परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
राष्ट्र की दुर्दशा करनेवाली सर्वदलीय सरकारें !
‘भ्रष्टाचार, बलात्कार, राष्ट्रद्रोह, धर्मद्रोह बढने का मूल कारण है, समाज को सात्त्विक बनानेवाली साधना न सिखाना । जिन्हें यह भी नहीं समझ में आता, ऐसे सर्व दल राज्य करने के योग्य हैं क्या ? केवल हिन्दू (ईश्वरीय) राष्ट्र में ही रामराज्य की अनुभूति होगी ।’
साधना सिखाने का महत्त्व !
‘धर्म त्याग सिखाता है; जबकि राजनीति स्वार्थ सिखाती है । इसलिए आरक्षण आदि बढ रहे हैं । इसका एक ही उपाय है और वह है, सभी को सर्वस्व का त्याग सिखानेवाली साधना सिखाना !’
बुद्धिप्रमाणवादियों की सीमा !
बुद्धिप्रमाणवादियों को अहंकार होता है, ‘मानव ने विभिन्न यंत्रों का आविष्कार किया ।’ उन्हें यह समझ नहीं आता कि ईश्वर ने जीवाणु, पशु, पक्षी ७० से ८० वर्ष चलनेवाला एक यंत्र अर्थात मानव शरीर जैसी अरबों वस्तुएं बनाई हैं । क्या उनमें से एक भी वैज्ञानिक बना पाए हैं ?’
बुद्धिप्रमाणवादियों की दुर्दशा !
‘आंखें खोलने पर दिखाई देता है; उसी प्रकार साधना से सूक्ष्म दृष्टि जागृत होने पर सूक्ष्म का दिखाई देता है और ज्ञान होता है । साधना करके सूक्ष्म दृष्टि न जागृत करने के कारण बुद्धिप्रमाणवादी अंधे समान ही होते हैं ।’
साधक और नेताओं में भेद !
‘नेता अपने लाभ के लिए समाज से कहते हैं, ‘मुझे मत (वोट) दो ।’ इसके विपरीत साधक समाज से अपने लिए कुछ नहीं मांगते; अपितु ‘ईश्वरप्राप्ति के लिए साधना करो’, ऐसा कहते हैं !’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले