घर पर ही करें बैंगन का रोपण !
सनातन का ‘घर-घर रोपण’ अभियान
हमारे आहार में बैंगन नियमित रूप से उपयोग में लाया जाता है । जैसे कि बैंगन विभिन्न आकारों में आते हैं, वैसे ही रसोई में भी उनका विभिन्न रूप से उपयोग किया जाता है । बैंगन की सब्जी, भरता, तरुआ, पकौडे इत्यादि अनेक प्रकार से हम बैंगन खाते हैं । हम घर पर ही पूरे वर्ष तक बैंगन की फसल ले सकते हैं ।
१. बीजों से पौधों की निर्मिति
बैंगन का रोपण करने से पूर्व हमें उनके पौधे तैयार कर लेना आवश्यक होता है । पौधावाटिका से बैंगन के पौधे लाएं । (कुछ शहरों में बीजों की दुकानें होती हैं । वहां भी बैंगन के बीज मिल सकते हैं । – संकलनकर्ता) बैंगन के विभिन्न प्रकारों के अनुसार अलग-अलग बीज उपलब्ध होते हैं । अपनी इच्छा के अनुसार बीज लाएं । पौधे तैयार करने के लिए चौडा बरतन (ट्रे), कागज के गिलास अथवा प्लास्टिक अथवा गत्ते के छोटे बक्से लें । उसके नीचे पानी रिस जाने के लिए छेद बनाएं । इसमें ‘पॉटिंग मिक्स’ से (जैव उर्वरक डाली हुई मिट्टी से) आधे से थोडा ऊपर यह मिक्स भरकर उसे गीला कर लें । (‘पॉटिंग मिक्स’ के स्थान पर प्राकृतिक पद्धति से जीवामृत बनाकर पत्तों को सडाकर बनाए गए ह्यूमस (उपजाऊ मिट्टी) का भी उपयोग किया जा सकता है । – संकलनकर्ता) मिट्टी को एक समान कर उस पर पंक्तियों में बैंगन के बीज फैलाएं । बैंगन के विभिन्न प्रकारों के लिए संभवतः चौडा बरतन अथवा बक्से का उपयोग करें । इन बीजों पर आधे से पौना इंच जैव उर्वरक मिट्टी फैलाकर झारे से अथवा ‘स्प्रे’ से पानी का छिडकाव करें । बीजों में चीटीयां न लगें; परंतु जहां सूर्यप्रकाश मिलेगा, इस पद्धति से बक्से रखें । ५ से ७ दिनों में बीज उग जाएंगे । उन्हें नियमित रूप से ‘स्प्रे’ से पानी देते रहें । पानी का अधिक उपयोग करने से पौधे गिर जाएंगे; इसलिए हल्के से पानी का छिडकाव करें । सामान्य रूप से ३-४ सप्ताह में पौधे बडे हो जाएंगे । पौधे जब ६ से ८ इंच ऊंचे बनने पर अथवा उस प्रत्येक पौधे पर ४ से ६ पत्ते आने पर हम उन्हें स्थानांतरित कर सकते हैं ।
२. बैंगन के पौधों का पुनर्राेपण
बैंगन के एक पौधे के लिए १५ से २० लिटर क्षमतावाला गमला पर्याप्त होता है । गमले की गहराई एक से सवा फुट होनी चाहिए । गमले के तल में और सभी ओर से आवश्यक संख्या में छेद बनाकर उन्हें सामान्य पद्धति से भर लें । अंदर की जैव उर्वरक मिश्रित मिट्टी को गिला बनाकर मध्य में हाथ से गड्ढा बनाकर पौधों का रोपण कर उसके आस-पास की मिट्टी को हल्के हाथ से दबाएं । बैंगन के पौधे को बैंगन आने पर उसे आधार की आवश्यकता होती है; इसलिए जब पौधा छोटा हो तभी गमले में लकडी ठूंस लें । गमला बडा हो, तो २ पौधों में एक से डेढ फुट की दूरी रखें । यदि भूमि पर पौधा लगाना हो, तो २ पौधों में डेढ फुट और २ पंक्तियों में २ फुट की दूरी रखें । पौधे को आधार देने के लिए प्रत्येक में १ लकडी ठूंस लें । पौधा खडा होने पर उसे लकडी से और मोटी रस्सी से बांध दें; परंतु रस्सी पौधे के तने को जोर से न बांधें ।
३. बैंगन के पौधों की देखभाल
३ अ. भूमि से सटे पत्तों को काटना : पौधे मिट्टी में जम जाने के उपरांत अच्छे ढंग से बढने लगेंगे । पौधे को भूमि से सटे जितने पत्ते होंगे, उन्हें काटकर उन्हें पौधे के जड के पास फैलाएं । तना और पत्तों के डंठल के बीच के भाग में छोटे पत्ते दिखाई देते हों, तो उन्हें भी निकाल दें । मिट्टी के स्तर तक ठीक से धूप पहुंचे; इसके लिए पौधे के निचले भाग में स्थित पत्तों को निकाल दें । पौधे का सिरा काटने से पौधा आडा विकसित होकर उसमें अधिक शाखाएं आकर अधिक संख्या में बैंगन लगेंगे ।
३ आ. पानी और उर्वरक व्यवस्थापन : बैंगन के पौधों को नियमित और पर्याप्त पानी दें, जिससे पौधे स्वस्थ रहेंगे । पौधे पर प्लास्टिक ढंकने से मिट्टी में गिलापन बना रहेगा । (‘पौधे की जड में पत्तों का कचरा ढंकने’ को आच्छादन कहते हैं । – संकलनकर्ता) प्रत्येक १५ दिन उपरांत (१० गुना पानी डाला हुआ जीवामृत इत्यादि) तरल उर्वरक की फुहार और २-३ सप्ताह उपरांत कंपोस्ट उर्वरक (एक प्रकार का जैव उर्वरक) डालते
रहें । कंपोस्ट डालते समय उसे आच्छादन के नीचे डालकर उस पर पुनः आच्छादन लगाएं ।
३ इ. कीटक व्यवस्थापन : बैंगन की फसल पर मावा और आटेदार खटमल का संक्रमण होता है; इसलिए पेडों का नियमित रूप से निरीक्षण करते रहें । इस प्रकार के कीटक दिखते ही उसे तुरंत निकाल दें । पानी की फुहार से भी कीटक निकल जाती है । पेड पर ‘नीमार्क’ (नीम के पत्तों का अर्क) अथवा गोमूत्र अथवा कोई अन्य जैव कीटनाशक हो, तो उसकी फुहार करें, जिससे कीटक नहीं फैलेगी । इस फसल में फलमक्खी का भी बहुत संक्रमण होता है । उसके लिए जाल बनाकर बाग में रखने से उसका भी प्रभावी नियंत्रण होता है ।
३ इ १. फल मक्खियों के लिए जाल बनाना : प्लास्टिक की बोतल का मुंह काट लें । उसके अंदर तेल, जेली, पतला किया गया गूड इत्यादि कोई चिकना तरल भर दें । उस पर छोटी कटोरी में मीठी गंधवाले फलों के टुकडे रखें । बोतल में सभी ओर से लगभग १ सें.मी. व्यासवाले छेद बना लें । बोतल के ऊपरी भाग को प्लास्टिक का कागद लपेटें । इससे बाजू के छेदों से मक्खियां अंदर जाने के प्रयास में नीचे स्थित चिकने तरल पर गिरकर उन्हें चिपकेंगी । अटारी पर बनाई गई वाटिका के लिए ऐसे २-३ बोतलों से बनाए गए जाल पर्याप्त होते हैं ।
३ ई. परागण : बैंगन के पौधे में लगभग सवा से डेढ महिने में फूल आने लगते हैं । इस फसल में अपनेआप ही परागण होता है । एक ही फूल में स्त्री और पुरुष ऐसे दोनों केसर होने के कारण हवा का हल्का झोंका भी परागण के लिए पर्याप्त होता है । फूल झड रहे हों, तो हल्की से चुटकी मारने से भी परागण होकर फल आने लगते हैं ।
४. बैंगन की कटाई
फल आने से १५ से २० दिन में बैंगन की कटाई की जा सकती है । जिन बैंगनों को दबाने पर जो बैंगन कुछ कडक लगेंगे, उन्हें कटाई के लिए उचित माना जाए । बैंगनों को हाथ से तोडकर अथवा खींचकर निकालना नहीं चाहिए । उन्हें कतरी अथवा धारवाले चाकू से ही निकालना चाहिए । पेड को हानि पहुंचे; ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए ।
५. अधिक आय प्राप्त करने के लिए आवश्यक उपाय
एक बार बैंगन आने आरंभ हुए, तो उसके अगले ६-७ महिनों तक बैंगन मिलते रहेंगे । उसके उपरांत बैंगन का आकार और संख्या अल्प होगी । ऐसे समय में पौधों की कटाई करें । उसके लिए उसका सिरा काटें । ३-४ अच्छी शाखाएं और ८ से १० स्वस्थ पत्तों को रखकर शेष भाग काट दें । यह काम धूप की ऋतु में न कर संभवतः वर्षा ऋतु में करें । लगभग एक महिने में पौधे पुनः अंकुरित होंगे और उसके उपरांत पुनः पहले जैसे बैंगन आते रहेंगे; परंतु पौधों को उर्वरक और पानी देने की समय सारणी का अनुशासित पद्धति से पालन करें । ४ लोगों के परिवार के लिए १५ से २० पौधे लगाएं । कटाई के उपरांत की दूसरी बहार संतोषजनक न हो, तो पौधों का दूसरी बार रोपण करने की तैयारी आरंभ करें; परंतु पुनः उसी मिट्टी में बैंगन के नए पौधों का रोपण करना टालें ।
– श्री. राजन लोहगांवकर, टिटवाळा, जिला ठाणे. (२२.५.२०२१)
(सौजन्य : https://vaanaspatya.blogspot.com/)