धर्म के आधार पर मुसलमान एवं ईसाईयों को निधि का वितरण करना, यह कौनसी धर्मनिरपेक्षता ? – एम. नागेश्वर राव, भूतपूर्व प्रभारी महासंचालक, सीबीआई
रामनाथी (गोवा) – ‘‘सरकार की तिजोरी में एकत्र होनेवाला कर धर्मनिरपेक्ष है; परंतु उसका लाभ कुछ लोगों को ही दिया जाता है । अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए स्वतंत्र मंत्रालय है; परंतु बहुसंख्य हिन्दुओं का हित देखने के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं । गत ८ वर्षाें में अल्पसंख्यकों की विविध योजनाओं पर ३७ सहस्र ६६९ करोड रुपए व्यय किए गए हैं, इसके साथ ही राज्यों में अल्पसंख्यकों पर व्यय की गई निधि उसमें मिलाने पर यह निधि दुगुनी हो जाएगी । वर्ष २०११ की जनगणनानुसार कुल जनसंख्या के २० प्रतिशत मुसलमान एवं ईसाईयों पर निधि व्यय की जा रही है । जिन्हें निधि की आवश्यकता है, उन्हें निधि देना चाहिए; प्रश्न है कि विकासकामों में धर्म कहां से आ गया ? यह तुष्टीकरण का विषय है । अल्पसंख्यकों में आनेवाले पारसी पंथियों को कुछ मात्रा में ही निधि मिलती है । सामान्यतः जैन लोग सधन होते हैं, तो बौैद्ध हिन्दू धर्म के साथ ही होते हैं । इसलिए इसमें से अधिकतम निधि मुसलमान एवं ईसाईयों पर ही व्यय की जाती है । धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों पर इतनी बडी मात्रा में निधि व्यय करना, इसमें कौनसी धर्मनिरपेक्षता है ? संविधान यदि धर्मनिरपेक्ष है, तो सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए’’, ऐसा प्रतिपादन सीबीआई के भूतपूर्व प्रभारी महासंचालक श्री. एम. नागेश्वर राव ने किया । दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में ‘धर्मपरिवर्तन रोकना एवं घरवापसी की योजना’ विषय पर हो रहे उद्बोधन सत्र में वे बोल रहे थे ।
सत्ता भले ही साथ न दे, तब भी हिन्दुओं द्वारा धर्म के आधार पर मार्गक्रमण करने से उन्हें निश्चित ही शक्ति मिलेगी ! – नीरज अत्री, अध्यक्ष, विवेकानंद कार्य समिति, पंचकुला, हरियाणा..
अनेक मुसलमान इस्लाम छोडने की मन:स्थिति में हैं । उनकी सहायता करनी चाहिए । पहले घरवापसी (इस्लाम त्यागकर हिन्दू धर्म में प्रवेश कर चुके) मुसलमान समाज के सामने आने के लिए तैयार नहीं था; परंतु अब ‘घरवापसी’ किए हुए अनेक मुसलमान समाज के सामने आ रहे हैं । मुसलमान समाज में इस्लाम के नाम पर दुकानदारी चलाई जाती है । १०० वर्षाें का इतिहास देखें तो ध्यान में आएगा कि मुसलमानों ने हिन्दुओं एवं उनकी महिलाओं पर अनन्वित अत्याचार किए हैं । इसका अध्ययन कर स्वामी दयानंद सरस्वती ने प्रथम ‘घरवापसी’ अभियान आरंभ किया; परंतु वर्ष १९१४ में मोहनदास गांधी ने जागृत हुए हिन्दू समाज को पुन: सुलाने का काम आरंभ किया । गांधी ने ‘अहिंसा एवं सर्वधर्मसमभाव’ की बातें सिखाकर हिन्दुओं को दुर्बल बनाया । आज हिन्दू एवं हिन्दू धर्म पर हुए आघातों को सामाजिक माध्यमों से प्रत्युत्तर देना आरंभ किया । भाजपा की भूतपूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा को धर्मांध एवं गुंडों से दुर्भाग्यपूर्ण बर्ताव मिल रहा है । हिन्दुओं को उनका समर्थन करना चाहिए । ज्ञानवापी समान प्रश्न के लिए संघर्ष करना आवश्यक है । भले ही सत्ता साथ न दे, तब भी धर्म के आधार पर हिन्दुओं को मार्गक्रमण करने से उन्हें निश्चित रूप से शक्ति मिलेगी । हिन्दुओं को उनका समर्थन करना चाहिए । ज्ञानवापी समान प्रश्न के लिए संघर्ष करना आवश्यक है । भले ही सत्ता साथ न दे, तब भी धर्म के आधार पर हिन्दुओं को मार्गक्रमण करने से उन्हें निश्चित रूप से शक्ति मिलेगी ।
हिन्दू धर्मानुसार साधना करने पर अन्य पंथियों में प्रेम एवं अपनापन निर्माण हुआ ! – स्वामी निर्गुणानंद पुरी, कोषाध्यक्ष एवं शाखा सचिव, इंटरनेशनल वेदांत सोसाइटी, कोलकाता, बंगाल
स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘हिन्दुओं के पास प्रचुर मात्रा में आध्यात्मिक संपत्ति है, जो उन्हें पता ही नहीं ।’ वास्तव में हिन्दुओं की स्थिति ऐसी ही है । संसार में हिन्दुओं की संख्या अधिक है, तब भी हिन्दू धर्मानुसार कर्म करनेवाले हिन्दू अल्प हैं । इंडोनेशिया में मुसलमानों की संख्या अधिक है । उन्होंने मस्जिद के मौलवियों से (इस्लाम के धार्मिक नेताओं से) दीक्षा भी ली है । ऐसा होते हुए भी वहां के कुछ मुसलमानों को ‘ऑनलाइन’ अध्यात्म एवं वेद की जानकारी देने पर वे हिन्दू धर्म की ओर आकृष्ट हो रहे हैं । केवल हिन्दू धर्मानुसार साधना करने से उनमें प्रेम एवं अपनापन उत्पन्न हो रहा है । उनकी समझ में आ गया है कि ‘सनातन हिन्दू धर्म में हिंसा नहीं सिखाई जाती, अपितु वहां प्रेम सिखाया जाता है ।’ यूरोप में ईसाई चर्च में नहीं जाते, वे केवल नाम के ही ईसाई हैं । ‘ऑनलाइन’ संपर्क द्वारा ऐसे लोगों को हमने अपने साथ कुछ दिन आध्यात्मिक सान्निध्य के लिए बिताने के लिए कहा । वैसा करने पर धीरे-धीरे उनमें हिन्दू धर्म के प्रति आकर्षण एवं प्रेम उत्पन्न हुआ । आगे जैसे-जैसे वे साधना करने लगेंगे, उन्हें अपनी सुंदर आध्यात्मिक शक्ति अनुभव होगी । इस प्रकार हम संपूर्ण विश्व को हिन्दू राष्ट्र में परिवर्तित कर सकते हैं । हम कहते हैं, ‘सत्यमेव जयते’ । सत्य के बिना विजय प्राप्त नहीं हो सकती । हिन्दू शास्त्र में मोक्ष एवं मुक्ति पाने के विषय में सीख दी जाती है, वैसी सीख जगत में अन्य पंथों में नहीं दी जाती ।