सदोष लोकतंत्र एवं उस संदर्भ में कुछ भी न करनेवाले निद्रित मतदार !
लोकतंत्र या फिर भ्रष्टतंत्र ?
भाग ८.
भाग ७. पढने के लिए क्लिक करें – https://sanatanprabhat.org/hindi/48340.html
६. लोकतंत्र या परिवारवाद ?
६ अ. परिवारवाद चलानेवाले नेताओं के बच्चों की मानसिकता ! : परिवारवाद का समर्थन करनेवाले कुछ लोगों का कहना है कि आप इस परिवारवाद पर टीका क्यों करते हैं ? जिसप्रकार किसी ‘डॉक्टर’ को लगता है कि अपना बेटा ‘डॉक्टर’ ही होना चाहिए, किसी अधिवक्ता को लगता है कि उसका वेटा अधिवक्ता ही हो, किसी अभिनेता को लगता है कि उसका बेटा भी अभिनेता ही बने, उसीप्रकार यदि किसी राजकीय नेता को ऐसा लगे कि उसका बेटा भी राजकीय नेता बने, तो इसमें गलत क्या है ? यह युक्तिवाद सुनने पर हमें भी क्षणभर ऐसा ही लगता है कि वे योग्य ही बोल रहे हैं; परंतु वास्तव में वह सच नहीं । किसी डॉक्टर को अपना बेटा डॉक्टर बने, ऐसा कितना भी मन से लगता हो और कितना भी मन से लगे और उसने केवल घोषणा की है, मेरा बेटा कल से ‘डॉक्टर’ होगा और वह तुम पर उपचार करनेवाला है, तो समाज उसे स्वीकारेगा क्या ? तो निश्चित ही नहीं । वास्तव में डॉक्टर के लडके को यदि डॉक्टर बनना हो, तो उसे समाज के अन्य लडकों की तुलना में अधिक अभ्यास करना होगा, प्रवेशपरीक्षा देनी होगी, ५ वर्षों का पाठ्यक्रम पूर्ण कर परीक्षा में उत्तीर्ण होना होगा, फिर ही वह स्वयं को ‘डॉक्टर’ कहलवा सकता है । ऐसा कौनसा परिश्रम, नेता बनने की इच्छा रखनेवाले इस परिवारवाद चलानेवाले नेताओं के बच्चे लेते हैं क्या ? पिता जो कि राजकीय नेता हैं उनकी ‘होर्डिंग’पर (रास्ते पर लगाए जानेवाले बडे फलकों पर) ‘भावी नेतृत्व’, युवा नेतृत्व’, उदयोन्मुख नेतृत्व’ के रूप में झलकते हुए उनके राजकीय प्रवास का प्रारंभ होता है और फिर विद्यार्थी संगठन, युवा संगठन, सामाजिक संगठन के प्रमुख, सहकारी संस्था, नगर परीषद, जिला परीषद से राजकीय नेता, ऐसी सहजसुलभ यात्रा वे करते हैं ।
ऐसी ही एक परिवारवाद पर चर्चा में एक राजकीय नेता ने प्रश्न किया था कि अभिनेताओं के लडके क्या अभिनेता नहीं बनते; फिर हमारे लडके राजकीय नेता बनने के संबंध में ही क्यों आक्षेप लिया जाता है ? इस प्रतिपक्ष के सामाजिक कार्यकर्ताओं पर सुदंर उत्तर दिया था कि अभिनेता का लडका यदि अभिनेता बन जाए, तो समाज उसका अभिनय देखकर उसे स्वीकारना है या नहीं, वह निश्चित करता है । उसमें भी यदि उसकी फिल्म नहीं चली, तो उसकी अधिक से अधिक उससे आर्थिक हानि होगी, देश पर उसका परिणाम नहीं होता; परंतु यदि तुम्हारा बेटा जिसमें क्षमता न हो, केवल परिवारवाद के कारण राजकीय पद पर बैठ जाए और कल जनहित एवं देशहित का निर्णय लेनेवाला हो, तो वहां क्षमता के अभाव में उसका निर्णय गलत होने पर उसका सीधा परिणाम देश पर होकर देश ही डूब सकता है । इससे अभिनेता एवं नेता के परिवारवाद के विषय में समान दृष्टिकोण नहीं रखा जा सकता ।
अपने देश की १३५ करोड इतनी प्रचंड लोकसंख्या में अनेक होशियार एवं गुणवान विद्यार्थी होते हैं, जो परदेश में जाकर वहां की बहुराष्ट्रीय आस्थापनों के प्रमुख भी बनते हैं; परंतु परिवारवाद चलानेवाले अपने राजकीय पक्षों के नेताओं के राजकीयपद के लिए होशियार कार्यकर्ताओं की नहीं, अपितु सगे-संबंधियों की आवश्यकता लगती है । इससे एक प्रकार से अपने ही देश की हानि कर ली जाती है ।
६ आ. पक्ष के निष्ठावान कार्यकर्ताओं पर अन्याय करनेवाली परिवारवाद ! : सभी राजकीय पक्षों के नेताओं से उनकी पत्नी, बच्चे, नाती-पोते आदि को प्रत्याशी बनाने की प्रधानता देकर परिवारवाद संजोई जाती है । नेता को प्रथम प्रधानता होती है; परंतु मतदारसंघ आरक्षित होने पर अथवा कुछ कारणवश नेता को चुनाव लडना संभव न होने पर, तुरंत उसकी पत्नी का नाम आगे कर दिया जाता है । अपने ही देश का एक प्रसिद्ध उदाहरण है कि चारा घोटाले में बिहार के मुख्यमंत्रीपद से त्यागपत्र देकर, कारागृह में जाने का समय आने पर लालूप्रसाद यादव ने तुरंत ही राजनीति एवं शिक्षा की गंध भी जिसे नहीं थी, अर्थात उनकी पत्नी राबडी देवी को सीधे मुख्यमंत्रीपद पर विराजमान किया और सत्ता का कार्यभार अपने ही हाथों में रखा । चुनावों के काल में भी नेता अपने पक्ष के लिए अनेक वर्षों से काम करनेवाले निष्ठावान कार्यकर्ताओं को झूठे आश्वासन देते रहते हैं कि अगले चुनावों में आपको ही टिकट (उम्मीदवारी) दूंगा । इसकारण बेचारे निष्ठावान कार्यकर्ता अगले चुनावों में हमें ही टिकट मिलेगा, इस आशा से कमर कसकर जीतोड परिश्रम करते हैं । पांच वर्षों में वे मतदारसंघ बनाते हैं, लोकसंग्रह करते हैं, कुछ मात्रा में लोगों के काम इत्यादि भी करते हैं; परंतु चुनावों के समय ‘पक्षश्रेष्ठी’ नामक हुकुमशाह अपने ही सगे-संबंधियों में से किसी को प्रत्याशी बना देते हैं । यह उन निष्ठावान कार्यकर्ताओं के साथ किया विश्वासघात है ।
(क्रमशः)
भाग ९. पढने के लिए क्लिक करें – https://sanatanprabhat.org/hindi/48394.html
श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति.