सदोष लोकतंत्र एवं उस संदर्भ में कुछ भी न करनेवाले निद्रित मतदार !
लोकतंत्र या फिर भ्रष्टतंत्र ?
भाग ७.
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६. लोकतंत्र या परिवारवाद ?
सामान्य घर से आकर ‘बॉलीवुड’में अपने बलबूते ‘अच्छा अभिनेता’ के रूप में अपनी छवि बनानेवाले सुशांत सिंह राजपूत, इस युवा अभिनेता ने वर्ष २०२० में आत्महत्या की और संपूर्ण देशभर में ‘नेपोटिजम’ अर्थात परिवारवाद (अपने प्रियजनों को आगे बढावा देना), परिवारवाद, वंशवाद के संदर्भ में चर्चा आरंभ हो गई । भारत की युवा पीढी को यह चर्चा भले ही नई लग रही हो, तब भी यह परिवारवाद कदापि नई नहीं है । स्वतंत्रताप्राप्ति के पश्चात भारत पर सर्वाधिक काल राज्य करनेवाले काँग्रेस पक्ष के अध्यक्षपद को नेहरू-गांधी घराने के पास ही गिरवी रखने समान है । भारत की स्वतंत्रता के उपरांत ७४ वर्षों के इतिहास में से ४१ वर्ष यह पद जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी ने नेहरू-गांधी कुटुंब के ५ व्यक्तियों के आसपास ही मंडरा रहा है । उसमें भी वर्ष १९९८ से वर्ष २०२२, इन २४ वर्षों के काल में तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी, इन दोनों के पास ही केंद्रित हो गया है । ‘भारत का सबसे पुराना लोकतंत्र व्यवस्था का राजकीय पक्ष’ ऐसा गौरव से बतानेवाले काँग्रेस पक्ष के नेताओं को स्वंय के पक्ष में भी लोकतंत्र नहीं, अपितु परिवारवाद शुरु है’, इसकी लाज नहीं आती । यही बहुत आश्चर्यजनक लगता है ! अर्थात इस परिवारवाद के लिए कारणीभूत होते हैं ‘जीहजूरी’ करते हुए अपना स्वार्थ साधनेवाले नेता । इसका उदाहरण है वर्ष १९७५ में इंदिरा गांधी द्वारा लागू किए गए आपातकाल में काँग्रेस के नेता देवकांत बरुआ द्वारा ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ (इंदिरा अर्थात भारत एवं भारत अर्थात इंदिरा) दी गई यह घोषणा प्रसिद्ध हुई थी ।
Few important parallel developments at the same time include the Nav Nirman movement led by Akhil Bhartiya Vidyarthi Parishad (@ABVPVoice) in Gujarat, Sampoorna Kranti (total revolution) agitation led by Jayaprakash Narayan (JP), & national strike by the Railway workers union.
— Bar & Bench (@barandbench) June 25, 2020
जिस भारत का लाखों वर्षां का प्राचीन इतिहास है, जिस भारत में राम-कृष्णादि अनेक अवतार हुए हैं, इसके साथ ही व्यास-वाल्मीकि, तुलसीदास, ज्ञानेश्वर, तुकाराम महाराज जैसी महान ऋषि-संत परंपरा है । जिस भारत में चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे अनेक वीर राजा-महाराजा, योद्धा होकर गए हैं, इन सभी का इतिहास एक क्षण में समाप्त कर आपातकाल द्वारा भारत की लोकतंत्र व्यवस्था को एक ओर रख एवं भारत पर एक प्रकार की हुकुमशाही लादनेवाली इंदिरा गांधी तक भारत को मर्यादित करना’, इसे परिवारवाद को प्रचलित करनेवाले जीहजूरी का लक्षण नहीं, तो क्या कहेंगे ? देश के एक सर्वपरिचित उदाहरण के रूप में केवल हम नेहरू-गांधी घराने का यह उदाहरण यहां देखा; परंतु भारत में यदि अन्य किसी भी राज्य का अथवा राजकीय पक्ष का विचार करें, तो वहां कुछ अलग नहीं मिलेगा । महाराष्ट्र का पवार घराना, चव्हाण घराना, पाटील घराना, देशमुख घराना ऐसे प्रमुख कुछ घरानों का अध्ययन करने पर वहां भी यही घरानों का लोकतंत्र शुरू है, ऐसा चित्राभ्यास करने पर वहां भी इन्हीं ‘घरानों का’ लोकतंत्र दिखाई देता है । तमिलनाडु राज्य में भी करुणानिधी के उपरांत उनके उत्तराधिकारी के रूप में पुत्र स्टैलिन मुख्यमंत्री बन गए हैं । उत्तरप्रदेश में राम मनोहर लोहिया के नाम पर ‘समाजवादी पक्ष’ चलानेवाले मुलायम सिंह यादव ने तो इन सभी पर कहर ढा दिया है । उन्होंने अपने ही घर के एक-दो नहीं, अपितु ११ सगे-संबंधियों को विविध स्थानों से चुनाव में विजयी कर, राजकीय पदों पर बिठा दिया । यही समाजवाद का रंग दिया जा रहा है और निर्धन जनता उसे लोकतंत्र मान रही है । यह सब देखने पर भारत में विद्यमान राज्यव्यवस्था को सचमुच लोकतंत्र कह सकते हैं क्या ?’, यह एक जटिल प्रश्न है ।
(क्रमशः)
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श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति.