सनातन के साहित्य में उपयोग की गई संस्कृतनिष्ठ हिन्दी भाषा की कारणमीमांसा
पाठकों, शुभचिंतकों एवं धर्मप्रेमियों के लिए सूचना
१. वर्तमान में सर्वत्र उपयोग की जानेवाली हिन्दी में अन्य भाषा के (उदा. उर्दू, अरबी, फारसी तथा अंग्रेजी के) शब्दों की संख्या अधिक होती है । ये शब्द अधिक प्रचलित हो जाने के कारण मूल हिन्दी शब्द कठिन प्रतीत होते हैं ।
भाषा जितनी अधिक शुद्ध होती है, उतनी ही चैतन्यमय होती है । इस नियम के अनुसार सनातन के साहित्य में शुद्ध हिन्दी का उपयोग किया जाता है । संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का उपयोग किए जाने के कारण पाठकों को भाषा कठिन प्रतीत हो सकती है; परंतु इस प्रकार के शब्दों का उपयोग करते रहने पर कालान्तर में हम इन शब्दों के अभ्यस्त हो जाते हैं तथा हमें भाषा कठिन प्रतीत नहीं होती । पाठकों की सुविधा के लिए कठिन शब्दों के आगे कोष्ठक में वैकल्पिक अन्य भाषा के शब्द का उल्लेख किया जाता है ।
२. हिन्दी राष्ट्रभाषा होने के कारण विविध प्रान्तों में एक ही अर्थ में एक से अधिक शब्द प्रचलित होते हैं । उदा. मर्यादा शब्द का उपयोग सीमा के अर्थ में किया जाता है; परन्तु अनेक प्रांतों में ‘मर्यादा’ सीमा के अर्थ में प्रचलित नहीं है । अनेक बार शब्द की वर्तनी में अंतर होता है । उदा. त्यौहार – त्योहार, अंजली – अंजलि आदि । ऐसे में किसी एक प्रांत में एक शब्द प्रचलित होने एवं अन्य प्रांत में कोई अन्य शब्द प्रचलित होने के कारण पाठकों को भाषा कठिन प्रतीत होती है अथवा भाषा में अशुद्धि अनुभव होती है । पाठकों की सुविधा के लिए पाठभेद के रूप में कोष्ठक में वैकल्पिक शब्द देने का प्रयास किया है; तथापि जगह के अभाववश प्रत्येक बार ऐसा करना संभव नहीं ।
पाठकों से अनुरोध है कि वे इस विषय में समय-समय पर अपने सुझाव देकर सनातन के साहित्य को और अधिक परिपूर्ण बनाने में हमारी सहायता करें । – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले