युद्धकाल में उपयोगी और आपातकाल से बचानेवाली ये कृतियां अभी से करें !
‘रूस-युक्रेन युद्ध आरंभ हो गया है । युक्रेन की जनता ‘युद्ध की आंच में झुलसना क्या होता है ?’, इसे कैसे अनुभव कर रही है, यह प्रतिदिन आनेवाले समाचारों से हमें ज्ञात हो ही रहा है । आगे इस युद्ध में यदि अन्य देश भी सम्मिलित हो गए, तो तीसरा महायुद्ध आरंभ होने में अधिक समय नहीं लगेगा । रूस-युक्रेन युद्ध के कारण युक्रेन जनता की तीसरे महायुद्ध का सामना करने के लिए थोडी-बहुत तैयारी हो गई होगी । वहां की जनता को शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण वहां का लष्कर दे रहा है । इसलिए जनता का मनोबल बढ गया है और वह रशियन सेना का सफलता से प्रतिकार कर रही है । इसकारण रशिया के लिए युक्रेन अपने नियंत्रण में लेना कठिन हो गया है । युक्रेन की जनता की यह तैयारी प्रशंसनीय है, तब भी वह केवल शारीरिक एवं मानसिक स्तर की है । सबसे महत्त्वपूर्ण तैयारी होती है आध्यात्मिक स्तर की !
भारत की जनता रशिया-युक्रेन युद्ध के समाचारों से यह सीखे कि युद्ध का प्रत्यक्ष सामना कैसे करना पडता है ? तीसरा महायुद्ध होने पर वह अनेक मास (महिने) चलेगा । इससे शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर अपनी तैयारी होने के लिए कौन से ठोस सूत्र ध्यान में रखने चाहिए, वह यहां दिया है । यह तैयारी आज से ही गंभीरता से करें !
१. शारीरिक स्तर की तैयारी
अ. संकट का सामना करने के लिए हमारा शरीर सक्षम होना चाहिए । वैसा होने के लिए प्रतिदिन नियमित ३० मिनट कम से कम व्यायाम करें । सूर्यनमस्कार करें, यह संपूर्ण शरीर को सक्षम बनाने के लिए सुंदर व्यायामप्रकार है । नियमित कम से कम १२ सूर्यनमस्कार करें । प्रतिदिन थोडा-बहुत दौडने का व्यायाम करें । हमें ५ – १० मिनट तो कम से कम दौडने आना चाहिए । हमसे जितना संभव हो, उतना व्यायाम नियमित करें और उसमें प्रतिमास थोडी वृद्धि करें ।
आ. नियमित प्राणायाम करें । यदि वह आता न हो, तो सीख लें । प्राणायाम करने से श्वास रोके रखने का (कुंभक करने का) अभ्यास होता है । यह अभ्यास तब उपयोगी होगा, जब हमें पानी से किसी को बचाना हो, धुआं हो गया हो अथवा गैस का रिसाव हो गया हो ।
इ. तैरना आना, यह बहुत आवश्यक है । पानी में डूबते हुए को बचाना अथवा अपने प्राण बचाने के लिए इसका उपयोग होनेवाला है ।
ई. युद्धकाल में अन्न मिलना कठिन होगा । तब हमें १ – २ दिन भूखा रहना होगा । इसका अभ्यास होने के लिए बिना कुछ खाए-पिए दिन में कम से कम एक बार का उपवास रखने की आदत हममें होनी चाहिए । इसके लिए सप्ताह में एक दिन उसका अभ्यास करें । आगे ‘संपूर्ण दिन केवल पानी पीकर उपवास रख सकते हैं ?’, यह भी देखें ।
उ. यदि कोई शारीरिक व्याधियां हैं, तो समय रहते ही वैद्य अथवा आधुनिक वैद्य (डॉक्टर) को दिखाकर उसे दूर करें । भले ही बीमारी छोटी-सी हो, तब भी उसे अनदेखा न करें । ४० वर्ष एवं उससे अधिक आयुवर्ग के व्यक्तियों को अपनी सामान्य वैद्यकीय (general checkup), नेत्रों की और दांतों की जांच करवा लें । आगे युद्धकाल में वैद्यकीय सहायता सहजता से उपलब्ध नहीं होगी ।
ऊ. उपरोक्त जांच में पाई गई व्याधियों पर आवश्यकता के अनुसार अगली जांच और उपचार कर, अपनी वैद्यकीय स्थिति संभव हो उतनी सामान्य कर लें । उदा. रक्त में जीवनसत्त्व की मात्रा आवश्यकता से कम हो, तो उसे पूर्ववत् करने के लिए संबंधित जीवनसत्त्व पूरक आहार और गोलियों के रूप में लेना इत्यादि ।
ए. हमें हुए विकार, ‘वे कब ध्यान में आए ?’, उसके कारण, उन पर लिया वैद्यकीय उपचार, पूरक आहार, पथ्य इत्यादि एक बही में लिख कर रखें । ‘किसी विकार संबंधी पुन: जांच कब करनी है ?’, इसकी भी प्रविष्टि बही में करें । प्रविष्टि में हमें कोई औषधि, पदार्थ, खाद्यपदार्थ, धूल में से जिन घटकों की ‘अलर्जी’ है, उसे भी लिख कर रखें ।
ऐ. अपने विकारों से संबंधित वैद्यकीय कागदपत्र, इसके साथ ही रिपोर्ट की धारिका बनाकर रखें । एक विकार के कागदपत्र एवं ब्योरा एकत्र हो और उसका क्रम दिनांकानुसार लगाएं । हाल ही के कागदपत्र सबसे ऊपर रखें । इसके साथ ही ‘गत ३ वर्षों के कागदपत्र एक धारिका में और उससे पुराने कागदपत्र अलग धारिका में’, ऐसे रखा जा सकता है । संभव हो, तो महत्त्वपूर्ण कागदपत्र एवं रिपोर्ट के भ्रमणभाष से छायाचित्र खींचकर उसे भ्रमणभाष, ‘पेनड्राईव’ इत्यादि में संरक्षित करें ।
ओ. रक्तदाब, मधुमेह जैसी बीमारियों के लिए दीर्घकाल के लिए (संभवत: जन्मभर) के लिए औषधोपचार जारी रखना पड सकता है । ऐसा होने पर आधुुनिक वैद्यों की सलाह लेकर उनकी औषधियां संग्रहित रखें । चष्मा, कर्ण यंत्र (ठीक से सुनाई देने के लिए उपयोगी यंत्र) जैसी दैनंदिन जीवन में हमारे लिए अत्यावश्यक प्रत्येक उपकरण का एक नग हमारे पास अतिरिक्त होना चाहिए । इसके साथ ही उस उपकरण के लिए लगनेवाली ‘बैटरी’ इत्यादि का भी आवश्यक संग्रह हमारे पास होना चाहिए । हमें लगनेवाले उपचारों के लिए औषधि, उपकरण की एक ‘इमर्जन्सी किट’ तैयार कर रखें । उसमें लगभग १५ दिनों की औषधियां होनी चाहिए । आपातकालीन स्थिति में (इमरजेंसी में) हम वह ‘किट’ लेकर तुरंत ही निकल सकते हैं ।
२. मानसिक स्तर की तैयारी
अ.‘किसी कठिन प्रसंग का हम सामना कर सकते हैं क्या ?’, यह देखें । दूसरे पर कोई कठिन प्रसंग आने पर ‘हम उस समय क्या करते ?’, ऐसा प्रश्न स्वयं को पूछकर उस प्रसंग का अभ्यास करें । इससे मन की तैयारी होती है और हम पर यदि वैैसा प्रसंग आन पडे, तो तुरंत ही कृति हो जाती है ।
आ. स्वयं अथवा कोई अन्य अधिक मात्रा में जल जाए अथवा घाव हो जाए, तो हम उसे सहन कर सकते हैं क्या ? उस प्रसंग में हम घबरा तो नहीं जाते ? उस पर उपचार के तौर पर कुछ करते हैं न ? ‘किसी का अपघात होते देख हम उसकी सहायता के लिए दौडकर जाते हैं क्या ?’, यह देखें । ऐसे समय पर हमें जानबूझकर दायित्व लेकर कृति करनी चाहिए ।
इ. घर में अथवा अन्यत्र कहीं छोटी-सी आग लगने पर, हम घबराकर भागते तो नहीं; अथवा उस आग को बुझाने के लिए कुछ ठोस उपाय करते हैं ? हम यदि बौखला गए तो भले ही हमें कितनी भी तात्त्विक जानकारी हो, तब भी ‘उस प्रसंग में क्या करना है ?’, यह हमें नहीं सूझेगा; इसलिए ऐसे प्रसंगों में मन शांत-स्थिर रखना महत्त्वपूर्ण होता है ।
ई. ‘कोई हमारे साथ गुंडागर्दी कर रहा हो, तो हम होशियारी से उसका सामना कर सकते हैं क्या ?’, यह स्वयं को पूछें । समय आने पर उन गुंडों के साथ दो-दो हाथ करने की भी हमारी तैयारी होनी चाहिए । हमारे परिचित व्यक्ति के साथ झगडा हो रहा हो, तो उसे सुलझाने का प्रयत्न करें ।
उ. दूसरों की सहायता करने की वृत्ति हममें होनी चाहिए और यदि नहीं है तो उसे प्रयत्नपूर्वक निर्माण करें । हममें यदि वह वृत्ति होगी, तो हम पर आए कठिन प्रसंगों में भगवान औरों को हमारी सहायता के लिए भेजेगा ।
ऊ. हमारा स्वभाव एकाकी (अकेले रहना पंसद करना) नहीं होना चाहिए । ऐसे व्यक्ति को आपातकाल में सहायता मिलना कठिन होता है; कारण उसका किसी से परिचय नहीं होता । इसलिए सभी के साथ मिल-जुलकर और एकत्र रहने की स्वयं में आदत डालें । अकेला रहना पसंद करनेवाला व्यक्ति केवल स्वयं का ही विचार करता है । इसके विपरीत दूसरों का विचार करने की आदत डालें ।
ए. मन में मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम बढाएं । जैसे मां हमारा पालन-पोषण करती है, वैसे ही हमारी मातृभूमि भी हमारा पालनपोषण करती है; इसलिए उसके प्रति हमें कृतज्ञता लगनी चाहिए । ऐसा जब लगेगा, तब ही हम उसके लिए प्राणों का त्याग करने में भी आगे-पीछे नहीं देखेंगे । स्वतंत्रतासेनानियों ने यही किया । इसीलिए हमें स्वतंत्रता मिली । मातृभूमि के प्रति प्रेम लगना, अर्थात देश के प्रति प्रेम ! ऐसा लगने पर ही समय आने पर हम अपने देश के शत्रुआें के विरुद्ध लढ सकेंगे । रशिया-युक्रेन युद्ध में युक्रेन की जनता यही कर रही है । जब मातृभूमि के प्रति प्रेम लगेगा, तब हम निजी स्वार्थ के लिए अपने धर्मबंधुआें को धोखा देकर भ्रष्टाचार नहीं करेंगे अथवा शत्रु के हाथों बिक नहीं जाएंगे । मातृभूमि से जुडी समस्त बातों के प्रति हमें प्रेम ही लगेगा । देश के लिए कर्तव्यनिष्ठ रहने के लिए तैयार होंगे ।
३. बौद्धिक स्तर पर तैयारी
अ. युद्धकाल में दूसरों की सहायता करने के लिए प्रथमोपचार सीखना और उसे कर पाना आवश्यक है । शरीर पर घाव होने पर ‘बैंडेज’ कैसे बांधें ?’, ‘अस्थिभंग होने पर कैसे सहायता करें ?’, ‘स्ट्रेचर’ उपलब्ध न हो, तो झोली की सहायता से व्यक्ति को दूसरे स्थान पर कैसे ले जाएं ?’, इत्यादि बातें सीख लें । युद्धकाल में हमें इसप्रकार सहायता करनी होगी । यह ज्ञान होने के लिए सनातन संस्था के आगे दिए ३ ग्रंथ उपलब्ध हैं ।
१. रोगीके प्राणोंकी रक्षा एवं मर्माघातादि विकारोंका प्राथमिक उपचार
२. रक्तस्राव, घाव, अस्थिभंग आदि का प्राथमिक उपचार
३. श्वासावरोध, जलना, प्राणियोंके दंश, विषबाधा इत्यादि का प्राथमिक उपचार
आ. रक्त की शर्करा देखना, रक्तदाब नापना और ‘पल्स ऑक्सिमीटर’ का उपयोग करना सीख सकते हैं ।
इ. ‘युद्धकाल में किसी स्थान पर आग लगने पर उसे कैसे बुझाना है ?’, इसका थोडा-बहुत ज्ञान होना आवश्यक है । तेल के कारण लगी आग, विद्युत् उपकरण के कारण लगी आग, ऐसी विविध कारणों से लगी आग विविध पद्धतियों से बुझानी पडती है । इसका ज्ञान होना चाहिए । इसके लिए सनातन संस्था का ‘अग्निशमन प्रशिक्षण’ ग्रंथ उपलब्ध है ।
ई. युद्धकाल में वैैद्यकीय सहायता तुरंत मिलना कठिन होता है । ऐसे समय पर रोगी पर हम बिंदुदाबन कर, उसके लिए नामजप कर अथवा उसपर प्राणशक्तिवहन पद्धति से उपाय करके कुछ विकारों में रोगी की वेदना न्यून कर सकते हैं । ये उपायपद्धतियां सीखने के लिए सनातन संस्था के नीचे दिए ग्रंथों का अभ्यास अभी से करें और यह ग्रंथ भी अपने पास रखें ।
१. शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक पीडाका उपचार ‘बिन्दुदाब (एक्यूूप्रेशर)’
२. सामान्य विकारोंके लिए बिन्दुदाब उपचार (ज्वर, बद्धकोष्ठता आदि ८० से भी अधिक विकारों पर उपयुक्त !)
३. विकार-निर्मूलन हेतु नामजप (नामजपका महत्त्व एवं उसके प्रकारोंका अध्यात्मशास्त्र)
४. नामजप-उपचारसे दूर होनेवाले विकार (नामजपकी सूचनाओंसहित मुद्रा एवं न्यास भी अंतभूत)
५. विकारानुसार नामजप-उपचार (देवताओंके जप, बीजमन्त्र इत्यादि)
६. विकार-निर्मूलन हेतु प्राणशक्ति (चेतना) प्रणालीमें अवरोध कैसे ढूंढे ?
७. प्राणशक्ति प्रणालीमें अवरोधोंके कारण उत्पन्न विकारोंके उपचार
उ. युद्धकाल में भूमि के नीचे के तलघर में छिपना सर्वाधिक सुरक्षित होता है । ‘ऐसे तलघर अपने शहर में कहां-कहां हैं ?’, इसकी जानकारी लें । शहर की ‘मेट्रो’ रेल्वे अधिकांशत: भूमिगत होती है । ऐसी भूमि के नीचे की ‘मेट्रो’ स्थानकों में भी हम कुछ काल छिपकर रह सकते हैं । कई बार चौपदरी रास्ते (four fold lanes)पार करने के लिए भूमि के नीचे से पादचारी मार्ग (पैदल चलनेवालों के लिए मार्ग) होता है । ऐसे स्थानों पर भी हम छिप कर रह सकते हैं । बमविस्फोट, अणुबम के विस्फोट के कारण फैलनेवाली घातक किरणों से ये भूमि के नीचे के स्थान अपनी रक्षा कर सकते हैं ।
ऊ. अपने गांव में अथवा शहर में सेवाभावी विविध संगठन होंगे । उनकी जानकारी लेकर उनसे पहचान कर लें । हम पर अथवा अपने आसपास के परिसर में कोई कठिन प्रसंग आने पर उनकी सहायता ले सकते हैं । उनका संपर्क क्रमांक लें । अपना संपर्क क्रमांक भी उन्हें दें, अर्थात समय पडने पर हम भी उनकी सहायता ले सकते हैं ।
४. आध्यात्मिक स्तर पर तैयारी
अ. हिन्दू संस्कृति में ‘आचारधर्म’ का पालन करें । आचारधर्म का पालन करने से अपनी प्रत्येक कृति सात्त्विक होकर हमें चैतन्य तो मिलता ही है, इसके साथ ही हम ईश्वर तक जा पाते हैं । आचारधर्म का पालन करने से, अर्थात धर्माचरण करने से अपनी वृत्ति सात्त्विक बनती है और हमारा मार्गक्रमण ईश्वर की दिशा में शीघ्र होता है । आचारधर्म के पालन से व्यक्ति के व्यावहारिक जीवन में भी उन्नति होने में सहायता होती है, उदा. ‘सच्चाई से आचरण करेें’, इस आचार का पालन करने से व्यक्ति को झूठ बोलने से पाप नहीं लगता, इसके साथ ही उसमें नैतिकता एवं सुसंस्कृतता, इन गुणों का भी विकास होता है । ऐसे सत्त्वगुणी व्यक्ति की ही रक्षा ईश्वर कठिन काल में करते हैं । ‘दिनचर्या में आचारधर्म का पालन कैसे करें ?’, यह समझने के लिए सनातन संस्था के आगे दिए प्राथमिक ग्रंथ पढें ।
१. आचारधर्मकी प्रस्तावना
२.स्नानपूर्व आचारोंका अध्यात्मशास्त्रीय आधार
३.स्नानसे लेकर सांझतकके आचारोंका अध्यात्मशास्त्रीय आधार
आ. प्रतिदिन सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय अग्निहोत्र करें । दोनों समय संभव न हो, तो किसी भी एक समय पर करें । अग्निहोत्र करने से अपने आसपास का वातावरण कीटाणुमुक्त, शुद्ध, प्राणशक्तियुक्त एवं पवित्र होता है । प्रतिदिन घर पर अग्निहोत्र करने से अपने घर के सभी का आरोग्य अच्छा रहता है, किसी को रोग नहीं होते, इसके साथ ही प्रक्षेपित चैतन्य के कारण सभी को आध्यात्मिकदृष्टि से भी लाभ होता है । कोरोना महामारी के काल में अग्निहोत्र करनेवाले व्यक्ति को कोरोना नहीं होता, यह ध्यान में आया है । वर्तमान में अनेक राष्ट्रों के पास रोग-महामारी फैलानेवाले जैविक अस्त्र भी हैं । युद्ध में उनका उपयोग होेने पर फैलनेवाली बीमारियों से, इसके साथ ही अणुबम के विस्फोट के कारण फैलनेवाली घातक किरणों से भी अग्निहोत्र के कारण रक्षा होगी है । इस संदर्भ में अधिक जानकारी के लिए सनातन संस्था का ‘अग्निहोत्र’ ग्रंथ पढें ।
इ. भगवान के कृपाशीर्वाद मिलने के लिए प्रतिदिन लगभग २ घंटे अपने उपास्यदेवता का नामजप करें । यदि अपने कोई उपास्यदेवता न हों, तो भगवान श्रीकृष्ण का ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ नामजप करें । दुःख के, इसके साथ ही आनंद के प्रसंग में भी भगवान का स्मरण करें; कारण ‘कठिन प्रसंग में वे ही हमारे तारणहार हैं’, यह ध्यान में रखें । उनका स्मरण नहीं किया, उन्हें पुकारा नहीं, तो वे हमारी सहायता के लिए दौडे कैसे आएंगे ! भगवान का भक्त बनने पर ‘वे हमारी रक्षा करेंगेे’, ऐसी दृढ श्रद्धा हममें निर्माण होती है और हम कठिन प्रसंग में स्थिर रह पाते हैं । ‘मेरे भक्त का कभी नाश नहीं होता’, ऐसा उनका वचन ही है !
ई. धर्म की रक्षा करें । ‘धर्म का विनाश खुली आंखों से देखनेवाला महापापी होता है, तो धर्मरक्षा के लिए प्रयास करनेवाला मुक्ति का अधिकारी होता है’, ऐसा धर्मवचन है । इसके साथ ही ‘जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी रक्षा स्वयं धर्म (ईश्वर) करता है’, ऐसा भी धर्मवचन है । धर्मरक्षा करना, यह वर्तमानकाल के अनुसार आवश्यक धर्मपालन ही है । धर्मरक्षा के लिए कौरवों से लडने के कारण शिष्य अर्जुन गुरु श्रीकृष्ण को प्रिय हुए । संक्षेप में धर्मरक्षा के लिए कृति करने पर, हम पर ईश्वरीय कृपा होती है । वर्तमान में धर्मद्रोही एवं हिन्दूद्वेषी लोग धडल्ले से सनातन हिन्दू धर्म पर आघात कर रहे हैं । कानून की चौखट में रहकर (वैध मार्ग से) प्रथम उनका प्रबोधन करें और यदि वे सुन न रहे हों, तो उनका निषेध करते हुए उनका वैध मार्ग से विरोध करें ।’
– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, पीएच्.डी. महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (६.३.२०२२)