उच्चतम न्यायालय ने लक्ष्मणरेखा पार की !
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नई देहली – उच्चतम न्यायालय द्वारा नूपुर शर्मा के संबंध में प्रविष्ट निरीक्षण अत्यंत गंभीर स्वरूप के होने से उनकी अनदेखी नहीं चलेगी । न्यायालय ने लक्ष्मण रेखा पार की है । याचिका के माध्यम से की गई मांग और कानून की दृष्टि से न्यायालय द्वारा प्रविष्ट निरीक्षण निराधार हैं । यह निरीक्षण न्याय के सभी नियमों का उल्लंघन है, पूरे देश के १५ न्यायाधीश, ७७ प्रशासनिक अधिकारी और २५ सैन्य अधिकारियों ने ऐसा मत व्यक्त किया है ।
भाजपा की तत्कालीन प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा मोहम्मद पैगंबर के विषय में किए कथित आपत्तिजनक वक्तव्यों के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति पारडीवाला और न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कुछ दिनों पूर्व निरीक्षण प्रविष्ट किए थे । न्यायालय ने कहा था कि उदयपुर हत्याकांड, साथ ही पूरे भारत में हुए हिंसात्मक आंदोलनों के लिए अकेली शर्मा ही उत्तरदायी हैं । नूपुर शर्मा के विरुद्ध पूरे देश में प्रविष्ट किए गए अपराधों की सुनवाई एकसाथ देहली में होनी चाहिए, शर्मा ने उच्चतम न्यायालय में इस मांग की याचिका प्रविष्ट की थी । इस पर न्यायालय ने शर्मा को ही फटकार लगाई थी ।
देश के 117 गणमान्य नागरिकों ने सीजेआई को पत्र लिखकर जजों की टिप्पणी पर नाराजगी जताई है
(@sanjoomewati)— AajTak (@aajtak) July 5, 2022
न्यायपालिका के इतिहास में नियमों का ऐसा भयंकर उल्लंघन दूसरा कोई नहीं होगा !
इस पत्र में आगे बताया गया है कि, सर्वोच्च न्यायालय के निरिक्षण दूर्भाग्यपूर्ण है । यह निरिक्षण मूल आदेश का भाग नहीं है इसलिए वह न्यायिक योग्यता एवं निष्पक्षता के जांच पर पवित्र नहीं ठहराया जा सकता । न्यायपालिका के इतिहास में नियमों का इस प्रकार के भयंकर उल्लंघन दूसरा कोइ नहीं हैं ।
उच्चतम न्यायालय का कहना अतार्किक !
‘इस देश में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए नूपुर शर्मा ही उत्तरदायी हैं, न्यायालय का ऐसा कहना अतार्किक है । इस माध्यम से उदयपुर में सिर काटने वालों को एक प्रकार से निर्दोष ठहराया जा रहा है’, पत्र में ऐसा भी कहा गया है ।
भारतीय संविधान के सार और आत्मा को सूली पर चढा दिया !
न्यायालय के इन निरीक्षणों का लोकतांत्रिक मूल्यों और देश की सुरक्षा पर गंभीर परिणाम हो सकता है । इस कारण इसमें सुधार के लिए तत्परता से कदम उठाने चाहिए । ये निरीक्षण उदयपुर के सिर काटे जाने की घटना की तीव्रता को अल्प करने का प्रयास करते हैं । जनभावना बडी मात्रा में भडक उठी है । इन निरीक्षणों के माध्यम से भारतीय संविधान के सार और आत्मा को सूली पर चढाया जा रहा है । इस पत्र में ऐसा भी कहा गया है कि ऐसे निंदनीय निरीक्षणों के कारण याचिकाकर्ता के विरुद्ध मुकदमा न चलाकर उसे ही दोषी ठहराना और याचिका में अंकित सूत्रों पर न्याय देने से मना करना, यह लोकतांत्रिक समाज का भाग नहीं हो सकता ।
नूपुर शर्मा के विरुद्ध आरोप और इस उद्देश्य से प्रविष्ट किए गए सभी अपराध एक ही अपराध के लिए हैं । भारतीय संविधान की धारा २० (२) के अनुसार एक ही अपराध के लिए एक से अधिक मुकदमे और दंड हो नहीं सकते । यह प्रत्येक व्यक्ति का मूलभूत अधिकार है, इस पत्र में ऐसा भी कहा गया है ।
‘मानवाधिकार और सामाजिक न्याय मंच’ की ओर से तीव्र अप्रसन्नता व्यक्त !उच्चतम न्यायालय के निरीक्षणों पर जम्मू-काश्मीर के ‘मानवाधिकार और सामाजिक न्याय मंच’ की ओर से भी तीव्र अप्रसन्नता व्यक्त की गई है । न्यायमूर्तियों की ओर से प्रविष्ट किए गए निरीक्षण संविधान विरोधी हैं जिन्हें वापस लेना चाहिए, मंच ने इसके लिए मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमणा को पत्र लिखा है । |