श्री क्षेत्र द्वारापुर, धारवाड (कर्नाटक) के संत श्री परमात्माजी महाराज ने की वाराणसी के सनातन के सेवाकेंद्र से सद्भावना भेंट !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने २० वर्ष पूर्व ही जिस हिन्दू राष्ट्र के विषय में बताया, उसकी अब जाकर कहीं संतों और समाज को प्रतीति हो रही है ! – श्री परमात्माजी महाराज

श्री परमात्माजी महाराज (दाहिनी ओर) का सम्मान करते श्री. शंभू गवारे

     वाराणसी (उत्तर प्रदेश) – ‘‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने २० वर्ष पूर्व हिन्दू राष्ट्र के विषय में बताय था, अब उसकी केवल समाज को नहीं, अपितु संतों को भी प्रतीति होने लगी है’’, ऐसा प्रतिपादन श्री क्षेत्र द्वारापुर, धारवाड (कर्नाटक) के ‘श्री परमात्मा महासंस्थानम्’ के संस्थापक श्री परमात्माजी महाराज ने किया । महाराज ने यहां के सनातन के सेवाकेंद्र से सद्भावना भेंट कर राष्ट्र एवं धर्म के कार्य को आशीर्वाद दिए । इस अवसर पर उनके साथ उनके शिष्य श्री. विशाल जाधव और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती पूजा जाधव भी उपस्थित थीं । इस समय महाराजजी का सम्मान हिन्दू जनजागृति समिति के पूर्व एवं पूर्वोत्तर भारत समन्वयक श्री. शंभू गवारे (आध्यात्मिक ६३ प्रतिशत) ने किया । महाराज को सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी द्वारा संकलित ग्रंथों के विषय में जानकारी देने पर उन्हें उसे जिज्ञासापूर्वक सुना ।

     सेवाकेंद्र में चल रहे कार्य के विषय में उन्होंने आस्थापूर्वक जान लिया । यहां के युवा साधकों कहने लगे, ‘‘इन सभी का परमभाग्य है । उनका जीवन ही इसके लिए है; इसलिए वे इतनी अल्प आयु में सेवाकेंद्र में रहकर साधना कर रहे हैं ।’’

हिन्दू धर्म में उचित कर्म का बडा महत्त्व है !

     सेवाकेंद्र में साधकों से होनेवाली चूकें लिखने के लिए लगाया गया फलक और स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया के विषय में महाराजजी को जानकारी देने पर महाराज ने कहा, ‘‘आप के द्वारा उचित कर्म होने के लिए इस माध्यम से परात्पर गुरुदेवजी आवश्यक कृत्य करवा ले रहे हैं; क्योंकि हिन्दू धर्म में उचित कर्म का बडा महत्त्व है ।’’

     सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति का कार्य बहुत ही अच्छा है । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए आप बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं ।

     क्षणिका : श्री परमात्माजी महाराज को सनातन-निर्मित भगवान दत्तात्रेय का सात्त्विक चित्र देने पर उन्होंने कहा, ‘‘मैं तो इनका ही भक्त हूं’’ तथा वह चित्र उन्होंने भावपूर्ण रूप से स्वयं के पास रखा । उन्हें चित्र रखने के लिए थैली देने पर उन्होंने नहीं ली और वह चित्र हाथ में रखा । वाहन में बैठने पर भी वे निरंतर उस चित्र की ओर देख रहे थे ।