धर्मांध दंगाइयों की याचिका एवं देहली उच्च न्यायालय की भूमिका !

पू. (अधिवक्ता) सुरेश कुलकर्णीजी

१. देहली के जहांगीरपुरा दंगे के धर्मांध दंगाइयों द्वारा अन्वेषण से बचने के लिए देहली उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट करना एवं अपने साथ-साथ परिजनों को भी कष्ट न देने के विषय में आदेश देने के लिए कहना

१६.४.२०२२ को श्री हनुमान जयंती के दिन देहली के जहांगीरपुरा में निकाली गई शोभायात्रा पर धर्मांधों ने ईंट, पत्थर, कांच इत्यादि फेंके । इससे भारी मात्रा में क्षति हुई । ५०० से भी अधिक धर्मांधों को उकसाने एवं आक्रमण करनेवाला शेख ईश्रफिल देहली उच्च न्यायालय में गया । वहां उसने सर्वप्रथम पुलिस को उसके विरुद्ध प्रविष्ट अपराध का अन्वेषण करते समय विनती की कि ‘याचिकाकर्ता (ईश्रफिल) एवं उसके परिजनों को कष्ट न दिया जाए, इस प्रकार के आदेश दिए जाएं ।’ इसके साथ ही यह भी कहा, ‘पुलिस को निष्पाप नागरिकों के मन में भय उत्पन्न करने का अधिकार नहीं; इसलिए कि इससे उनके मूलभूत अधिकारों का हनन होता है ।’ संक्षेप में ऐसी याचिका करने का अर्थ है पुलिस के अन्वेषण में एक प्रकार से बाधा निर्माण करना ।

इस प्रकरण में सरकार एवं पुलिस ने न्यायालय के समक्ष विस्तृत जानकारी रखी । उन्होंने बताया कि श्री हनुमान जयंती की शोभायात्रा का जहांगीरपुरा भाग से निकलते समय मस्जिद के निकट आने पर याचिकाकर्ता धर्मांध ने हिन्दुओं के विरुद्ध अपने समुदाय के ५०० लोगों को उकसाया । इसके साथ ही कानून हाथ में लेकर कानून-सुव्यवस्था भंग करने का प्रयत्न किया । इन सभी ने पत्थर, कांच की बोतलें, ईंटें, तलवारें, बंदूकें इत्यादि से हिन्दुओं एवं पुलिस पर आक्रमण किया । इसके साथ-साथ अनेक स्थानों पर आगजनी की । धर्मांधों को नियंत्रण में लाने के लिए पुलिस को ५२ बार अश्रु गैस छोडने के साथ-साथ गोलीबारी करनी पडी । यह एक बडा षड्यंत्र है ।

२. पुलिस द्वारा दंगाइयों पर अपराध प्रविष्ट

दंगे का अन्वेषण करते समय पुलिस ने धर्मांध दंगाइयों के घरों की छतों पर पत्थर, कांच की बोतलें एवं अन्य सामग्री रखी पाई । यह सामग्री याचिकाकर्ता के घर में भी मिली । इस धर्मांध ने गत अनेक दिन बंदी (गिरफ्तारी) टालने का प्रयत्न किया । इस दंगे के प्रकरण में पुलिस ने धर्मांधों के विरुद्ध ‘दंगा करना, सरकारी कर्मचारियों के काम में बाधा लाना, गंभीर रूप से घायल करना, षड्यंत्र रचना, आगजनी, सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाना, दो समुदायों में द्वेष भडकाना, दंगे करने के लिए समूह को उकसाने के लिए ‘आर्म्स’ (शस्त्र) कानून’ के अंतर्गत अपराध प्रविष्ट किया है ।

३. धर्मांध द्वारा न्यायालय के सामने पुलिस अन्वेषण को झुठलाने का प्रयत्न

धर्मांध ने अपनी याचिका में तर्क प्रस्तुत किए, ‘उसके पिता की मृत्यु १४ अप्रैल को हुई । उनकी मृत्यु के पश्चात धार्मिक विधि करने के लिए वह सगे-संबंधी एवं परिचितों सहित लगभग ५०० लोगों को लेकर दफनभूमि में (कब्रिस्तान में) गया था । दंगे में उसका कोई दोष न होते हुए पुलिस ने अकारण धर्मांध के भाई को बंदी बना लिया एवं अन्य व्यक्तियों को भी पुलिस कष्ट दे रही है ।’ पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर न्यायालय ने उसपर विचार किया । धर्मांधों ने खतरनाक शस्त्रों का उपयोग किया था । धर्मांधों के प्रक्षुब्ध जमाव को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को ५२ बार अश्रु गैस का उपयोग करना पडा था । आरोपी उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट कर बंदी टालकर अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिभूति (जमानत) मांग रहा है । ‘प्रकरण का अन्वेषण आरंभ हो जाने से उसे प्रतिभूति न दी जाए एवं न ही उसमें हस्तक्षेप किया जाए’, ऐसा उच्च न्यायालय का मत हो गया । सर्वोच्च न्यायालय के पुराने निर्णयों का विचार कर, उच्च न्यायालय ने कहा कि पुलिस एवं न्यायव्यवस्था एक-दूसरे की सहायता से पूरक भूमिका लेकर नागरिकों का मूलभूत अधिकार एवं कानून-सुव्यवस्था की रक्षा करती है । अन्वेषण करना पुलिस का महत्त्वपूर्ण अधिकार है । इसलिए कानून एवं सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए उन्हें अन्वेषण न करने देना आवश्यक है, यह न्यायालय ने ध्यान में रखा है ।

४. पुलिस के अन्वेषण में बाधा न आने के उद्देश्य से देहली उच्च न्यायालय द्वारा धर्मांध की याचिका अस्वीकार

यह सूत्र ध्यान में रखकर न्यायालय ने धर्मांध की याचिका अस्वीकार की । उसमें एक बार नहीं, अपितु अनेक बार प्रविष्ट किया है कि ‘याचिकाकर्ता (धर्मांध) ५०० लोगों का समुदाय लेकर आक्रमण कर रहा था । इसलिए इस घटक को न्यायालय पुलिस के अन्वेषण में व्यत्यय लाना नहीं चाहते । उसका उद्देश्य केवल अन्वेषण में व्यत्यय लाना एवं उसे रोकना, यही था । मूलभूत अधिकार के नाम पर पुलिस को अन्वेषण न करने देना, यह उचित नहीं होगा । पहले दंगे में सम्मिलित होना, तत्पश्चात मूलभूत अधिकार का हनन हो रहा है कहना, यह उचित नहीं । उसे अपने कर्तव्य एवं कानून-सुव्यवस्था का पालन करना चाहिए, इस कारण हम उसकी याचिका पर विचार नहीं कर रहे’, ऐसा कहते हुए न्यायालय ने धर्मांध की देहली पुलिस के विरुद्ध की याचिका अस्वीकार की ।

श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।

– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, संस्थापक सदस्य, हिन्दू विधिज्ञ परिषद एवं अधिवक्ता, मुंबई उच्च न्यायालय. (४.६.२०२२)