जोधपुर की दैवी बालसाधिका कु. वेदिका मोदी को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के समक्ष भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुत करते देख कु. मधुरा भोसले को हुई अनुभूति !
जोधपुर (राजस्थान) की ५७ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त दैवी बालसाधिका कु. वेदिका मोदी (आयु १४ वर्ष) को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के समक्ष भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुत करते देख कु. मधुरा भोसले को हुई अनुभूति !
‘जोधपुर निवासी पू. (श्रीमती) सुशीला मोदीजी एवं मोदी साधक परिवार रामनाथी (गोवा) स्थित सनातन आश्रम देखने हेतु आए थे । १०.१.२०२२ के दिन पू. (श्रीमती) सुशीला मोदीजी एवं उनके परिवार के सदस्यों की परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के साथ उन्हीं के कक्ष में भेंट हुई । उस समय पू. (श्रीमती) मोदीजी की पोती कु. वेदिका मोदी (आयु १४ वर्ष) ने ‘ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान ।’ इस भक्तिगीत पर सुंदर नृत्य प्रस्तुत किया । उस समय मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में नृत्य के समय श्रीकृष्ण का तत्त्व जागृत हुआ है । (अन्य समय उनमें श्रीविष्णु का तत्त्व निर्गुण-सगुण स्तर पर कार्यरत रहता है ।)
नृत्य करते समय कु. वेदिका ने घागरा पहना था । उसे देखकर प्रतीत हुआ कि घागरा पहनने के कारण उसके स्थान पर ‘एक नन्हीसी गोपी ही श्रीकृष्ण के समक्ष भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुत कर नृत्य के माध्यम से श्रीकृष्ण की उपासना कर रही है । उसका यह नृत्य हो रहा था, तब उसके हृदय में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भाव जागृत हो गया । इससे कु. वेदिका ने इस नृत्य में की हुई विविध हस्तमुद्रा एवं पदन्यास देखते समय उनसे भाव, चैतन्य एवं आनंद की तरंगों का प्रक्षेपण होकर पूरा वातावरण कृष्णलोक के समान हो गया । भगवान श्रीकृष्ण से मिलने हेतु आतुर एक गोपी की मधुराभक्ति से ओतप्रोत आर्त्तभाव कु. वेदिका के नृत्य से प्रतीत हो रहा था, जिससे नृत्य देखते समय मेरा भी श्रीकृष्ण के प्रति आर्त्तभाव जागृत हुआ ।
नृत्य का समापन करते समय कु. वेदिका ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों पर मस्तक रखकर पूरे मन से कृतज्ञता व्यक्त की एवं उनके चरणों पर भावाश्रु बहाए । उस समय उसकी समर्पणभाव की मुद्रा देखकर प्रतीत हुआ कि शबरी ने जिस प्रकार प्रभु श्रीराम के चरणों पर समर्पणभाव से मस्तक रखा था, वैसा समर्पणभाव वेदिका में जागृत हुआ है । उसकी भावमुद्रा एवं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपालु मुद्रा देखकर मोदी परिवार के सदस्य स्तब्ध हो गए । मुझे लग रहा था कि इस भावावस्था से बाहर ही न आएं । यह नृत्य देखकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने कहा, ‘‘मुझे तो लगा मैं भी नृत्य सीखूं । ऐसा सुंदर नृत्य मैंने कभी नहीं देखा ।’’ – कु. मधुरा भोसले (आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (८.२.२०२२)