मुसलमान , ईसाई, सिख आदि को अल्पसंख्यक घोषित करने वाली अधिसूचना के विरोध में उच्चतम न्यायालय में याचिका प्रविष्ट !
नई दिल्ली: देवकीनंदन ठाकुर ने मुसलमान , ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन समुदाय को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक घोषित करने वाली केंद्र सरकार की १९९३ की अधिसूचना के विरोध उच्चतम न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की है । उन्होंने याचिका में यह भी कहा है कि अधिसूचना मनमाना, तर्कहीन और संविधान के अनुच्छेद १४, १५, २१, २९ एवं ३० के विरूद्ध है।
ठाकुर ने याचिका में कहा है कि यद्यपि कुछ राज्यों और देश के कुछ क्षेत्रों में हिंदुओं की संख्या अल्प है तथापि उन्हें अल्पसंख्यक होने के अधिकारों से वंचित रखा गया है । लद्दाख में १ प्रतिशत , मिजोरम में २.७५ प्रतिशत , लक्षद्वीप में २.७७ प्रतिशत , कश्मीर में ३ प्रतिशत , नागालैंड में ८७४ प्रतिशत , मेघालय में ११.५२ प्रतिशत , अरुणाचल प्रदेश में २९ प्रतिशत , पंजाब में ३८.४९ प्रतिशत और मणिपुर में ४१.२९ प्रतिशत हिंदू हैं किंन्तु केंद्र सरकार ने उन्हें अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया है। दूसरी ओर मुसलमानों को बहुमत में होने पर भी अल्पसंख्यक घोषित कर दिया गया है। लक्षद्वीप में मुसलमान जनसंख्या ९६.५८ प्रतिशत , कश्मीर में ९५ प्रतिशत और लद्दाख में ४६ प्रतिशत हैं। इसके साथ ही नागालैंड में ईसाई जनसंख्या ८८.१० प्रतिशत, मिजोरम में ८७.१६ प्रतिशत और मेघालय में ७४.५९ प्रतिशत है। पंजाब में ५७.६९ प्रतिशत सिख और लद्दाख में ५० प्रतिशत बौद्ध हैं, फिर भी उन्हें अल्पसंख्यकी श्रेणी प्राप्त है।