परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
संसार का एकमात्र धर्म है हिन्दू धर्म !
‘उत्पत्ति स्थिति और लय’, इस सिद्धांत के अनुसार विविध संप्रदायों की स्थापना होती है और कुछ काल के उपरांत उनका लय होता है, अर्थात उनका अस्तित्त्व नहीं बचता । इसके विपरीत सनातन हिन्दू धर्म की उत्पत्ति न होने के कारण, अर्थात वह अनादि होने के कारण; वह अनंत काल तक रहता है । यह हिन्दू धर्म की विशेषता है । संसार में दूसरा धर्म ही नहीं है, इसलिए ‘सर्वधर्म समभाव’, यह शब्द कितना अनुचित है, यह इससे समझ में आता है ।’
विश्वयुद्ध से रक्षा होने हेतु साधना आवश्यक है !
‘जिस प्रकार कोई रोग न हो, इसके लिए हम टीकाकरण (वैक्सीनेशन) करवाते हैं; उसी प्रकार तृतीय विश्वयुद्ध के समय में बचने के लिए साधना ही टीका (वैक्सीन) है ।’
स्वराज्य कभी सुराज्य नहीं होता !
‘स्वराज्य कभी सुराज्य नहीं होता; क्योंकि रज-तम प्रधान लोगों का स्वराज्य कभी सुराज्य नहीं हो सकता । भारत ने यह स्वतंत्रता से लेकर अब तक के ७४ वर्षों में अनुभव किया है ।’
हिन्दुओं, स्वरक्षा के लिए साधना करो !
‘शारीरिक एवं मानसिक बल की अपेक्षा आध्यात्मिक बल श्रेष्ठ होते हुए भी हिन्दुओं ने साधना भुला दी । इसलिए मुट्ठी भर धर्मांध एवं अंग्रेज कुछ वर्षों में ही संपूर्ण भारत पर राज्य कर सके ! अब पुनः ऐसा न हो, इसके लिए हिन्दुओं का साधना करना आवश्यक है ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले