथवा डायपर (मल-मूत्र शोषण करनेवाला वस्त्र) पहनाना पडता था । अब वह अकेली स्नानगृह में जाती हैं । इस उम्र में भी वह प्रातः उठकर नहाती हैं ।
१ इ. किसी भी परिस्थिति को सहजता से स्वीकार करना
१. पिछले वर्ष मां की बडी बहन का (श्रीमती शकुंतला सुगंधी का) निधन हुआ । उन्हें यह समाचार बताने के पश्चात उन्होंने ‘ठीक है’, केवल इतना ही कहा । कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की ।
२. मेरा भाई (श्री. प्रकाश शहा, आयु ५८ वर्ष) पूना में रहता है । उसने कहा,‘मैं मां से मिलने हेतु आता हूं ।’ उस समय मां ने कहा, ‘ इधर आने की आवश्यकता नहीं है । यहां आने के लिए २ घंटे व्यतीत होगें । हम भ्रमणभाष पर बात करेंगे ।’
३. हमारे घर का दूरचित्रवाणी संच तलमजले पर है । पहले उनका कक्ष वहां होने के कारण वह दूरचित्रवाणी के कार्यक्रम देखती थीं । अब वह ऊपर के मजले पर रहती हैं । वहां दूरचित्रवाणी संच नहीं है । किंतु उसे इस बात का कुछ भी बुरा नहीं प्रतीत होता । पहले वह आकाशवाणी पर भावगीत सुनती थीं । कुछ माह पूर्व हमारा ‘रेडिओ’ भी बंद हो गया । किंतु उसमें भी उन्हें कोई असंतोष नहीं है ।
१ ई. ध्यान में आया परिवर्तन – पिछले कुछ माह से मेरे ध्यान में यह बात आई है कि उनकी स्थिरता अधिक बढ गई है ।
– श्री. शिरीष शहा (आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत, आयु ६० वर्ष ) (बडा लडका), पूना
साधकों द्वारा पू. (श्रीमती) मालती शहा की बताई गईं गुणविशेषताएं !
१. पू. आजी का सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी तथा श्रीराम के प्रति भोला भाव देखकर मन भावविभोर हो जाता है ! -श्रीमती मनीषा पाठक (आध्यात्मिक स्तर ६९ प्रतिशत), पूना
संतसमारोह के समय सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का अस्तित्व प्रतीत हो रहा था । पू. आजी का सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी तथा श्रीराम के प्रति भोला भाव देखकर अपना मन भी भावविभोर हो जाता है । पू. आजी को शारीरिक सीमाएं होते हुए भी उन्होंने उनके प्रति कभी भी असंतोष व्यक्त नहीं किया । वे कभी भी नकारात्मक नहीं हुईं । जीवन के पृथक मोड पर आई सभी परिस्थितियों को उन्होंने स्थिरता से स्वीकार किया । वर्तमान में वह जहां निवास करती हैं, वहां आसपास बहुत थोडे लोग रहते हैं । किंतु उन्होंने उस परिस्थिति को स्थिरता से स्वीकार किया है ।
२. आजी की ओर देखने के पश्चात ‘वे संत हैं’, ऐसा प्रतीत होता है ! – कु. प्रार्थना महेश पाठक (आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत ) (आयु १० वर्ष), पूना
पू. आजी के यहां आने के पश्चात मुझे अत्यंत आनंद प्रतीत हुआ । काळाराम मंदिर में पहले सनातन संस्था के जो सत्ंसग होते थे, वहां मैं पहले जाती थी । उस समय पू. आजी का घर मुझे आश्रम समान ही प्रतीत होता था। पू. आजी मेरा अधिक ध्यान रखती थीं तथा मुझे आनंद भी देती थीं । अतः काळाराम मंदिर जाने की तीव्र इच्छा होती थी । उनकी ओर देखने के पश्चात ऐसा प्रतीत होता है कि वे संत ही हैं । आज सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने हम सभी साधकों को पू. आजी के रूप में एक अमूल्य भेंट दी है, इस विषय में मैं श्री गुरुचरणों में कृतज्ञता व्यक्त करती हूं ।
पू. शहाआजी के परिवारवालों ने व्यक्त किया अपना मनोगत पू. आजी के संतसम्मान प्रसंग में दैवी नियोजन की प्रचीति आई ! – श्रीमती पूजा शिरीष शहा (पू. शहाआजी की बहू)
पू. आजी का दत्त के प्रति अधिक भाव है । दत्त का नाम उनके मुंह में निरंतर रहता है । आजी संतपद पर विराजमान हुईं । कर्मधर्मयोग से आज (संतसम्मान हुआ, वह दिन भी (४ अगस्त)) गुरुवार श्रीदत्त का वार है । जिस परात्पर गुरुदेव पर उनकी अपार श्रद्धा है, वे गुरुदेव भी दत्तगुरु के ही रूप हैं । ये सभी दैवी संकेत मिलजुलकर आए हैैं । इससे मुझे दैवी नियोजन की अनुभूति आई । (जब से आजी को संत घोषित किया गया, तभी से श्रीमती पूजा शहा भाव विभोर हुई थीं । )
सहनशीलता का महामेरु अर्थात पू. आजी ! – श्री. नचिकेत शिरीष शहा (पू. शहाआजी का पोता )
पू. आजी अर्थात सहनशीलता का महामेरु हैं । ईश्वर के प्रति भाव कैसा होना चाहिए? यह बात मैंने आजी से ही सीखी । पू. आजी की सेवा करते समय, उन्हें खाना अथवा पानी देते समय कुछ दिनों से ऐसा प्रतीत होता था, कि मैं मेरी आजी की नहीं, अपितु संत सेवा कर रहा हूं ।’
अनुसंधान में कैसे रहना, यह मुझे आजी से सीखने मिला ! – श्रीमती तेजल नचिकेत शहा (पू. शहा आजी की पोतेबहू )
साधना क्या है ? अनुसंधान क्या है ? अनुसंधान में कैसे रहना ? ये सारी बातें मुझे पू. आजी से ही सीखने मिलीं । पू. आजी सभी देवताओं की आरती, मन के श्लोक, रामरक्षा कहती हैं । अपने काम स्वयं करने का प्रयास करती हैं ।
श्रीमती मनीषा पाठक को पू. (श्रीमती) शहा की उनके संत होने से पूर्व प्रतीत हुईं गुणविशेषताएं !
१. परिस्थिति को सहजता से स्वीकार करना
पहले वे पूना की एक कोठी में निवास करती थीं । उस कोठी में श्रीराम मंदिर था । निकट ही अधिकांश लोग रहते थे । अब आजी वाई (जिला सातारा) में रहने के लिए आने के पश्चात निकट में अधिक लोग नहीं रहते । यह परिवर्तन आजी ने स्वीकार कर लिया है ।
२. ध्यान में आए कुछ परिवर्तन
अ. उनका छायाचित्र देखकर मुझे प्रतीत हुआ कि आजी का मुंह अधिक तेजस्वी हुआ है ।’
आ. आजी की भावनाशीलता अल्प हुई है । पहले की तुलना में उनकी स्थिरता बढ गई है ।
इ. मुझे यह प्रतीत होता है कि आजी संत हुई हैं । (४.८.२०२२ को श्रीमती मालती शहाआजी के संत होने का घोषित किया गया । – संकलनकर्ता)
(‘यह सूत्र श्रीमती मालती शहाआजी के संत होने से पूर्व का होने के कारण उनका उल्लेख ‘पूज्य’ नहीं किया गया है ।’ – संकलनकर्ता)
– श्रीमती मनीषा पाठक, पुणे
(लेख के सभी सूत्रों का दिनांक : २.७.२०२२)