हिन्दू राष्ट्र स्थापना का कार्य स्वयं का है; इसलिए उसमें आगे बढकर कार्य करना चाहिए !
दशम ‘अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ १२ से १८ जून २०२२ की समयावधि में संपन्न हुआ । इस अधिवेशन के समापन के समय हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों का मार्गदर्शन किया । वह मार्गदर्शन हम अपने पाठकों के लिए दे रहे हैं ।
१. ‘अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ का महत्त्व
हमें हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए समविचारी हिन्दू शक्तियों का एकत्रीकरण करना है । आज के अत्यल्प काल में १०० करोड हिन्दुओं का संगठन करना असंभव है । अतः जिनके मन में हिन्दू राष्ट्र है, ऐसे सभी समविचारी घटकों का संगठन करने के लिए हमें प्रधानता देनी है । जहां ऐसा संगठन बना है, वहां का हिन्दू, माता-बहनें सुरक्षित होनी चाहिए । वहां धर्मांध वृत्ति अपराध करने का साहस ही न कर सकें, ऐसा वातावरण वहां बनना चाहिए ।
‘हिन्दू राष्ट्र’ शब्द का उच्चारण करते ही इन तथाकथित सेक्युलरवादियों को उदरशूल होता है । वे अलग-अलग प्रश्न पूछने लगते हैं कि ‘आप हिन्दू राष्ट्र कैसे लाएंगे ?’, ‘हिन्दू राष्ट्र में अल्पसंख्यकों का क्या होगा ?’ इत्यादि ऐसे लोगों के लिए केवल ‘समविचारी संगठनों का एकत्रीकरण’ ही यथार्थ उत्तर है । जब हिन्दू राष्ट्र के विचार से प्रेरित सकल हिन्दू शक्ति एकत्रित दिखाई देगी, उसी क्षण यह राष्ट्र हिन्दू राष्ट्र बन जाएगा । उसके लिए किसी के बुद्धिजन्य प्रश्नों के उत्तर देने की भी आवश्यकता नहीं रहेगी ।
२. हमें धर्माधारित हिन्दू राष्ट्र चाहिए !
केवल भारत के संवैधानिक हिन्दू राष्ट्र बनने से हिन्दुओं के मानबिंदुओं की रक्षा नहीं हो पाएगी; अपितु हमें इस लोकतंत्र में धर्माधारित हिन्दू राष्ट्र का बीजारोपण करना पडेगा । सनातन धर्मग्रंथों में राजधर्म बताया गया है । वहां धर्म की सीमा के बाहर राजनीति नहीं है । धर्म की सीमा से बाहर यदि राजनीति हो, तो उसका नाम ‘उन्माद’ है, जब तक भारत में धर्माधारित राजपद्धति अपनाई नहीं जाएगी, तबतक गायें, गंगा, सती, वेद, सत्यवादी, दानशूर आदि का संपूर्ण संरक्षण नहीं हो सकता ।
आज के लोकतंत्र में जनता के पैसों की लूट करने की संपूर्ण स्वतंत्रता है । केवल राजनीतिक और प्रतिष्ठित वर्ग ही नहीं, अपितु जनता भी मदिरा के अधीन है । संक्षेप में कहा जाए, तो आज के लोकतंत्र में नास्तिकों का स्वच्छ शासन भी नहीं है ! हिन्दू राष्ट्र, वैदिक राष्ट्र, सनातन राष्ट्र जैसी बातें अभी बहुत दूर की हैं; परंतु यह धर्माधारित हिन्दू राष्ट्र कौन लाएगा ? आप और हम ही लाएंगे न ! इसके लिए जब हमारे जैसे ४००-५००, सहस्रों, दस सहस्र व लाखों व्यक्ति समर्पित होंगे, तब हिन्दू राष्ट्र-स्थापना का मार्ग प्रशस्त होगा ।
३. समान क्रियान्वयन कार्यक्रम
३ अ. वैचारिक स्तर पर हिन्दू राष्ट्र के विचार प्रसारित कीजिए ! : आज का समय हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए वैचारिक स्तर पर धु्रवीकरण करने के लिए अनुकूल है, इसे ध्यान में लेकर आप स्वयं ‘हिन्दू राष्ट्र’ विषय को प्रभावी रूप से रखनेवाले अध्येता वक्ता बनिए, साथ ही लेखन, सोशल मिडिया आदि माध्यमों से वैचारिक कार्य कीजिए !
३ आ. हिन्दू राष्ट्र के लिए संगठित होकर उपक्रम चलाइए ! : हिन्दू राष्ट्र के लिए संगठित रूप से उपक्रम चलाना, यह हमारा समान क्रियान्वयन कार्यक्रम होगा । हिन्दू राष्ट्र का विषय लोगों तक पहुंचाने के लिए हम गांव-गांव में बैठकें, सभाएं, साथ ही शहरों में विचारगोष्ठियों का आयोजन कर सकते हैं । इसके लिए ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ आपकी सहायता करेगी ।
३ इ. हिन्दू संगठनों के दमन के विरुद्ध ‘हम एक सौ पांच’ का भाव रखकर लडाई लडिए ! : सभी राजनीतिक दल और सभी धर्मद्वेषी हिन्दू संगठनों के विरुद्ध कार्यरत रहते हैं । भविष्य में किसी भी हिन्दू संगठन के विरुद्ध कोई घटना हुई, तो उस संदर्भ में हिन्दुत्वनिष्ठों की रक्षा के लिए हमें पांडवों की भांति ‘हम एक सौ पांच’ का भाव रखकर उनका बचाव करना होगा !
३ ई. हिन्दुत्व के और हिन्दू राष्ट्र के आंदोलनों में समन्वय स्थापित कीजिए ! : आज के समय में संपूर्ण देश में हिन्दुत्व और हिन्दू राष्ट्र के संदर्भ में विभिन्न आंदोलन चल रहे हैं, जिनमें पुरी के शंकराचार्यजी का ‘हिन्दू राष्ट्रसंघ’, प्रयाग धर्मसंसद की हिन्दू राष्ट्र का संविधान बनाने की प्रक्रिया, काशी विद्वत परिषद की ‘संस्कृति संसद’, देहली की ‘इक्वल राईट्स मूवमेंट’, ‘हिन्दू इकोसिस्टम मूवमेंट’, दक्षिण भारत का ‘सेव टेंपल्स’ और ‘रिक्लेम टेंपल्स’ आंदोलन जैसे आंदोलन चल रहे हैं । इन अभियानों में समन्वय स्थापित करना समय की मांग है । उस दृष्टि से संपूर्ण भारत में सर्वत्र ‘हिन्दू राष्ट्र संपर्क अभियान’ चलाया जानेवाला है, उसमें एक संगठन के रूप में अपना सहभाग दीजिए !
४. कालप्रवाह को समझ लीजिए !
चाहे हिन्दुत्व के लिए हो अथवा हिन्दू राष्ट्र के लिए हो, काल अनुकूल हो रहा है । हमने इस कालप्रवाह को समझकर कार्य किया, तो उससे इस कार्य की फलोत्पत्ति बढनेवाली है ।
४ अ. काल के अनुसार होनेवाले ध्रुवीकरण को हिन्दू राष्ट्र की दिशा में मोडिए ! : वर्तमान स्थिति में हम सभी लोग बडे स्तर पर देशप्रेमी-धर्मप्रेमी विरुद्ध देशद्रोही-धर्मद्रोही ऐसे धुव्रीकरण का अनुभव कर रहे हैं । यह ध्रुवीकरण केवल राजनीतिक दलों तक सीमित नहीं रह गया है, अपितु प्रसारमाध्यम, ‘बॉलीवुड’, विश्वविद्यालय और इतना ही नहीं, सरकारी कार्यालयों में भी यह ध्रुवीकरण चल रहा है । आज हिन्दू समाज में पहले कभी नहीं थी, इतनी जागरुकता उत्पन्न हुई है । प्रसारमाध्यम हिन्दुओं के हानियों की घटनाओं को चाहे कितना भी छिपाएं; परंतु ‘सोशल मीडिया’ पर ऐसी घटनाएं प्रसारित करने से आज का हिन्दू जागरूक दृष्टि से विचार करने लगा है । प्रतिकूल काल की इस अनुकूलता के द्वारा जागरूक और विचारी समाज को किसी राजनीतिक दल की ओर नहीं, अपितु हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना की ओर ले जाना, यह हमारा काल के अनुसार कर्तव्य है ।
४ आ. कालप्रवाह हिन्दू राष्ट्र के लिए अनुकूल हो रहा है, इसे ध्यान में लीजिए ! : ‘जैसे-जैसे धर्म की संस्थापना होने लगती है, वैसे-वैसे धर्म के एक-एक अंग का उत्कर्ष होने लगता है’, यह आध्यात्मिक सिद्धांत है । राम मंदिर के निर्माण का आरंभ होते ही केंद्रीय सत्ताओं ने ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट १९९१’ के कानून (धार्मिक स्थलों से संबंधित कानून) को रद्द किए बिना और ज्ञानवापी को कोई हानि न पहुंचाकर ‘श्री काशी विश्वेश्वर-गंगा कॉरिडॉर’ का निर्माण किया । कालप्रवाह ने पुनः एक बार न्यायालय में ज्ञानवापी के विषय पर चर्चा आरंभ की । उससे सर्वेक्षण हुआ और वहां देवताओं के शिल्प और शिवलिंग प्रकट हुए । अब इस घटना के उपरांत न्यायालय भी इन तथ्यों को अस्वीकार नहीं कर सकते और न ही केंद्रीय शासनकर्ता उसकी उपेक्षा कर सकते हैं । इससे कालप्रवाह हिन्दुओं के लिए अनुकूल बन रहा है, यही एकमात्र बोध है, यह समझ लीजिए !
४ इ. कालप्रवाह के १०० वर्षाें की पुनरावृत्ति का सिद्धांत ध्यान में रखिए ! : वर्ष १९२० में ‘स्पैनिश फ्लू’ के कारण १ करोड ८० लाख लोगों की मृत्यु हुई थी । वर्ष २०२० से चल रही कोविड महामारी से अभी तक ६३ लाख लोगों की मृत्यु हुई है । वर्ष १९४१ में भारत में मुसलमानों की जनसंख्या २४ प्रतिशत थी, जो वर्ष २०२२ में पुनः २० प्रतिशत हुई है । उस समय उन्होंने पाकिस्तान की निर्मिति का प्रस्ताव पारित किया । वे आज पुनः अलग इस्लामी भूमि की मांग करने लगे हैं । उसके कारण हमें कालप्रवाह के १०० वर्षों की पुनरावृत्ति का सिद्धांत ध्यान में रखकर सतर्क होना पडेगा ।
५. भीषण भविष्यकाल
५ अ. विश्वयुद्ध : रशिया-यूक्रेन युद्ध से विश्व विश्वयुद्ध की दिशा में अग्रसर हुआ है । चीन-ताईवान भी युद्ध की कगार पर खडे हैं । आज भारत भले ही अंतरराष्ट्रीय दृष्टि से तटस्थ है; परंतु भविष्य में उसे युद्ध में किसी न किसी पक्ष में खडा होना पडेगा । वर्तमान स्थिति को देखा जाए, तो युद्ध बहुत दूर नहीं है ।
५ आ. आर्थिक मंदी : इसके आगे यह एक बहुत बडा संकट सिद्ध होनेवाला है तथा उससे वैश्विक अन्नसंकट, ईंधन का अभाव और अन्य आर्थिक समस्याएं उत्पन्न होनेवाली हैं । इस आर्थिक मंदी के पर्व का आरंभ होने से पूर्व ही श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान आदि देशों की अर्थव्यवस्थाएं गिर रही हैं । श्रीलंका में खाद्यान्नों के मूल्य आकाश को छूकर वहां अराजक की स्थिति बनी है । भारत की स्थिति भी बहुत अच्छी है, ऐसी स्थिति नहीं है । जिस दिन विश्वयुद्ध का आरंभ होगा, उस दिन भारत भी आर्थिक संकट में होगा ।
५ इ. गृहयुद्ध : संपूर्ण विश्व में जब विश्वयुद्ध का आरंभ हो जाएगा, उस समय भारत में विद्यमान देशविरोधी शक्तियां जाति-धर्म के नाम पर गृहयुद्ध भडकाने का षड्यंत्र रच सकती है । वर्ष १९४७ में जिस प्रकार सांप्रदायिक दंगे हुए थे, उस प्रकार से भीषण परिस्थिति बनने की संभावना है । लगभग प्रत्येक मार्ग पर ही यह युद्ध लडा जाएगा । केरल राज्य में ‘पॉपुलर फ्रंट’ की एक फेरी में एक छोटे बच्चे ने ये नारे लगाए, ‘अब हिन्दुओं को अपने अंतिमसंस्कार के लिए चावल का प्रबंध कर रखना चाहिए और ईसाईयों को उनके अंतिमसंस्कार के लिए, ‘धूप’ तैयार रखना चाहिए । आप हमारी भूमि में शांति से रहिए, तभी आप शांति से जी सकेंगे; अन्यथा हम कश्मीर की भांति ‘आजादी’ कैसे लेनी है, यह भलीभांति जानते हैं ।’ ऐसी भडकाऊ नारेबाजी करते समय न पुलिस ने उसे रोका और न उसके संगठन के प्रमुखों ने !
५ ई. अराजकता : इसके आगे धीरे-धीरे राजनीतिक अराजकता बढती जाएगी । केंद्र की सरकार और राज्य की सरकारों के संबंधों के बिगडे जाने का हम अनुभव कर ही रहे हैं ।
५ उ. युद्धकाल में सत्त्वगुणी लोगों की रक्षा कीजिए ! : दक्षिण भारत के भविष्यकथन करनेवाली अनेक नाडीपट्टिकाओं में कहा गया है कि ‘तीसरे विश्वयुद्ध में पृथ्वी पर आधी जनसंख्या नष्ट हो जाएगी ।’ ऐसे में ‘परिजन, संबंधी, मित्र’, इस प्रकार से संकीर्ण विचार न कर राष्ट्र-धर्म के लिए कुछ करनेवाले और सत्त्वगुणी अर्थात धर्मपरायण सज्जन लोगों की ही रक्षा कीजिए । आगे जाकर यही सत्त्वगुणी लोग हिन्दू राष्ट्र के लिए पूरक सिद्ध होंगे ।
६. हिन्दू राष्ट्र-स्थापना की दृष्टि से साधना का महत्त्व
हम शारीरिक-मानसिक-बौद्धिक स्तर पर हिन्दू राष्ट्र का कार्य कर रहे हैं । ‘धर्माे रक्षति रक्षितः ।’ इस धर्मवचन के अनुसार प्रत्यक्ष भगवान ही हमारी रक्षा करते हैं । आज सूक्ष्म से अनेक संत हमारी रक्षा का कार्य कर रहे हैं । जब हम हिन्दू राष्ट्र का स्थूल का कार्य करते हैं, उस समय सूक्ष्म-जगत में यही कार्य अनेक संत कर रहे होते हैं । कुछ संत तो यज्ञ और अनुष्ठानों के माध्यम से आध्यात्मिक स्तर पर यही कार्य कर रहे हैं । उसके कारण हम जीवित हैं, इसे ध्यान में रखकर हमें भी ईश्वर की आराधना के रूप में नामजपादि साधना करनी चाहिए, जिससे हमारे चारों ओर सुरक्षा-कवच तैयार होगा और संतों की साधना एवं यज्ञों के कारण उत्पन्न होनेवाली शक्ति का हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु अधिक मात्रा में उपयोग किया जाएगा । अब कुछ ही समय में युद्ध का भीषण संकट आनेवाला है, ऐसे समय में जिसके पास भगवान के नाम का सामर्थ्य होगा, वही जीवित रहेगा । इसलिए राम, कृष्ण, शिव, नारायण आदि देवताओं में से किसी भी देवता के नाम का नित्य स्मरण करते रहिए !
– सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति