शरीर में गर्मी बढने पर उसके लिए शारीरिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर करने योग्य विविध उपचार !
१. शरीर की गर्मी न्यून करने हेतु शारीरिक स्तर पर करने योग्य उपचार
१ अ. तुलसी के बीजों का सेवन करना : तुलसी के पत्ते गरम व बीज ठंडा होता है । गर्मी न्यून करने हेतु १ चम्मच तुलसी के बीज आधा कटोरा पानी में भिगोएं और सवेरे उसमें १ कटोरा गुनगुना दूध मिलाकर खाली पेट सेवन करें । ऐसा ७ दिन करें ।
१ आ. दूर्वा का रस पीना : दूर्वा बडी मात्रा में शीतल होती है; इसलिए दिन में २-३ बार दूर्वा का रस निकालकर उसे पीएं ।
१ इ. खस डाला हुआ पानी पीना : पानी में खस डालकर उसे दिन में प्यास लगे, तब पीएं ।
१ ई. पानी में सब्जा या इलायची डालकर पीना : पानी में सब्जा या इलायची छिलकर डालें और वह पानी दिन में जब भी प्यास लगे, तब पीएं ।
१ उ. पानी में धनिया भिगोकर वह पानी पीना : धनिया का सेवन करने से शरीर में शीतलता बढती है । इसलिए पानी में धनिया भिगोकर वह पानी दिन में प्यास लगे, तब पीएं ।
१ ऊ. गुलकंद का सेवन करना : गुलाब की पंखुडियों से गुलकंद बनाया जाता है । गुलाब की पंखुडियां शीतल होने से गर्मी बढने पर गुनगुने दूध में गुलकंद मिलाकर सवेरे खाली पेट उसका सेवन करना चाहिए । गुलकंद के स्थान पर गुलाब का शरबत बनाकर भी पी सकते हैं ।
१ ए. भोजन में छाछ लेना : भोजन में देसी गाय के दूध से बना छाछ लें । गाय का दूध उपलब्ध न हो, तो भैंस के दूध से बनाया हुआ छाछ दोपहर के भोजन में नियमित लें । कुछ लोगों को छाछ पीने से कष्ट बढ सकता है । वे छाछ न लें ।
१ ऐ. आंखों पर खीरा अथवा आलू काटकर उनकी चकतियां रखना : गर्मी के कारण आंखों में जलन हो, तो आंखों पर खीरा अथवा आलू काटकर उनकी चकतियां १५-२० मिनट तक रखें । यह उपचार दिन में २-३ बार करें ।
१ ओ. पैर के तलुओं को गोपीचंदन अथवा चंदन का लेप लगाना : शरीर की गर्मी पैर के तलुवों से बाहर निकलती रहती है । गोपीचंदन या चंदन शीतल होने के कारण गर्मी बढने पर तलुओं को दिन में २-३ बार उसका लेप लगाएं व न्यूनतम ३० मिनट रखें ।
१ औ. तलुवों को मेहंदी लगाना
१ अं. तलुओं को तेल लगाकर कांसे की कटोरी से मर्दन करना : तलुओं को नारियल तेल लगाकर कांसे की कटोरी से दिन में न्यूनतम १ बार और अधिकतम ३-४ बार तलुओं पर मर्दन करने से शरीर की गर्मी कांसे की कटोरी में खींच ली जाती है ।
उपरोक्त आयुर्वेदीय उपचार अधिकतम १५ दिन करके देखें । इन उपचारों से भी कष्ट न्यून न हों, तो स्थानीय वैद्य से सुझाव लें ।
२. शरीर की गर्मी न्यून करने हेतु आध्यात्मिक स्तर पर करनेयोग्य उपचार
२ अ. नामजप
२ अ १. आपतत्त्व की मुद्रा कर वरुणदेवता का नामजप करना अथवा ‘वं’ बीजमंत्र का उच्चारण करना : अनामिका आपतत्त्व से संबंधित है । उसके कारण शरीर में गर्मी बढने पर अंगूठे का सिरा अनामिका से सिरे पर अथवा मूल में लगाकर आपतत्त्व की मुद्रा कर न्यूनतम आधा घंटा ‘श्री वरुणाय नम:’ नामजप करें । वरुणदेवता आपतत्त्व के देवता हैं । इसलिए उनका नामजप और ‘वं’ का बीजमंत्र आपतत्त्व से संबंधित है इसलिए यह बीजमंत्र न्यूनतम आधा घंटा करने से देह में विद्यमान तेजतत्त्व न्यून होकर आपतत्त्व बढने लगता है । इससे शरीर की गर्मी घटकर शीतलता बढने में सहायता मिलती है ।
२ अ २. देवताओं के तारक रूप का और रामनाम का जप करने का आध्यात्मिक महत्त्व : देवताओं के तारक रूप के जप से तारक शक्ति और मारक रूप के जप से शक्ति प्रक्षेपित होती रहती है । तारक शक्ति के स्पंदन शीतल, जबकि मारक शक्ति के स्पंदन गरम होते हैं । इसलिए शरीर में गर्मी बढने पर देवताओं के तारक रूप का न्यूनतम १ घंटा जप करें । सभी देवताओं के जप में से प्रभु श्रीराम के तारक रूप का न्यूनतम १ घंटा जप करने से शरीर को शीतलता व मन को शांति मिलती है । समुद्रमंथन के समय हलाहल (विष) का सेवन करने पर शिवजी के शरीर की बहुत जलन हो रही थी, तब उन्होंने अपने शरीर का ताप शांत करने हेतु अपने मस्तक पर चंद्र, जटा में गंगा, देह पर ९ नाग और भस्मलेपन किया; परंतु तब भी उनके शरीर की जलन शांत नहीं हो रही थी; इसलिए उन्होंने प्रभु श्रीराम का ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ जप आरंभ किया । इससे शिवजी के शरीर की हो रही जलन शांत हुई ।
श्रीविष्णु के सहस्रनामों में से श्रीराम का नाम सर्वश्रेष्ठ है । ३ बार उच्चारित श्रीराम का नाम श्रीविष्णुसहस्रनाम के समान है ।
२ आ. देह में स्थित सूर्यनाडी बंद कर चंद्रनाडीआरंभ होने हेतु प्राणायाम और अन्य उपचार करना : जब व्यक्ति की सूर्यनाडी आरंभ होती है, तब उसके शरीर की गर्मी बढती है । दाहिनी नासिका सूर्यनाडी का, जबकि बाईं नासिका चंद्रनाडी का प्रतीक है । बाईं नासिका से ५-१० मिनट सांस लेकर उसे बाईं नासिका से छोडने का प्रयास करें । उसके कारण व्यक्ति की चंद्रनाडी आरंभ होती है । उसी प्रकार १५-२० मिनट दाहिनी करवट पर सोने के कारण सूर्यनाडी बंद होकर चंद्रनाडी आरंभ होती है और उससे शरीर की गर्मी घट जाती है ।
२ इ. नमक के पानी में पैर डुबाने का उपचार करना : शरीर में अनिष्ट शक्तियोें के प्रभाववश गर्मी बढती है । ऐसे में १५ से २० मिनट तक नमक के पानी में पैर डुबाकर बैठ जाएं । इससे शरीर में विद्यमान अनिष्ट शक्ति नमक के पानी में खींच ली जाती है और उससे शरीर की गर्मी न्यून होने में सहायता मिलती है ।
२ ई. खाली बक्सों का उपचार करना
२ ई १. मुंह के सामने रिक्त बक्सा पकडना : मुंह में गर्मी बढने पर उसके सामने १५ से २० मिनट तक रिक्त बक्सा पकडें । उससे मुंह में संग्रहित अनिष्ट शक्ति रिक्त बक्से में खींच ली जाती है और उससे शरीर की गर्मी घट जाती है ।
२ ई २. रिक्त बक्से में पैर रखकर बैठना : गर्मी के कारण तलुओं की जलन हो, तो बडे आकार के रिक्त बक्से में २० से ३० मिनट तक दोनों पैर रखकर बैठें । इससे बक्से में विद्यमान रिक्ति में पैर में विद्यमान कष्टदायक शक्ति अथवा गर्मी खींची जाती है और उससे शरीर की गर्मी घट जाती है ।
३. संगीत में स्थित केदार, मालकंस एवं अमृतवर्षिणी राग सुनना
‘मेघमल्हार’ राग आपतत्त्व से संबंधित है । ‘केदार एवं मालकंस राग शिवतत्त्व से संबंधित हैं । अमृतवर्षिणी कर्नाटकी राग है, जो आपतत्त्व से संबंधित है ।’ – सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत), संगीत विशारद, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
केदार और मालकंस राग में शिवतत्त्व कार्यरत है । यह तत्त्व निर्गुण स्वरूप का है तथा वह आकाशतत्त्व से संबंधित है । शरीर की गर्मी तेजतत्त्व से संबंधित है । शरीर में तेजतत्त्व बढने पर वहां की गर्मी भी बढती है । तब १५ से २० मिनट तक आकाशतत्त्व से संबंधित ‘केदार और मालकंस’ तथा आपतत्त्व से संबंधित ‘मेघमल्हार’ का गायन या वादन सुनने से शरीर में आकाश अथवा आपतत्त्व बढकर तेजतत्त्व की तीव्रता न्यून होती है । उससे शरीर में बढी गर्मी घटकर शीतलता बढती है । व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार उसे विविध प्रकार के उपचार लागू होते हैं । उसके कारण कुछ लोगों को शिवतत्त्व से अर्थात आकाशतत्त्व से और कुछ लोगों को आपतत्त्व से संबंधित राग सुनने पर लाभ मिलता है और उससे उनकी गर्मी न्यून होती है ।
कृतज्ञता
‘भगवान की कृपा से शरीर की गर्मी को घटाने के लिए शारीरिक और आध्यात्मिक स्तर पर उक्त उपचार सूझे’; इसके लिए मैं भगवान के चरणों में कृतज्ञ हूं !’
– कु. मधुरा भोसले (आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत) (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (९.१.२०२२)