परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के अव्यक्त संकल्प के कारण गत एक वर्ष में विविध भाषाओं में सनातन के ३० नए ग्रंथ-लघुग्रंथ प्रकाशित और ३५७ ग्रंथ-लघुग्रंथों का पुनर्मुद्रण !
‘परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी अखिल मानवजाति के उद्धार तथा हिन्दू राष्ट्र- स्थापना का ध्वज फहराने के लिए अहर्निष कार्यरत महान विभूति हैं । ‘हिन्दू राष्ट्र’ धर्म के आधार पर ही स्थापित होगा । इसलिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए सर्वत्र धर्मप्रसार का कार्य होना नितांत आवश्यक है । धर्मप्रसार के कार्य में ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति और क्रियाशक्ति में से ज्ञानशक्ति का योगदान सर्वाधिक है । ज्ञानशक्ति के माध्यम से कार्य होने का सर्वाधिक प्रभावी माध्यम हैं ‘ग्रंथ’ ।
१. परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का आपातकाल की पृष्ठभूमि पर अधिकाधिक ग्रंथ प्रकाशित करने के विषय में अव्यक्त संकल्प !
१. परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का आपातकाल की पृष्ठभूमि पर अधिकाधिक ग्रंथ प्रकाशित करने से संबंधित अव्यक्त संकल्प ! : परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ने लगभग एक वर्ष पूर्व बताया था, ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए घोर आपातकाल प्रारंभ होने से पूर्व ‘ग्रंथों के माध्यम से अधिकाधिक धर्मप्रसार करना’ वर्तमान काल की श्रेष्ठ साधना है !’ इस प्रकार परात्पर गुरु डॉक्टरजी का ग्रंथ-निर्मिति का कार्य अधिक गति से होने की दृष्टि से उनका एक प्रकार से अव्यक्त संकल्प ही हो गया है । इसी संकल्प की फलश्रुति स्वरूप गत एक वर्ष में सनातन का ग्रंथकार्य अनेक गुना बढा है । आगे दिए कुछ सूत्रों से यह ध्यान में आता है ।
२. अप्रैल २०२१ से फरवरी २०२२ तक विविध भाषाओं के कुल ३० नए ग्रंथ-लघुग्रंथ प्रकाशित !
३. अप्रैल २०२१ से फरवरी २०२२ तक विविध भाषाओं के कुल ३५७ ग्रंथ-लघुग्रंथों का पुनर्मुद्रण !
४. ‘कोरोना’ महामारी के कारण ग्रंथों के विक्रय में मर्यादा होते हुए भी ग्रंथों का हुआ प्रचंड विक्रय !
‘कोरोना’ महामारी के कारण २३ मार्च २०२० से जनवरी २०२२ तक के काल में अधिकांश क्षेत्रों में संचारबंदी लागू थी । इसलिए सार्वजनिक स्थानों पर अध्यात्मप्रसार करने में अधिक मर्यादाएं थीं । इसलिए इस काल में सनातन ग्रंथों का सदैव की भांति विक्रय केंद्रों से वितरण नहीं हो पाया । ऐसा होते हुए भी ‘sanatanshop.com’, नियतकालिक ‘सनातन प्रभात’ में प्रकाशित विज्ञापन, सामाजिक जालस्थलों पर किए ‘पोस्ट’ आदि के माध्यम से गत एक वर्ष में सनातन के ५,४४,९४३ ग्रंथों का विक्रय हुआ है । इससे यह ध्यान में आता है कि सनातन पर ईश्वर की कृपा है तथा समाज को ग्रंथों का महत्त्व ज्ञात हो गया है ।
५. ‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’ को मिला पाठकों का अत्यधिक प्रतिसाद !
परात्पर गुरु डॉक्टरजी के अव्यक्त संकल्प के कारण सितंबर २०२१ से सनातन संस्था का राष्ट्रव्यापी ‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’ नामक उपक्रम आरंभ हुआ । इस अभियान के माध्यम से समाज के प्रत्येक घटक तक ग्रंथों का प्रसार हो रहा है तथा समाज से इस अभियान को अभूतपूर्व प्रतिसाद भी मिल रहा है । इस अभियान के अंतर्गत केवल ६ मास में ही हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी, कन्नड और गुजराती, इन ५ भाषाओं के ३,२७,३६३ ग्रंथों की बिक्री हुई है ।
६. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ग्रंथ कार्य में सम्मिलित होने से हो रही शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति !
आगामी काल ‘कोरोना’ महामारी से भी महाभयानक संकटों का काल होगा । इस काल में केवल ‘धर्माचरण और साधना’ ही मानव की तारणहार होगी । कालानुसार योग्य धर्माचरण और क्रिया के स्तर की साधना केवल सनातन के ग्रंथ सिखाते हैं । इसलिए आज भी परात्पर गुरु डॉक्टरजी ७९ वर्ष की आयु में प्राणशक्ति अत्यधिक अल्प होते हुए भी ग्रंथकार्य बढाने के लिए लगनपूर्वक कार्यरत हैं । उनके अव्यक्त संकल्प से ग्रंथकार्य इतना अधिक बढ सकता है, तो उस ग्रंथकार्य में हम यदि तन, मन और धन से सम्मिलित होंगे, तो क्या हमारी आध्यात्मिक उन्नति नहीं होगी ?
७. सबसे ग्रंथकार्य में सम्मिलित होने की नम्र विनती !
परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा संकलित ग्रंथों में से फरवरी २०२२ तक ३५१ ग्रंथ-लघुग्रंथों की निर्मिति हुई है । अन्य लगभग ५ सहस्र से अधिक ग्रंथों की निर्मिति की प्रक्रिया अधिक गति से होने के लिए अनेकों की सहायता की आवश्यकता है । आपकी रुचि और क्षमता के अनुसार ग्रंथ-निर्मिति की सेवा में आप भी सम्मिलित हो सकते हैं । इसके साथ ही ग्रंथों का प्रसार करना, ग्रंथों के लिए अर्पण अथवा विज्ञापन देने अथवा प्राप्त करना, ग्रंथों का वितरण करना आदि सेवाओं में आप भी सम्मिलित हो सकते हैं ।
– (पू.) श्री. संदीप आळशी, सनातन के ग्रंथों के संकलनकर्ता (६.३.२०२२)