‘सर्वधर्म समभाव’ शब्द की व्यर्थता !
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘जिस प्रकार अनपढ व्यक्ति का यह कहना कि ‘सभी भाषाओं के अक्षर समान होते हैं’, उसका अज्ञान दर्शाता है । उसी प्रकार ‘सर्वधर्म समभाव’ कहनेवाले अपना अज्ञान दर्शाते हैं । ‘सभी औषधियां, सभी कानून समान ही हैं’, ऐसा ही कहने के समान है, ‘सर्वधर्म समभाव’ कहना !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले