हिन्दू राष्ट्र संसद में पाठ्यपुस्तकों में भारत का तेजस्वी इतिहास अंतर्भूत करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित !
हिन्दू राष्ट्र संसद में हिन्दू शिक्षापद्धति अपनाने पर विचारमंथन !
रामनाथी, १७ जून (संवाददाता) – गोवा में चल रहे दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन की हिन्दू राष्ट्र संसद में ‘पाठ्यपुस्तकों में भारत का तेजस्वी इतिहास अंतर्भूत किया जाए’, यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया । संसद के अधिकांश सदस्यों ने पाठ्यपुस्तकों में भारत का इतिहास बनानेवाले संतों, राष्ट्रपुरुष और क्रांतिकारियों का समावेश करने की मांग की । १६ जून को ‘वर्तमान स्थिति में हिन्दू शिक्षापद्धति कैसे अपनाई जाए ?’, इस विषय पर संपन्न हिन्दू राष्ट्र संसद में सभापति मंडल ने बहुमत से यह प्रस्ताव पारित किया । इस अवसर पर सभापति के रूप में पंचकुला, हरियाणा की विवेकानंद कार्य समिति के अध्यक्ष श्री. नीरज अत्री, उपसभापति के रूप में हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी और सचिव के रूप में हिन्दू जनजागृति समिति के पूर्वाेत्तर भारत समन्वयक श्री. शंभू गवारे ने काम देखा ।
‘केंद्र शासन जिन विचारों का होता है, उसे अनुकूल पाठ्यक्रम सुनिश्चित किया जाता है । आज की शिक्षापद्धति में ‘शिक्षा का भगवाकरण’ यह शब्दप्रयोग प्रचालित कर उसे बदनाम किया जा रहा है; उसके कारण ‘शिक्षापद्धति में हिन्दू शिक्षानीति अपनाई जाए’, इस पर चर्चा होनी चाहिए’, ऐसा बताकर सभापति श्री. नीरज अत्री ने संसद में चर्चा का आरंभ किया ।
सदस्यों के प्रस्ताव
१. श्री. सत्येंद्र द्विवेदी, संचालक, रुद्रप्रयाग विद्यामंदिर, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश – शिक्षक छात्रों को प्रामाणिकता के साथ न सिखाते हों, तो उन पर कार्यवाही होनी चाहिए । शिक्षकों द्वारा सिखाए गए विषय में से ८० प्रतिशत विषय का छात्रों का आंकलन नहीं हुआ, तो उस शिक्षक को वेतन नहीं देना चाहिए ।
२. श्री. राजू श्रीवास्तव, उत्तरप्रदेश – पाठ्यक्रम सुनिश्चित करनेवाले शिक्षा मंडल में संतों का सहभाग होना चाहिए !
३. श्री. देवीदास भंडारी, महाराष्ट्र – विद्यालयों में छात्रों का मन एकाग्र कैसे हो सकेगा ?, इइकी शिक्षा दी जाए । शिक्षक यदि उच्च शिक्षा प्राप्त नीतिमान, विनम्र, आज्ञाधारक और चरित्रवान होंगे, तभी उनकी शिक्षा वैध मानी जाए । शिक्षकों की नियुक्ति करते समय क्या उनका चरित्र शुद्ध है, इससे उनका मूल्यमापन किया जाए ।
४. श्री. उमेश सोनार, जलगांव, महाराष्ट्र – मुघलों ने हिन्दुओं पर जो अत्याचार किए, उसका इतिहास विद्यालयीन पाठ्यक्रम में सिखाया जाना चाहिए । छत्रपति शिवाजी महाराज ने किस प्रकार से अफजलखान का वध किया और शाहिस्तेखान की उंगलियां काट दीं, यह हिन्दुओं के पराक्रम का इतिहास युवा पीढी को सिखाया जाना चाहिए ।
सभाति नीरज अत्री द्वारा पारित किए गए प्रस्ताव !
१. पूर्वजों द्वारा की गई चूकों को सुधारना और उनका पराक्रम सिखना; ये इतिहास सिखाने के उद्देश्य हैं ।
२. अधिकांश छात्र हिन्दू होने से विद्यालयों में अंग्रेजी त्योहार नहीं मनाए जाने चाहिएं । मुख्य सरकारी अधिकारी और जनप्रतिनिधियों के बच्चों को सरकारी विद्यालयों में शिक्षा लेनी चाहिए ।
३. मानसिक एकाग्रता एवं सर्वांगीण विकास के लिए विद्यालयों में ‘योग शिक्षा’ दी जाए । पाठ्यपुस्तकों में भगवद्गीता का समावेश किया जाए ।
४. भारत का सच्चा इतिहास सिखाया जाए । जर्मनी में यहुदियों द्वारा किए गए अत्याचारों का इतिहास सिखाया जाता है । उसी आधार पर इस्लामी और ईसाईयों द्वारा भारत में किए गए अत्याचारों का इतिहास सिखाया जाए ।
५. जर्मनी, फ्रान्स और इस्राईल इन देशों में मातृभाषा में शिक्षा दी जाती है, जिसका संबंधित देशों को सकारात्मक लाभ हुआ है । मातृभाषा में दी जानेवाली शिक्षा के कारण बच्चों का अधिक विकास होता है । इससे भारत को विश्व में पुनः अपना स्थान बनाना संभव होगा ।
भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए धर्माधारित शिक्षाव्यवस्था की आवश्यकता ! – सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी, उपसभापति, हिन्दू राष्ट्र संसद
मनुष्य के रूप में जन्म लिया है; इसलिए ‘मनुष्यजन्म का क्या लक्ष्य है ?’, इसे हमें समझ लेना होगा । वह समझ न लेने के कारण हम में आंतरिक अशांति उत्पन्न होती है । ‘आनंदप्राप्ति’ मनुष्यजीवन का ध्येय है । उसके लिए मनुष्य को सुख और दुख के कारण समझाने चाहिएं । आज की शिक्षाव्यवस्था से निकलनेवाले छात्रों में व्यसनाधीनता है । छात्रों की आत्महत्याओं की संख्या भी लक्षणीय है । जीवन में आत्मबल उत्पन्न करने के लिए शिक्षा में धर्म की आवश्यकता है । धर्म और अधात्म अंग्रेजी माध्यम के द्वारा परिपूर्ण पद्धति से सिखाए नहीं जा सकते । गुरुकुल शिक्षापद्धति में ‘वसुवैध कुटुंबम्’ की संकल्पना है । भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए और भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए धर्माधारित शिक्षाव्यवस्था की आवश्यकता है ।
उपसभापति सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी द्वारा रखे गए अन्य सूत्र …
१. ‘मन के विरुद्ध घटित होनेवाली घटनाओं का सामना करने की शक्ति उत्पन्न करनेवाली शिक्षा ही वास्तविक शिक्षा है ।’ आज की शिक्षापद्धति में मनुष्य के दुख का कारण सिखाए न जाने से युवा पीढी में व्यसनाधीनता और आत्महत्या की संख्या बढी है ।
२. आज की युवा पीढी में अपनी वस्तु दूसरों की देने की वृत्ति नहीं है । आज की शिक्षाव्यवस्था में स्पर्धा बढी है । स्पर्धा मनुष्य में द्वेष और ईर्ष्या उत्पन्न करती है । हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना ‘वसुधैव कुटुंबकम्’का भाव जागृत करनेवाली है । विनाश की अग्रसर समाज को पुनः विश्वव्यापी बनाने के लिए शिक्षापद्धति के माध्यम से प्रयास होने चाहिएं ।
उपसभापति ने रखीं शिक्षापद्धति में समाहित त्रुटियां !
उपसभापति सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने आज की शिक्षापद्धति में समाहित त्रुटियां बताते हुए कहा कि शैक्षणिक संस्थाओं में कितना चंदा मिलता है, इसके आधार पर शिक्षक की नियुक्ति की जाती है । इस प्रकार से यदि शिक्षकों की नियुक्ति होती हो, तो ऐसे शिक्षक छात्रों का चरित्र क्या बनाएंगे ? संस्था के लिए चंदा कैसे मिलेगा, इसके आधार पर यदि शिक्षक की नियुक्ति होती हो, तो उससे संस्कार देनेवाले का चरित्र कैसे होगा ? छात्रों को सिखाने से पूर्व संबंधित शिक्षक को विषय की तैयारी करनी आवश्यक है । आज की शिक्षापद्धति में शिक्षकों का मूल्यमापन करने की व्यवस्था नहीं है ।
भारत में भारतीय शिक्षापद्धति का होना शिक्षा का भगवाकरण नहीं है ! – अधिवक्ता उमेश शर्मा, सदस्य, विशेष संसदीय समिती, हिन्दू राष्ट्र संसद
भारत की शिक्षापद्धति भारतीय ही होनी चाहिए । शिक्षा अपनी भाषा में दी जानी चा हिए । छात्र मातृभाषा में दी जानेवाली शिक्षा का तुरंत ग्रहण करते हैं; परंतु यही शिक्षा यदि अंग्रेजी भाषा में होती है, तो वे रटाई करते हैं । रुस, फ्रान्स, जर्मनी, इटली जैसे देशों में वहां की मातृभाषा में शिक्षा दी जाती है । अस इस्राईल ने भी मातृभाषा में शिक्षा देना आरंभ किया है ।
अमेरिका का ‘अंगूठाछाप व्यक्ति’ भारत में आकर अंग्रेजी बोलने लगे, तो क्या वह ज्ञानी हो गया
‘अंग्रेजी केवल एक भाषा है । वह ज्ञानभाषा नहीं है । अंग्रेजी बोलते का अर्थ ज्ञानी है, ऐसा नहीं होता । हम अंग्रेजी से ग्रसित हैं । हमें अपनी मातृभाषा में शिक्षा लेनी चाहिए । हम बच्चों को अंग्रेजी में शिक्षा देकर उन्हें मातृभाषा से दूर रखते हैं । अमेरिका का कोई ‘अंगूठाछाप व्यक्ति भारत में आकर अंग्रेजी बोलने लगे, तो क्या वह ज्ञानी हो गया ?’, यह प्रश्न श्री.उमेश शर्मा ने उठाया ।
… तो हम किस की निर्मिति करनेवाली शिक्षापद्धति अपनानेवाले हैं ? – श्री. दुर्गेश परूळेकर, सदस्य, विशेष संसदीय समिती
‘शिक्षाव्यवस्था मनुष्य बनानेवाली होनी चाहिए’, ऐसा स्वामी विवेकानंदजी ने कहा है । शिक्षा यदि मनुष्य बनानेवाली नहीं होगी, तो हम किस बात की निर्मिति करनेवाली शिक्षापद्धति अपनानेवाले हैं ? शिक्षा में भारतीय संस्कृति का समावेश करने का अर्थ शिक्षा का भगवाकरण नहीं है ।
देश की संसद भगवद्गीता सिखाने का प्रस्ताव पारित करे ! – श्री. रमेश शिंदे
एक सदस्य ने जब ‘सर्वाेच्च न्यायालय ने गीता को ‘राष्ट्रीय ग्रंथ’ के रूप में मान्यता देना अस्वीकार करने से शिक्षापद्धति में भगवद्गीता का समावेश करना अनुचित है’, ऐसा प्रस्ताव देने पर उसका खंडन करते हुए श्री. रमेश शिंदे ने कहा, शहाबानो अभियोग में मसलमानों का तुष्टीकरण करने के लिए संसद ने उस निर्णय को बदला । अधिकांश हिन्दुओं को यदि भगवद्गीता की शिक्षा मिलना आवश्यक लगता हो, तो देश की संसद को उस संबंध में प्रस्ताव पारित करना चाहिए ।
विरोधी दल के एक सदस्य ने ‘भगवद्गीता, रामायण, महाभारत आदि की शिक्षा देकर शिक्षा का भगवाकरण नहीं किया जाना चाहिए, साथ ही आज की धर्मनिरपेक्ष शिक्षापद्धति से निकलकर ही प्रशासनिक अधिकारी तैयार होते हैं, अतः अलग शिक्षापद्धति नहीं अपनानी चाहिए’, यह प्रस्ताव रखा था । इस प्रस्ताव का खंडन करते हुए श्री. रमेश शिंदे ने कहा, ‘‘आर्य भारतीय नहीं, अपित वे विदेशी थे और मुघल स्वदेशी थे’, इस प्रकार से अनुचित शिक्षा दी जाती है । जिस शिक्षापद्धति में ‘भगतसिंह आतंकी थे’, ‘महाराणा प्रताप पदभ्रष्ट थे’, ऐसी शिक्षा दी जाती है, ऐसी ‘एन.सी.ई.आर्.टी.’ की शिक्षा देने का प्रस्ताव उचित नहीं है । अतः इस प्रकार की अनुचित शिक्षापद्धति का हमें स्वीकार नहीं करना चाहिए ।’’