परात्पर गुरु डॉक्टरजी का राष्ट्र व साधना के विषय में मार्गदर्शन !
‘अनेक राजनेताओं को जब उनके राजनीतिक दल प्रत्याशी नेता नहीं बनाते, तब वे उस राजनीतिक दल को छोडकर प्रत्याशी बनानेवाले अन्य राजनीतिक दल में चले जाते हैं । जिन नेताओं में पक्ष के प्रति निष्ठा नहीं है, उनमें देश के प्रति कितनी निष्ठा होगी ? और ऐसे स्वार्थी राजनेता जनता का भी क्या भला करेंगे ?’
साधना में स्थूल चूकें बताने का महत्त्व !
‘साधना में मन के स्तर पर होनेवाली अनुचित विचारप्रक्रिया अधिक बाधक होती है । अंतर्मुखता के अभाव में साधक को स्वयं की चूकें पता नहीं चलती और चूकें उसके मन के स्तर की होने के कारण अन्यों के ध्यान में भी नहीं आता । यह विचारप्रक्रिया अयोग्य क्रिया के माध्यम से व्यक्त होती रहती है । इसलिए इस अनुचित क्रिया का भान संबंधित साधक को करवाने से उसे उसकी अनुचित विचारप्रक्रिया का भान होने में सहायता मिलती है । उदा. एक साधक के मन में दूसरे साधक के प्रति जो पूर्वाग्रह होता है, वह अन्यों को ध्यान में नहीं आता; परंतु किसी एक प्रसंग में ‘एक साधक के लिए संभव होते हुए भी उसने दूसरे साधक की सहायता नहीं की’, इस अनुचित क्रिया का भान साधक को करवाएं, तो उसके ध्यान में आ सकता है कि उसने पूर्वाग्रह के कारण उस साधक की सहायता नहीं की थी । इसलिए साधना में स्थूल रूप से होनेवाली चूकें संबंधित साधक को बताना, उसकी साधना के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होता है ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (३०.१२.२०२१)