कानून में स्थित त्रुटियों के कारण न्यायालयीन निर्णयों से सच्चाई नहीं बाहर आती ! – अधिवक्ता मकरंद आडकर, अध्यक्ष, महाराष्ट्र शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्था, नई देहली
दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में मान्यवरों को अनुभवों से कानून में स्थित त्रुटियों पर डाला गया प्रकाश !
रामनाथी, १३ जून (संवाददाता) – पक्षकारों को अभियोग की सच्चाई ज्ञात होती है; परंतु वे अधिवक्ताओं को जो जानकारी देते हैं, उस पर आधारित अधिवक्ता उस अभियोग को कानून की चौखट में बिठाते हैं; परंतु उससे ‘सच्चाई बाहर आएगी ही’, ऐसा नहीं है । जिला न्यायालय, उच्च न्यायालय, सर्वाेच्च न्यायालय आदि विभिन्न न्यायालयों के निर्णय अलग-अलग आते हैं । एक अभियोग में तो न्यायाधीश ने ‘अपराध किसने किया है, यह ज्ञात है; परंतु मेरे हाथ कानून से बंधे हुए हैं’, ऐसा कहा । उसके कारण आरोपी निर्दाेष छूट गया । ‘नार्काे’ (कुछ औषधियां देकर आरोपी की चेतना खो जाने के उपरांत मनोविशेषज्ञों की उपस्थिति में उससे प्रश्न पूछकर उत्तर जान लेना), ‘ब्रेनमैपिंग’ (व्यक्ति को विशिष्ट आवाज सुनाकर उससे उसके मस्तिष्क में जो प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है, उसका अध्ययन करना) और ‘लाई डिटेक्टर ’ (जब व्यक्ति झूठ बोलने लगता है, तब उसके श्वसन की गति, रक्तचाप आदि में बदलाव होते हैं । उनका अध्ययन कर विशिष्ट यंत्रों का उपयोग कर उस व्यक्ति से प्रश्न पूछना और यंत्र की सहायता से उसकी बदलती हुए शारीरिक स्थिति का अध्ययन करना) जैसे परीक्षण करने के लिए आरोपी की सहमति आवश्यक होती है; परंतु संविधान में समाहित ‘अनुच्छेद २०’ के अनुसार आरोपी स्वयं के विरुद्ध जवाब नहीं दे सकता । यदि ऐसा है, तो इन परीक्षणों से बाहर निकलनेवाले स्वयं के विरोधी उत्तरों का कानूनी आधार क्या है ?इस प्रकार से कानून में त्रुटियां दिखाई देती हैं । कानून में समाहित ऐसी अनेक त्रुटियों के कारण न्यायालय में वर्षाेंतक अभियोग चलते हैं । नई देहली के ‘महाराष्ट्र शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्था’ के अध्यक्ष अधिवक्ता मकरंद आडकर ने यह दयनीय स्थिति रखी । दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के पहले दिवस पर (१२ जून २०२२ को) ‘भारतीय कानूनों में समाहित त्रुटियां और उन पर स्थित ब्रिटिशों का प्रभाव’ विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे । इस अवसर पर नगर (महाराष्ट्र) के ‘हिन्दू जागरण मंच’ के भूमि संरक्षण जिला संयोजक श्री. अमोल शिंदे, अधिवक्ता प्रसून मैत्र, संस्थापक, आत्मदीप, कोलकाता (बंगाल) और देहली के ‘भारतमाता परिवार’ के महासचिव और सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता उमेश शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।
लॅण्ड जिहादके विरोध में वैध मार्ग से लडना, प्रत्येक का कर्तव्य है ! – देहली के भारतमाता परिवारा के महासचिव एवं सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता उमेश शर्मा
‘दार-उल-इस्लाम’ धर्मांधों की संकल्पना है इसलिए उन्हें भारतभूमि को ‘गजवा-ए- हिंद’ बनाना है । अत: धर्मांधों द्वारा ‘लैंड जिहाद’ का षड्यंत्र रचा जा रहा है । यह रोकने के लिए ‘सब भूमी गोपाल की’ अर्थात ‘सब भूमि हमारी है’, यह तत्त्व मन में बिंबित करना होगा ।
हमें ध्यान में आएगा कि, मस्जिद अथवा मजार निर्माण होने के बाद उसकी बाजू में धर्मांधों का व्यापार आरंभ होता है । इस माध्यम से व्यवासायिक क्षेत्र निर्माण किए जाते हैं और उनके धर्मबंधुओं को रोजगार उपलब्ध कराया जाता है । दूसरी ओर कुछ ‘एन्जीओ’, अर्थात स्वयंसेवी संस्था रोहिंग्या, बांगलादेशी घुसपैठियों के लिए कार्य करती हैं और उन्हें मानव अधिकार देने की मांग करती हैं । उन्हें मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं । इस प्रकार हिन्दुओं की भूमि पर अधिकार स्थापित किया जाता है ।
‘लैंड जिहाद’ इसे कोई नहीं रोक सकता है । इसलिए हमें आगे के चरण के अनुसार प्रयास करने होंगे ।
१. सर्वप्रथम अंतरजाल (इंटरनेट) के माध्यम से उस भूमि का ‘लैंड रिकॉर्ड’ निकालें । वह पहले मजार थी क्या, यह देखें । नहीं, तो वह अतिक्रमण है, यह निश्चित होता है ।
२. उसके विरोध में ‘लैंड रेव्हेन्यू’ कार्यालय में ‘ऑनलाईन’ परिवाद कर सकते हैं । उसके आसपास की दुकानों के भी विरोध में परिवाद कर सकते हैं । इसके अंतर्गत जो अनधिकृत दुकानें हैं वह बंद होंगी ।
३. परिवाद करने पर भी दुकाने बंद नहीं हुईं तो न्यायालय में जा सकते हैं ।
४. आपके रहनेवाले संकुल में महत्वपूर्ण स्थान पर धर्मांध पहले एक घर खरीदता है । अन्य विचार करते हैं कि, एक ही व्यक्ति तो है । क्या अंतर पडता हैे ? कुछ समय के उपरांत उसके पडोस का घर भी बेचा जाता है । कुछ दिनों में उसके भी पडोस का घर बेचा जाता है । इस प्रकार वहां के अल्पसंख्यंक बहुसंख्य हो जाते हैं और हिन्दुओं को पलायन करने के अतिरिक्त अन्य कोई पर्याय नहीं रहता । कैराना, मुरादाबाद, भाग्यनगर (हैदराबाद) पुरानी देहली ऐसे अनेक स्थानों की यही वास्तविकता है । ऐसा कहीं होते दिखाई दे तो, धन के लोभ में घर बेचनेवाले हिन्दू को समझाना होगा । अन्यथा निश्चित ही वहां का शहरी क्षेत्र हमारे हाथ से निकल जाएगा ।
५. धर्मांधों की २० करोड की लोकसंख्या बढते जाने पर, उनका हिन्दुओं की भूमिपर नियंत्रण होने ही वाला है । हमारे पास की भूमि ही नहीं रही, तो हमारा अस्तित्व ही संकट में पड जाएगा और हम लडाई भी नहीं कर पाएंगे ।
इस अवसर पर अन्य मान्यवरों द्वारा व्यक्त किए गए विचार !
१. भूमि पर धर्मांधों के अतिक्रमण का हिन्दुओं को वैधानिक पद्धति से तीव्र विरोध करना चाहिए ! – अमोल शिंदे, जिला संयोजक, (भूमि संरक्षण), हिन्दू जागरण मंच, नगर
१. मैने आजकत भूमि (लैंड) जिहाद के १८ विषय देखे हैं । नगर जिले में २४ गुंठा सरकारी भूमि थी । महापालिका ने उस भूमि को ‘स्वतंत्रतावीर सावरकर वाटिका’ के नाम से आरक्षित किया था । वहां कुछ मौलवियों ने पीर (मजार) बनाए थे । वहां पशुवधगृह आरंभ किए थे, साथ ही केशकर्तनालय भी खोला था । धीरे-धीरे वहां ८-१० परिवार रहने लगे । उसमें कुछ बांग्लादेशी और स्थानीय मुसलमान भी थे । मैने उस भूमि के कागदपत्र निकालकर मेरे सहयोगियों की सहायता से उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की । उसके उपरांत कुछ मुसलमानों ने हमारे विरुद्ध अभियोग प्रविष्ट किया । मेरे एक सहयोगी को मारने का प्रयास किया गया । इस अभियोग में वक्फ बोर्ड ने हमें नोटिस भेजा था । वे उस भूमि पर अपना अधिकार जता रहे थे । मैने इस विषय में संभाजीनगर खंडपीठ में याचिका प्रविष्ट कर मेरे पास जितने प्रमाण थे, वो सब संभाजीनगर खंडपीठ में प्रस्तुत किए । उसके कारण खंडपीठ ने वक्फ विभाग की याचिका खारीज कर हमारे पक्ष में निर्णय दिया । अंततः संभाजीनगर उच्च न्यायालय ने ही बुलडोजर चलाकर यह भूमि खाली करवा दी । हमने ‘पीर (मजार) के स्थान पर मच्छिंद्रनाथ महाराज की समाधि है’, यह प्रमाणित किया ।
२. एक प्रकरण में धर्मांधों ने एक भूमि पर अतिक्रमण कर पीर (मजार) बनाए थे । हमारे वहां जाने से पूर्व वहां बकरे काटे जाते थे । हमने उस पर डाली गई हरे रंग की चादर हटाकर वहां भगवा रंग का वस्त्र डाल दिया । उसके उपरांत धर्मांध वहां नहीं आए और उस स्थान पर बकरे भी काटे नहीं गए ।
३. नगर जिले के एक तहसील में स्थित एक गांव में ‘यह भूमि श्री कानिफनाथ देवस्थान को अर्पण की गई है’, इस आशय का फलक लिखा गया था; परंतु गांव में जाने के उपरांत वहां कानिफनाथ का मंदिर नहीं था । हमारे पास पुराने कागदपत्र थे । पुणे में हमें मूल कागदपत्र और ७/१२ के उतारे मिले । उसके आधार पर खोज करने पर यह ध्यान में आया कि प्राचीन कानिफनाथ मंदिर के स्थान पर बडे पीर बनाए गए थे । प्रतिवर्ष किसान वहां बकरे काटते थे । वहां प्रतिवर्ष धर्मांधों का मेला लगता था । इस विषय को प्रशासन के सामने रखने के उपरांत ‘यह कानून-व्यवस्था से संबंधित विषय होने से हमें उसे नहीं ले सकते’, ऐसा बताया । प्रमाण होते हुए भी प्रशासन ने इस पर कार्यवाही नहीं की ।
उसके उपरांत एक पुलिस हवलदार ने हमारी सहायता की । उसने बताया, ‘‘आपके पास आज राततक का समय है । आपके पास कागदपत्र है, आप उनका उपयोग कीजिए ।’’ उसके उपरांत हमने उस पीर को भगवा बना दिया । उसके उपरांत वहां मेला लगकर मेले में ५ सहस्र हिन्दू आए ।
४. एक मुसलमानबहुल क्षेत्र में हिन्दुओं के २७ घर और मुसलमानों के २०० घर थे । वहां की स्थिति अलग थी । गांव की नदी की बाजू में हिन्दुओं की भूमि थी । वहां के १ एकर भूमि मुसलमानों को बेची जाने पर उस मुसलमान ने ५ एकर भूमि पर अतिक्रमण कर वहां निर्माणकार्य आरंभ किया । उसने उस भूमिपर एक मस्जिद बनाई । महापालिका ने सभी कागदपत्र लेकर पुणे के न्यायालय में अभियोग प्रविष्ट किया । मेरे अधिवक्ता हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन से संबंधित थी । वहां मैने सभी असली कागदपत्र दिए थे । उसके उपरांत मेरा यह अभियोग खारीज किया गया; परंतु उस अधिवक्ता ने मुझे मेरे कागदपत्र वापस नहीं किए । उस अधिवक्ता ने मेरे साथ द्रोह किया; परंतु तब भी मैने पुनः कागदपत्र इकट्ठा कर अभियोग प्रविष्ट किया है ।
धर्मांध अपना काम करते हैं, वैसे ही हमें अपना काम करना चाहिए । धर्मांधों से बिना डरे हिन्दुओं को उनके कृत्य का तीव्र विरोध करना चाहिए और अपनी भांति १०० क्रियाशील कार्यकर्ताओं को तैयार करना चाहिए !
२. हिन्दू समाज को सरकार और नेताओं पर निर्भर न रहकर स्वयं की शक्ति बढानी चाहिए ! – अधिवक्ता प्रसून मैत्र, संस्थापक, ‘आत्मदीप’, कोलकाता, बंगाल
‘बंगाल के हिन्दुओं की रक्षा करने के लिए कानूनी पद्धति से, साथ ही संगठनात्मक स्तर पर किए गए प्रयास’ विषय पर बोलते हुए प्रसून मैत्र ने कहा, ‘‘बंगाल में नेपाल, भूतान और बांग्लादेश की सीमा है । उसके कारण वहां से धर्मांधों की घुसपैठ हो रही है । बांग्लादेश से बंगाल में प्रतिदिन घुसपैठ हो रही है । उनमें हिन्दुओं के साथ अधिकतर मुसलमान हैं । वर्ष २०१२ में बंगाल के ३ जिले मुसलमानबहुल हो चुके हैं और ७ जिलों में मुसलमानों की संख्या बढी है । भविष्य में उन्होंने अलग राज्य की मांग की, तो उन्हें कोई रोक नहीं सकता । ९० के दशक में कश्मीर में हिन्दुओं का बडा वंशविच्छेद किया गया, अब बंगाल में भी वैसा ही हो रहा है । बंगाल के मुर्शिदाबाद, हावडा आदि शहरों में धर्मांधों ने इस प्रकार से वातावरण बनाया है कि वहां पुलिस प्रशासन और सेनाबल की कार्यवाही नहीं कर सकते । हिन्दू सरकार पर निर्भर रहते हैं । हिन्दू ‘इस विषय में बडे नेता कुछ करेंगे’, यह आशा रखते हैं और स्वयं का सामाजिक दायित्व अल्प करते हैं । अब हिन्दू समाज को धीरे-धीरे शक्तिशाली बनना पडेगा । ‘केवल पूजा-पाठ करनेवाले धार्मिक होते हैं, ऐसा नहीं है, अपितु हमें एक सशक्त समाज खडश करना है । अब हिन्दुओं को अपने सामाजिक दायित्व का भी विचार करना आवश्यक है ।’’
काशी और मथुरा के मंदिरों को अपने नियंत्रण में लेने के उपरांत हिन्दुओं को अपने अगले कार्य पर विचार करना चाहिए ! – अधिवक्ता मदन मोहन यादव, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
ज्यू समुदाय विश्व में इधर-उधर बिखरा हुआ था; परंतु तब भी उन्होंने ‘इस्राईल’ इस स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण किया, तो हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने में कुछ भी असंभवसा नहीं है । भाजपा नेता नुपूर शर्मा के वक्तव्य के उपरांत ५७ इस्लामी राष्ट्र अपनी छाती पीट रहे हैं; परंतु दूसरी ओर कथित ज्ञानवापी मस्जिदों की दीवारों ‘यह ज्ञानवापी मंदिर है’, ऐसा चिल्ला-चिल्लाकर बता रही हैं । ज्ञानवापी की लडाई में हमें प्रसारमाध्यमों की सहायता मिली । प्रसारमाध्यमों में भी जिहादी और वामपंथी विचारधारावाले लोग हैं । हिन्दुत्व के कार्य के लिए हमारी सहायता करनेवाले माध्यमों को हमें जोडकर रखना चाहिए । काशी का विश्वनाथ मंदिर ७ बार ध्वस्त किया गया । काशी हिन्दुओं की धार्मिक विधियों का केंद्र है । इतिहास में यहां के हिन्दुओं के १० धार्मिकस्थल नष्ट किए गए । यहां बिंदुमाधव का प्रसिद्ध मंदिर है । विख्यात संतकवी रामानंदाचार्यजी ने यही पर तपस्या की । इस स्थान पर मस्जिद बनाए जाने का देखकर कष्ट होता है । अब काशी और मथुरा के मंदिरों को अपने नियंत्रण में लेने के उपरांत हिन्दुओं को अपने अगले कार्य पर विचार करना चाहिए ।
मंदिरों पर आक्रमण कर आक्रांताओं ने हिन्दुओं को दुर्बल बनाया ! – अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, सर्वाेच्च न्यायालय
मंदिर हिन्दुओं के लिए आदर और सम्मान के स्थान हैं । इसलिए इन मंदिरों को पुनः हिन्दुओं के नियंत्रण में देकर हिन्दुओं का उनका वैभव वापस दिलाना आवश्यक है । पहले के राजाओं ने भी मंदिर निर्माण और उनके संरक्षणों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया था । जिस प्रकार राजा-महाराजाओं पर आक्रमण करने से प्रजा दुर्बल बन जाती है, उसी प्रकार से आक्रांताओं ने मंदिरों पर आक्रमण कर हिन्दुओं को दुर्बल बनाया है । राजा भोज ने भोजशाला के माध्यम से संस्कृत पाठशाला का निर्माण किया था । वर्ष १०३४ में इसी स्थान पर भोजराजा ने एक मंदिर का निर्माण किया था; परंतु धर्मांधों ने उस पर आक्रमण कर मंदिर को ध्वस्त कर वहां मस्जिद होने की घोषणा की । कालांतर से वहां मुसलमानों को प्रति शुक्रवार नमाज पढने की अनुमति दी गई । भोजशाला में स्थित अनेक ऐतिहासिक वास्तुओं को ध्वस्त कर उस स्थान पर धर्मांधों द्वारा अतिक्रमण किए जाने के अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं । ‘मंदिर मुक्ति संग्राम’में जाति, पद, दल और संगठन को बाजू में रखकर हिन्दू समाज संगठित हुआ, तो ये सभी मंदिरों के हिन्दुओं के नियंत्रण में आने में समय नहीं लगेगा, ऐसा प्रतिपादन हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टीस के प्रवक्ता अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने किया । दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन ने दूसरे दिन के पहले सत्र में ‘अयोध्या-काशी-मथुरा के उपरांत अब होगा भोजशाला मुक्ति संग्राम’ विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे ।
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन जब अपना विषय रख रहे थे, तब ‘प्रोजेक्टर’ पर भोजशाला के स्थान पर किए गए इस्लामी अतिक्रमण की विस्तार से जानकारी देते समय भोजशाला में स्थित हिन्दू संस्कृति के प्रतीक कलाकृतियों और ऐतिहासिक अवशेषों के छायाचित्र दिखाए गए । दीवारों की पत्थरों पर अंकित संस्कृत श्लोक, धर्मचक्र, मंदिरों की कलाकारी से युक्त कमानें और स्तंभ, साथ ही मुख्य मंदिर के मंडप के छायाचित्र दिखाए गए ।