चीन से भारत में निवेश करने की पाश्चात्त्य आस्थापनों की रुचि !
वॉशिंग्टन – विविध अर्थतज्ञों के अनुसार चीन वर्तमान में जिस नीति पर काम कर रही है वह नीति यदि सफल हो गई, तो वह वर्ष २०२८ में जगत की सबसे बडी अर्थव्यवस्था के रूप में जगत के सामने आएगी । हाल ही में प्रसिद्ध हुए ‘ब्लूमबर्ग’के ब्योरे में अर्थतज्ञों के भी मत प्रस्तुत किए गए हैं । ‘ऐसा होते हुए भी चीन का यह स्वप्न साकार नहीं होगा ’, यह उल्लेख भी इस ब्योरे में किया है । एक अर्थ में यह ब्योरा चीन के लिए निराशादायी हो, तब भी भारत के लिए वह आशादायी है । इसका कारण यह कि चीन से बाहर निकल गए २३ प्रतिशत युरोपीय निवेशियों में से सर्वाधिक निवेशियों ने भारत में निवेश किया है । इसके अतिरिक्त इंडोनेशिया एवं विएतनाम में भी निवेश बढ रहा है ।
भविष्य में चीन-अमेरिका संघर्ष होने की संभावना !
चीन में निवेश किए हुए अमेरिकी आस्थापनों का विचार करें, तो आनेवाले काल में चीन से बाहर निकलने का प्रमाण ५० प्रतिशत हो सकता है । इसका कारण यह है कि भविष्य में जगत की सबसे बडी इन दो अर्थव्यवस्थाओं में संघर्ष बढेगा । इस अवसर पर अमेरिका को चीन में व्यापार करना कठिन होगा ।
निवेशियों की चीन से परावृत्त होने की कारणमीमांसा !
१. कोरोनाकाल में शून्य सहिष्णुता (जीरो टॉलरन्स) नीति के कारण विदेशी निवेशियों को चीन में निवेश करना कठिन हो गया है । कुल मिलाकर चीन की कोरोनासंबंधी कठोर नीतियों के कारण वहां के आर्थिक विकास का दर केवल ५ प्रतिशत रह गया है, इसके साथ ही बेरोजगारी में ६ प्रतिशत वृद्धि हुई ।
२. चीन की अर्थव्यवस्था मुख्यरूप से ‘रियल इस्टेट’ (अचल संपत्ति) क्षेत्र पर निर्भर है । गत वर्ष इस क्षेत्र को भारी क्षति पहुंची थी । यह संकट शीघ्र समाप्त नहीं होगा ।
३. रूस-युक्रेन युद्ध की पार्श्वभूमि पर ‘चीन द्वारा यदि तैवान पर आक्रमण किया गया’, ‘हाँगकाँग में हो रहे चीनविरोधी आंदोलन को बलपूर्वक नष्ट करने का प्रयत्न किया गया’, इसके साथ ही ‘अन्य पडोसी देशों के विरोध में सेना अभियान आरंभ किया गया है’, तो चीन में निवेश करने का भविष्य रहेेगा नहीं । इसलिए विदेशी निवेशी वहां से बाहर निकल रहे हैं ।
४. इस सर्व पार्श्वभूमि पर यदि चीन से बाहर निकलनेवाले आस्थापनों को भारत ने अपनी ओर मोड लिया, तो भारत ‘जगत का नया कारखाना’ बन सकता है, ऐसा अर्थतज्ञों का मत है ।