परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
बालसंस्कार विशेष निमित्त…
बच्चे बडे होकर संस्कारी बनें, इसलिए बचपन से ही उन पर साधना के संस्कार करें !
‘बीमार होने पर उपचार करने की अपेक्षा ‘बीमार ही न हो’, इसके लिए प्रयास करना महत्त्वपूर्ण है’ Prevention is Better Than Cure, ऐसी एक कहावत है । उसे केवल कहने की अपेक्षा बडे होने पर दुर्गुण न हों, इसलिए बचपन से ही सात्त्विक संस्कार करना आवश्यक है । बच्चों को बचपन में ही ‘कूडा मत करो, झूठ न बोलो, किसी से झगडा न करो’, मानसिक स्तर पर इस प्रकार सिखाने की अपेक्षा यदि उसके द्वारा आध्यात्मिक स्तर पर साधना करवाई जाए, तो वे बच्चे धीरे-धीरे सात्त्विक बनेंगे और वे स्वयं अनुचित कृत्य नहीं करेंगे । बडे होने पर भी उन्हें उसका लाभ मिलेगा एवं वे भ्रष्टाचार करना, अनीति से आचरण करना, गुंडागर्दी जैसे कुकृत्य नहीं करेंगे । सभी बच्चे संस्कारी बनें, तो पृथ्वी पर रामराज्य की स्थापना होगी ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
चुनाव में खडे प्रत्याशियों, यह बात ध्यान में रखो !
‘राष्ट्रप्रेम और धर्मप्रेम रहित प्रत्याशी से पैसे लेकर उसे मत देनेवाली जनता का जनप्रतिनिधि बनकर चुने जाने की तुलना में ‘ईश्वर द्वारा भक्त के रूप में चुना जाना अनंत गुना अधिक महत्त्वपूर्ण है’, यह ध्यान में रखें !’
विचार स्वतंत्रता और राजनीतिक दलों की अनभिज्ञता !
‘विचार स्वतंत्रता का अर्थ ‘दूसरों को आहत करना’ अथवा ‘धर्म के विरुद्ध बोलने की स्वतंत्रता नहीं है’, यह भी स्वतंत्रता के उपरांत विगत ७४ वर्षों से भारत पर राज्य करनेवाले किसी भी राजनीतिक दल के ध्यान में नहीं आया !’ दलों के कार्यकर्ता और साधकों में भेद !
हिन्दू राष्ट्र-स्थापना की आवश्यकता !
‘अनेक लोग घूस लेकर काम करते हैं, वैसा ही अनेक मतदाता भी करते हैं । वे पैसे देनेवाले को मत देते हैं । मतदाताओं को घूस देनेवाले चुने जाते हैं और राज्य करते हैं । इस कारण तथाकथित लोकतंत्र में देश की स्थिति दयनीय हो गई है । इसका एक ही उपाय है और वह है हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कर, उसे साधना के रूप में सर्वस्व का त्याग करनेवालों के हाथों में सौंपना !’
‘राष्ट्र और धर्म के लिए कुछ कर पाएं, इसलिए कोई चुनाव में खडा नहीं होता; अपितु स्वयं को मान-सम्मान और पैसे मिलें, इसके लिए अधिकांश लोग चुनाव में खडे होते हैं !’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले