सत्ययुग का महत्त्व !
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘सत्ययुग में नियतकालिक, दूरदर्शन-वाहिनियां, जालस्थल (पीरियोडिकल, चैनल, वेबसाइट) इत्यादि की आवश्यकता ही नहीं थी; क्योंकि बुरे समाचार ही नहीं थे और सभी ईश्वर के आंतरिक सानिध्य में रहने के कारण आनंद में थे ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले