सदोष लोकतंत्र एवं उस संदर्भ में कुछ भी न करनेवाले निद्रित मतदार !
लोकतंत्र या भ्रष्टतंत्र ?
भाग ३
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३. भारत के लोकतंत्र की शोकांतिका !
इसका अर्थ है उन्हें परतंत्रता चाहिए क्या ? तो निश्चित ही नहीं ! उनके बोलने का मतितार्थ यह है कि ‘उस काल के राजकीय अथवा प्रशासकीय व्यवस्था आज की तुलना में अच्छी थी । इस दृष्टि से हम भी स्वतंत्रता के उपरांत के काल का मोटे तौर पर अवलोकन करें, तो भारत में लोकतंत्र के अस्तित्व में आने पर भारत की शिक्षा, आरोग्य, कृषि, पर्यावरण, राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में परम अधोगति दिखाई देती है । हां, यदि प्रगति हुई है तो भ्रष्टाचार, गुंडागिरी, अनैतिकता, स्वैराचार, धर्मांधता, जातीयवाद, अलगाववाद, देशद्रोह आदि में ! अर्थात निष्कर्ष निकाला जाए, तो भारत में लोकतंत्र के अस्तित्व में होने से अच्छे परिणाम नहीं दिखाई देते !
३ अ. राष्ट्रवाद की कसौटी पर भी विद्यमान लोकतंत्र की हुई दुर्दशा ! : भारत में अनेक स्थानोंपर राष्ट्रविघातक कार्यवाहियां होते हुए दिखाई देती हैं । इसके कुछ उदाहरण नीचे दिए हैं ।
३ अ १. गुंटूर, आंध्रप्रदेश के ‘जीना टॉवर’पर राष्ट्रध्वज फहराने का प्रयत्न करनेवाले व्यक्ति को पुलिस द्वारा बलपूर्वक बंदी बनाना : इसी वर्ष के प्रजासत्ताकदिन पर आंध्रप्रदेश के गुंटूर में ‘जीना टॉवर’पर भारतीय राष्ट्रध्वज फहराने का प्रयत्न करनेवाले व्यक्ति को ही पुलिस बलपूर्वक बंदी बनाकर ले गई । दुर्भाग्य से यही पुलिस और राजकीय सरकार, भारत के राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा करने की शपथ ले चुकी है ! वे भारतीय नागरिकों द्वारा भरे कर से वेतन लेते हैं; परंतु प्रत्यक्ष में वे भारत का विभाजन कर, पाकिस्तान बनानेवाले ‘जिन्नाह’ का संरक्षण कर रहे हैं ।
३ अ २. भारत के अल्पसंख्यबहुल भागों में रहनेवालों का पाकप्रेम ! : आज भी भारत में अनेक स्थानों पर शत्रुराष्ट्र पाक का झंडा बेधडक फहराया जाता है । इसके साथ ही भारत के अनेक अल्पसंख्यबहुल प्रदेशों में पाकिस्तान के समर्थन में और भारतविरोधी नारे दिए जाते हैं । गत वर्ष क्रिकेट विश्वचषक (वर्ल्ड कप) के सामने (टेस्ट मैच) में प्रथम बार ही पाकिस्तान द्वारा भारत का पराभव करने के पश्चात इन प्रदेशों में आनंदोत्सव देखने मिला था । जम्मू-कश्मीर राज्य के कश्मीर में तो खुले आम ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’के नारे दिए जाते हैं ।
३ अ ३. अफगानिस्तान में आतंकवादी तालिबानियों की सत्ता आने पर भारत के धर्मांध नेताओं द्वारा अभिनंदन : भारत के कुछ राजकीय पक्षों के मुसलमान नेताओं ने तो अफगानिस्तान का लोकतंत्र उद्धवस्त कर, वहां आतंकवादी तालिबान की अत्याचारी सरकार सत्ता में आनेपर तालिबान का अभिनंदन किया । इस घटना से ऐसों की लोकतंत्र के प्रति जो भूमिका है, वह स्पष्ट होती है ।
३ अ ४. भारत में अलगाववादी आतंकवादी संगठन का बढता प्रभाव ! : भारत में पंजाब के खलिस्तानवादी, इस अलगाववादी गुट ने पुन: सिर उठाना आरंभ किया है । कृषकों के आंदोलन के निमित्त से किए गए आंदोलन में मृत खलिस्तानी आतंकवादी भिंद्रनवाले के छायाचित्रवाले ध्वज, बैनर, भीतपत्रक खुलेआम उपयोग किए गए । देहली के लाल किले पर से भारत का तिरंगा उतारकर वहां खलिस्तान का ध्वज लगाया गया ।
३ अ ५. अलगाववादियों ने तीनों सेनादलों के प्रमुख जनरल रावत की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु के उपरांत आनंदोत्सव मनाया ! : इससे भी भयंकर बात यह है कि भारत के प्रथम तीनों सेनादलों के प्रमुख (सी.डी.एस्.) जनरल बिपीन रावत का अन्य सेनाधिकारियों सहित एक दुर्भाग्यपूर्ण अपघात में मृत्यु होने के उपरांत समाजमाध्यमों पर आनंदोत्सव मनाया । यह अलगाववाद अब दक्षिण भारत में भी फैल रहा है । तमिळनाडु के कन्याकुमारी में जी.के. शिवराजभूपती ने ‘फेसबुक’पर लिखा है, ‘फासिस्टों’के किराए के हुकुमशाह बिपीन रावत के लिए अश्रु बहाना, लज्जाजनक है ।’ देश के प्रमुख राजकीय पक्षों के कुछ नेता ऐसे प्रसंगों में राष्ट्रवाद की भूमिका से एकत्र न आते हुए, उस अलगाववाद का समर्थन करते हुए दिखाई दे रहे थे ।
३ अ ६. राष्ट्रघातकी कार्यवाहियों के अड्डे बने भारत के कुछ विश्वविद्यालय ! : भारत की कुछ शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा भी राष्ट्रवाद की सीख देने के स्थान पर राष्ट्र्रद्रोही मनोवृत्ति विकसित की जा रही है । इसका एक उदाहरण है कि कुछ वर्ष पूर्व देहली के जे.एन्.यू. में (जवाहरलाल नेहरू विद्यापीठ मेें) भारत के टुकडे-टुकडे करने का प्रण लिया गया था । एक मार्ग का ‘वीर सावरकर’ नाम था । उसे मिटाकर ‘बैरिस्टर मुहम्मद अली जिन्नाह’ नामकरण किया गया । स्वामी विवेकानंद के पुतले की विडंबना की गई । इस घटना से यह ध्यान में आता है कि भारत के इस विश्वविद्यालय से कितनी देशद्रोही एवं विषैली पीढी तैयार हो रही है । इस देशद्रोही पीढी के विद्यार्थी उच्चशिक्षित होने से वे कल भारत के राज्यव्यवस्था में भी सम्मिलित होकर, विविध महत्त्वपूर्ण पद संभालनेवाले हैं । इसका अर्थ यह है कि वे राज्यव्यवस्था में रहकर, भारत से वेतन लेकर भारतीय राज्यव्यवस्था के ही विरोध में कार्य करनेवाले होंगे ।
सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण बात तो यह है कि अपने लोकशाहीधिष्ठित देश की इतनी दुर्दशा होने के उपरांत भी किसी पर कोई भी ठोस कार्यवाही नहीं की जाती ! न्यायालय भी राष्ट्रगीत के समय खडे न होकर, उसका अनादर करनेवालों को यह कहते हुए छूट देता है कि ‘यह उनकी व्यक्तिस्वतंत्रता है’ । आज किसी को भी कानून का भय नहीं रह गया है । यह विद्यमान लोकतंत्र की घोर असफलता है । इसे ‘भारतीय लोकतंत्र की शोकांतिका’ नहीं कहेंगे, तो और क्या कहेंगे ?’
(क्रमश:)
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– श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति.