धर्मशास्त्र अनुसार इस बार ‘रक्षाबंधन’ किस समय करें ?
रक्षाबंधन का सर्वाेत्तम काल
निर्णयसिंधु के अनुसार : रक्षाबंधन भद्राकाल में ना करे । दिन में भद्राकाल हो, तो भद्रा काल समाप्त होने पर रात्री में रक्षाबंधन करे, ऐसा निर्णयामृत में बताया है । रक्षाबंधन प्रतिपदायुक्त पूर्णिमा को ना करें ।
धर्मसिंधु के अनुसार : सूर्योदय से छह घटिका से अधिक व्यापिनी व भद्रारहित श्रावण पूर्णिमा के दिन अपराह्णकाल में अथवा प्रदोष काल में रक्षाबंधन करें । दूसरे दिन सूर्योदय के उपरांत पूर्णिमा छह घटिका से कम हो, तो पहले दिन भद्रा वर्ज्य कर, प्रदोष काल में रक्षाबंधन करें ।
अपराण्ह काल में भद्रा होने से प्रदोष काल में भद्रा समाप्त होने पर अर्थात रात्रि 8.51 से 9.56 ये रक्षाबंधन के लिए सर्वाेत्तम काल है । (कुछ विचार धारा के अनुसार प्रदोष काल अर्थात सूर्यास्त के उपरांत केवल 90 मि. का ही लिया जाता है । मात्र यहां प्रदोष काल अर्थात रात्रि का 1 चतुर्थांश भाग (one forth) लिया है।)
रक्षाबंधन के संदर्भ में दूसरा पर्याय : ज्योतिर्मयूख के अनुसार विष्टी करण का पुच्छ काल सभी कार्य के लिए शुभ बताया है । उस समय रक्षाबंधन करे । (सायं. 5.17 से 6.19)
तीसरा पर्याय : विष्टी करण का मुख का काल (साधारण सायं. 6 से रात्री 8.15) वर्ज्य कर के सुबह 10:39 के उपरांत दिनभर में कभी भी रक्षाबंधन करे ।
चौथा पर्याय : चंद्रपरत्वे शुभाशुभ कल्याणी : इस प्रकार से चंद्र मकर राशी में है, तो विष्टी का स्थान पाताल में होने से उसका पृथ्वी पर होनेवाले कार्य के लिए दोष नहीं लगेगा । इसलिए पूर्णिमा होते हुए कभी भी रक्षाबंधन कर सकते हैं ।
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