ज्ञानवापी मस्जिद का प्रकरण : गुप्तचर विभाग का केंद्र सरकार को ब्योरा !
१. ज्ञानवापी मस्जिद का चित्रीकरण कर उसका ब्योरा दें, ऐसा आदेश न्यायालय द्वारा देना
वाराणसी का काशी विश्वेश्वर मंदिर एवं उस परिसर की ज्ञानवापी मस्जिद के विषय में वाद-विवाद गत १५ दिनों में वाराणसी न्यायालय से सर्वाेच्च न्यायालय तक पहुंच गया है । वाराणसी के कनिष्ठ न्यायालय द्वारा ‘ज्ञानवापी मस्जिद के मंदिर का चित्रीकरण कर उसका ब्योरा दें’, ऐसा आदेश न्यायालय के आयुक्त को (कोर्ट कमिशनर को) दिया । तदुपरांत न्यायालय के आदेशानुसार जब आयुक्त ने घटनास्थल का चित्रीकरण प्रारंभ किया, तब धर्मांधों ने उसका बहुत विरोध किया । इसके उपरांत भी चित्रीकरण किया गया । तलघर में शिवलिंग स्पष्टरूप से दिखाई दे रहा है । वास्तव में यह बताने के लिए आयुक्त के ब्योरे की आवश्यकता ही नहीं थी; कारण ज्ञानवापी मस्जिद के सामने नंदी खडा है । यह सर्वश्रुत है कि जहां नंदी होता है, उसके सामने ही शिवमंदिर होता है । वैसा ही ब्योरा न्यायालय के आयुक्त ने दिया । इस ब्योरे का विरोध करते हुए मुसलमान पक्षकार सर्वोच्च न्यायालय तक गए; परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने केवल जिला न्यायालय को यह दावा (प्रकरण) हस्तांतरित कर दिया एवं आदेश दिया कि ‘धर्मांधों द्वारा उपस्थित किए गए सर्व सूत्रों का विचार कर जिला न्यायालय सप्ताहभर में न्याय करे !’ इसके साथ यह भी कहा कि ‘वहां शिवलिंग को संरक्षण दिया जाए एवं अगला निर्णय होने तक मुसलमान वहां नमाजपठन कर सकते हैं ।’
२. हिन्दुओं द्वारा वजूखाने की भीत (दीवार) गिराकर पुन: सर्वेक्षण करने की मांग की जाना
‘ज्ञानवापी का स्थल हमारे स्वाधीन करें’, इसके लिए हिन्दू भारी मात्रा में आग्रही हैं । वैसे तो वे पहले से ही आग्रही थे; परंतु स्वतंत्रता के उपरांत ६० वर्ष देश पर राज्य करनेवाली कांग्रेस ने हिन्दुओं को चुप बिठा दिया था । अब न्यायालय के आदेश के उपरांत वहां शिवलिंग का होना समझ में आने से हिन्दुओं की मांग है कि ‘हमें वहां पूजा करने दी जाए एवं वह स्थल हमें सौंपा जाए, इसके साथ ही वजूखाने के (हाथ-पैर धोने का स्थान) भीत गिराकर पुन: सर्वेक्षण किया जाए ।’
३. ज्ञानवापी मस्जिद के विषय पर देश में बडा उपद्रव करने का षड्यंत्र रचने की सूचना गुप्तचर संस्था द्वारा केंद्र सरकार को मिलना
‘ज्ञानवापी में पूजा एवं अन्य उत्सव मनाने का आदेश प्राप्त हो’, ऐसी याचिका हिन्दुओं की ओर से की गई है । उस पर उन्होंने धमकियां देना प्रारंभ कर दिया कि ‘हम दूसरी बाबरी नहीं होने देंगे ।’ इस पृष्ठभूमि पर गुप्तचर संस्था ने केंद्र सरकार को ब्योरा दिया है कि इस विषय पर देश में बडा उपद्रव किया जाएगा । भारी मात्रा में आंदोलन होंगे और दोनों समाज आमने-सामने होंगे । इससे कानून-सुव्यवस्था का प्रश्न उपस्थित हो सकता है । कुछ राजकीय शक्तियां इसका अपलाभ (गैरफायदा) लेंगी । इसलिए सरकार यह समस्या आपसी समझौते से सुलझाने का विचार करे ।
४. सरकार ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट १९९१’ निरस्त कर हिन्दुओं के प्रमुख मंदिर उनके स्वाधीन करे !
यहां केंद्र सरकार क्या निर्णय लेती है, यह भाग छोडें; परंतु प्रत्येक बार धर्मांधों ने हिन्दुओं के आस्थाकेंद्रों का विध्वंस कर उन्हें नियंत्रण में लिया है । स्वतंत्रता के उपरांत ४४ वर्षाें में कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा बनाए ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट १९९१’ (धार्मिक प्रार्थनास्थल कानून) तैयार किया । अब उसका उदाहरण देकर हिन्दुओं को चुपचाप बिठा देना कितने समय तक संभव होगा ? इसका विचार हिन्दुओं के मत पर चुनकर आई सरकार तुरंत करना चाहिए । इसलिए सरकार सर्वप्रथम वह कानून निरस्त कर हिन्दुओं के मंदिर उनके स्वाधीन करे । इसके साथ ही सरकार समान नागरिक कानून एवं जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाए एवं हिन्दू राष्ट्र घोषित करे, ऐसी अपेक्षा है !
श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।
– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, संस्थापक सदस्य, हिन्दू विधिज्ञ परिषद एवं अधिवक्ता, मुंबई उच्च न्यायालय. (२४.५.२०२२)