सदैव कृतज्ञता भाव में रहनेवालीं और सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के प्रति अपार भाव रखनेवालीं जयपुर की पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमका !
पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी के चरणों में ८० वें जन्मदिन निमित्त सनातन परिवार का सादर नमस्कार !
पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी का ८० वां जन्मदिन भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी को (१७.८.२०२२) है । उस निमित्त उनके परिजनों को अनुभव हुए उनके गुण एवं विशेषताएं यहां दे रहे हैं ।
१. श्रीमती मेघा पातेसरिया (पोती, पू. गीतादेवी खेमकाजी के पुत्र [पू. प्रदीप खेमकाजी] की पुत्री), रानीगंज, बंगाल.
१ अ. प्रेमभाव : ‘पू. खेमका दादी का सब पर अत्यधिक प्रेम है तथा वह उनके आचरण से दिखाई देता है । वे साधक अथवा अपने परिजनों से ही प्रेम नहीं करतीं, अपितु वे सबसे प्रेम करती हैं ।
आ. कठिन परिस्थिति स्वीकारना : मेरे चाचाजी की (स्व. सुदीप खेमकाजी, पू. खेमका दादी का द्वितीय पुत्र) मृत्यु दादीजी के लिए बहुत बडा आघात था; परंतु घर में कभी भी उनके संदर्भ में चर्चा होनेपर, दादीजी कहती थीं, ‘‘उसकी (सुदीप की) आयु उतनी ही थी ।’’ इतनी विकट परिस्थिति स्वीकारना और प्रति क्षण गुरुदेवजी का (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का) स्मरण करना कठिन था । उस समय वे हम सबको नामजप करने के लिए कहती थी । अतः हमें उनका आधार लगता था ।
१ इ. सदैव आंतरिक सान्निध्य में रहनेवाली पू. गीतादेवी खेमकाजी ! : वे प्रति क्षण भावावस्था में रहती हैं । मैं जब भी उनसे बात करती हूं, वे कहती हैं, ‘‘मेरी आंखों के सामने सदैव गुरुदेवजी का ही (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का) रूप रहता है । प्रति क्षण गुरुदेवजी सूक्ष्म रूप से मेरे साथ होते हैं । रात्रि में जागने पर भी वे मेरे साथ हैं, ऐसा प्रतीत होता है ।’’ उनसे बात करते समय हमारा भी भाव जागृत होता है ।’
२. श्री. आकाश गोयल (नाती, पू. गीतादेवी खेमकाजी की पुत्री का (श्रीमती पुष्पा गोयल का) पुत्र, आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत), जयपुर
२ अ. परेच्छा से व्यवहार : ‘पू. नानीजी घर में किसी भी विषय पर स्वयं का मत व्यक्त करती हैं; परंतु ‘ऐसा ही होना चाहिए’, यह उनका आग्रह कभी नहीं होता । वे सदैव परेच्छा से व्यवहार करने का प्रयत्न करती हैं ।
२ आ. साधक परिवार अपना लगना : पू. नानीजी अस्वस्थ थीं, तब एक दिन अचानक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी जयपुर में उनसे मिलने आए । तब पू. नानीजी को कृतज्ञता लगी । उन्होंने कहा, ‘‘साधक परिवार ही अपना है ।’’
२ इ. अपेक्षा घटना : पू. नानीजी को पहले लगता था कि मेरी मां को उनके पास ही रहना चाहिए; परंतु अब उनकी यह अपेक्षा घट गई है ।
२ ई. सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति अखंड कृतज्ञताभाव में होना : पू. नानीजी कुछ महीनों पूर्व एक बार रात्रि के समय प्रसाधन गृह में पैर फिसलने से गिर पडी थीं । उस समय उनके मन में गुरुदेवजी ने ही (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने ही) उनकी रक्षा की है, ऐसा कृतज्ञभाव था ।’
३. श्रीमती मधुलिका आकाश गोयल, (नाती की पुत्रवधु, पू. गीतादेवी खेमकाजी की पुत्री की (श्रीमती पुष्पा गोयल की) पुत्रवधु, आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत), जयपुर.
३ अ. प्रेमभाव : ‘जयपुर आने के उपरांत (पहले मैं झारखंड में थी ।) मेरा मन यहां लग रहा है न ?, मुझे कोई अडचन तो नहीं है ?, इस प्रकार वे बारंबार मुझसे पूछती रहती हैं ।
३ आ. साधना के लिए प्रोत्साहित करना : मैं जब भी पू. नानीजी से मिलती हूं, तब वे मुझे साधना करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं । वे सदैव कहती हैं, ‘‘गुरुदेवजी (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी) हैं; इसीलिए सबकुछ है । हमें अच्छे प्रयास कर गुरुदेवजी का मन जीतना है । उनके आंतरिक सान्निध्य में रहने का प्रयास करना है । हमारे जीवन का ध्येय साधना ही होना चाहिए ।’’
३ इ. कृतज्ञभाव :
१. पू. नानीजी में गुरुदेवजी के प्रति अखंड कृतज्ञताभाव रहता है । ‘गुरुदेवजी की (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की) कृपा से ही सबकुछ हो रहा है’, ऐसा उनका भाव रहता है । हमारा उठना-बैठना, चलना-फिरना आदि सभी केवल गुरुदेवजीकी कृपा से ही हो रहा है । रात्रि में जागने पर उन्हें लगता है कि, गुरुदेवजी की (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की) कृपा से ही वे जागी हैं ।’
२. हमारे विवाह के समय पू. नानीजी रामनाथी आश्रम में आई थीं । उस समय साधकों का सेवाभाव देखकर उन्हें अत्यंत कृतज्ञता लग रही थी । जयपुर लौेटने के पश्चात भी साधकों के प्रति वे कृतज्ञता व्यक्त करती हैं ।
३ ई. पू. नानीजी के आसपास अनेक दैवी कण दिखाई देते हैं ।
४. पू. खेमका नानीजी में अनुभव हुआ परिवर्तन
पू. नानीजी की हथेलियां और पैरों के तलवे नरम और गुलाबी हो गए हैं । नवजात शिशु के समान (२ – ३ मास के शिशु के तलवों के समान) नरम हो गए हैं ।’
– श्रीमती मधुलिका आकाश गोयल, जयपुर, राजस्थान. (२४.७.२०२२)
सनातन के संतों को उनके जन्मदिन के दिन दूरभाष (फोन) न करें !जन्मदिन पर संतों को साधकों के दूरभाष आते हैं । अतः संतों को दिनभर बहुत साधकों से दूरभाष पर बात करनी पडती है । अतः उनकी सेवा का अमूल्य समय जाता है । वर्तमान आपातकाल में प्रत्येक क्षण महत्त्वपूर्ण होने के कारण साधक संतों को मानस नमस्कार कर उनके आशीर्वाद प्राप्त करें ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले |