घर पर ही कीजिए आलू का रोपण

सनातन का ‘घर-घर रोपण’ अभियान

श्री. राजन लोहगांवकर

आलू को घर की वाटिका में सहजता से ली जानेवाली फसल के रूप में जाना जाता है । आलू सहजता से होनेवाली और बहुत ही अल्प व्यववाली फसल है । गमले, प्लास्टिक की थैलियों, बोरियों, सिरहाने के पुराने खोलों में भी हम आलू की फसल ले सकते हैं ।

१. आलू के रोपण के लिए गमलों की अपेक्षा बोरियां अधिक उपयुक्त

आलू के रोपण के लिए गमलों की अपेक्षा ३० अथवा ५० किलो अनाज की बोरियों का उपयोग किया जाए, तो उससे अधिक आय मिलेगी; क्योंकि बोरियों में आलू के विकास के लिए गमलों की अपेक्षा अधिक खाली स्थान मिलता है । आलू के रोपण के लिए २० लिटरवाली बोतलों का भी उपयोग किया जा सकता है ।

२. धूप की आवश्यकता

आलू की फसल के लिए प्रतिदिन न्यूनतम ५ से ६ घंटे तक सीधे धूप की आवश्यकता होती है; इसलिए जहां पर्याप्त धूप आती है, ऐसे स्थान पर आलू का रोपण करना चाहिए ।

३. मिट्टी और जैव उर्वरक

आलू को आम्लीय (एसिडिक) मिट्टी अधिक भाती है । इसके लिए मिट्टी की मात्रा जितना ही कंपोस्ट लें । आलू के रोपण के लिए बोरी अथवा थैली लेनेवाले हों, तो थैली के ऊपरी किनारी को बाहर की दिशा में मोडकर उसे बोरी के आधे भाग के भी नीचे तक ले जाएं । निचले भाग में लगभग ४ इंच तक मिट्टी और कंपोस्ट का मिश्रण भर लें और उस पर पानी का हल्का छिडकाव कर उसे गीला कर लें ।

४. आलू का चयन और रोपण

वर्षा ऋतु और ठंड के ऋतुओं में आलू में अंकुरण होता हुआ दिखाई देता है । इस अंकुरण को ‘आंखें’ कहा जाता है । धूप की ऋतु में ऐसे अंकुरित आलू देखकर लेने पडते हैं । जिन आलू में अधिक अंकुरण दिखाई देता हो, रोपण के लिए उन आलू का चयन करें । हम आलू के टुकडे कर भी उनका रोपण कर सकते हैं; परंतु आरंभ में उन्हें अधिक पानी दिया गया, तो इन टुकडों के सडने की संभावना होती है । इसलिए कभी भी संपूर्ण आलू का रोपण करना उचित होता है । थैली अथवा गमले के आकार के अनुसार १ अथवा २ आलू लेकर उन्हें मिट्टी में रखकर वे न्यूनतम २ इंच अंदर जाएं, इतनी मिट्टी उन पर हल्के से फैलाएं और पानी दें ।

५. मिट्टी बढाना

मिट्टी से जैसे-जैसे अंकुर ऊपर आते जाएं, वैसे ही उनके आस-पास उर्वरक मिश्रित मिट्टी डालते जाएं, जिससे अंकुर सीधे खडे होंगे । आलू के पौधों का तना बहुत कोमल (नाजुक) होने से उन्हें आधार की आवश्यकता होती है । मिट्टी अल्प होने से आलू यदि मिट्टी के ऊपरी सतह में दिखाई दिए, तो उन्हें मिट्टी से तुरंत ढंक देना चाहिए, अन्यथा मिट्टी के ऊपर आया हुआ आलू का भाग हरा पड सकता है । समय-समय पर मिट्टी डालते रहने से गमला अथवा बोरी भर गई, तो उसके उपरांत समय-समय पर केवल पानी देते रहें ।

६. कीटक व्यवस्थापन

सामान्यतः आलू में कीटकों का संक्रमण नहीं होता; परंतु कभी-कभी एक विशिष्ट प्रकार का कीडा आ सकता है । पत्ते के नीचे उसके पीले रंग के अंडे होते हैं । ये अंडे कभी दिखाई दें, तो उन्हें तुरंत वहां से निकालकर नष्ट कर देना चाहिए ।

७. आलू की कटाई

३-४ माह में पौधों के पत्ते पीले पडने लगेंगे और पौधे निस्तेज होकर नीचे गिर जाएंगे । ऐसी स्थिति में एक सप्ताह के उपरांत हमारी आलू की फसल अब कटाई के लिए योग्य है, ऐसा मान लें । उस समय आलू को पानी न दें । आलू का रोपण किया हुआ गमला अथवा बोरी को खुली भूमि में छाया में ले जाकर उसे उल्टा करें । आलू को मिट्टी से हाथ से बाहर निकालें । सूखे हुए पौधे कंपोस्ट बनाने के लिए उपयोग में लाएं अथवा अन्य गमलों में आवरण के रूप में डालें । (‘पेड के मूल में सूखे पत्ते बिछाने’ को आवरण कहते हैं । – संकलनकर्ता) गमले में स्थित मिट्टी का पुन: उपयोग करने से पूर्व उसे एक सप्ताह तक छाया में फैलाकर रखें ।

८. आलू का पुनर्राेपण

रोपण से लेकर कटाई तक का ३.५ माह का काल और घर में आलू की आवश्यकता, इन दोनों बातों को ध्यान में लेते हुए प्रत्येक माह आलू का रोपण करते रहने से घर में सदैव जैव उर्वरक से विकसित आलू उपलब्ध होते रहेंगे । आरंभ में बाजार से लाए हुए आलू को रोपण के लिए २-३ बार उपयोग किया, तो उसके उपरांत पुनर्राेपण के लिए घर में उगे आलू का ही उपयोग किया जा सकेगा ।

– श्री. राजन लोहगांवकर, टिटवाळा, जिला ठाणे. (१४.६.२०२१)

(साभार : https://vaanaspatya.blogspot.com/)

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