श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (गोकुलाष्टमी)
१. तिथि
भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी (दि. १८.८.२०२२)
२. इतिहास
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि, रोहिणी नक्षत्र में जब चंद्र वृषभ राशि में स्थित था, तब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ ।
३. महत्त्व
जन्माष्टमी पर श्रीकृष्णतत्त्व प्रतिदिन की तुलना में १००० गुना अधिक कार्यरत होता है । इस तिथि पर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ नामजप तथा श्रीकृष्णजी की अन्य उपासना भावपूर्ण करने से श्रीकृष्णतत्त्व का अधिक लाभ मिलता है ।
४. उत्सव मनाने की पद्धति
इस दिन संपूर्ण दिन उपवास रखकर रात के बारह बजे, पालने में बालकृष्ण का जन्म मनाया जाता है और फिर प्रसाद लेकर उपवास छोडते हैं अथवा अगले दिन सवेरे दहीमिश्रण (कलेवा) का प्रसाद लेकर उपवास छोडते हैं ।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्णजी का तत्त्व आकर्षित एवं प्रक्षेपित करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां बनाना कृष्णतत्त्व के स्पंदन आकर्षित एवं प्रक्षेपित करनेवाली रंगोलियों में सात्त्विक रंग भरें ।
(अधिक विवेचन हेतु पढें सनातन का लघुग्रंथ ‘देवतातत्त्व एवं आनंद आदि स्पंदनों से युक्त सात्त्विक रंगोलियां’)
‘श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजाविधि’ सनातन संस्था के जालस्थल (वेबसाइट) पर आगे दी हुई लिंक पर उपलब्ध है । |