६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर के स्वर में ध्वनिमुद्रित किया गया ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप सुनने के प्रयोग में सम्मिलित साधकों को हुए कष्ट और प्राप्त विशेषतापूर्ण अनुभूतियां

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की संगीत समन्वयक ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद) के स्वर में ध्वनिमुद्रित किया गया ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप सुनने के प्रयोग में सम्मिलित साधकों को हुए कष्ट और प्राप्त विशेषतापूर्ण अनुभूतियां

कु. तेजल पात्रीकर

     १७ से २३.६.२०२१ की अवधि में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की संगीत समन्वयक तथा ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद) के स्वरों में ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप ध्वनिमुद्रित किया गया । उसके उपरांत रामनाथी (गोवा) के सनातन के आश्रम में तीव्र आध्यात्मिक पीडाग्रस्त साधक, आध्यात्मिक पीडाग्रस्त ६० प्रतिशत और उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधक, आध्यात्मिक पीडारहित साधक और आध्यात्मिक पीडारहित ६० प्रतिशत तथा उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधक, ऐसे कुल १८ साधकों और संतों को ७ दिन तक प्रतिदिन १० मिनट यह नामजप सुनाया गया । उस समय इस प्रयोग में उपस्थित कुछ साधकों को हुए कष्ट और उन्हें प्राप्त विशेषतापूर्ण अनुभूतियां आगे दी गई हैं ।

 

१. तीव्र आध्यात्मिक पीडाग्रस्त साधक को हुई कष्टदायक अनुभूति

एक साधक
१९.७.२०२१

     ‘प्रयोग के समय बहुत कालावधि तक मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था । मैं बोध में आया तब मुझे बहुत थकान अनुभव हो रही थी ।

२०.७.२०२१

१. पहले दिन हुए प्रयोग के उपरांत (सायंकाल ६ बजे) मैंने शीघ्र भोजन किया और सो गया । दूसरे दिन प्रयोग तक (दोपहर ४.३० बजे तक) मुझे लगातार नींद आ रही थी । प्रयोग के समय एवं उसके उपरांत मेरा मन अस्वस्थ था । मेरा ध्यान जप पर केंद्रित नहीं हो रहा था । मेरे मन में निरंतर माया के विचार आ रहे थे ।’

     (‘श्री निर्विचाराय नमः’ जप निर्गुण स्वरूप का होने से साधक को आध्यात्मिक लाभ हुआ तथा उसे कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्ति को कष्ट हुआ और इसलिए साधक को यह कष्ट अनुभव हुआ ।’ – संकलनकर्ता)

२. आध्यात्मिक पीडारहित साधिका को हुई अच्छी अनुभूति

कु. म्रिणालिनी देवघरे

कु. म्रिणालिनी देवघरे
१८.७.२०२१

     ‘श्री निर्विचाराय नमः’ जप सुनते हुए आरंभ में मेरा मन एकाग्र नहीं हो रहा था । मेरे मन में थोडे विचार आ रहे थे । कुछ समय उपरांत मेरा शरीर अंदर से हिलता हुआ मुझे अनुभव हुआ । मुझे मेरे शरीर पर आया कष्टदायक शक्ति का आवरण एक क्षण में नष्ट हुआ, ऐसा मुझे दिखाई दिया । जप पूर्ण होने पर मुझे हल्का लगने लगा ।

१९.७.२०२१

     मुझे ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप का नीले रंग का कवच मेरे शरीर के आसपास निर्माण हो रहा है’, ऐसा दिखाई दिया । मुझे निर्गुण तत्त्व और आकाशतत्त्व अनुभव हुआ ।

२०.७.२०२१

१. जप आरंभ होने के पूर्व मेरे मन में भरतनाट्यम् के ‘कालीकौत्वम्’ नृत्य प्रकार के मारक भाववाले बोल अपनेआप आरंभ हुए ।

२. तदुपरांत मुझे ‘मेरे शरीर का दाहिना भाग अंदर से हिल रहा है’, ऐसा अनुभव हुआ एवं शरीर का बांया भाग स्थिर है’, ऐसा लगा । तदुपरांत मेरा ध्यान लगा ।

३. मुझे देवी की मारक नृत्यमुद्रा करने का मन कर रहा था ।

४. मेरा शरीर स्थूल से प्रयोग के स्थान पर बैठा है; परंतु ‘सूक्ष्म से मैं नृत्य कर रही हूं’, ऐसा मुझे अनुभव हो रहा था ।

५. ‘जप आरंभ था, तब नृत्य के बोल के स्पंदन और जप के स्पंदन एक समान है’, ऐसा मुझे लगा ।

६. कुछ नृत्यों में अडवू (टिप्पणी) होता है । ‘उनके स्पंदन और जप के स्पंदन एकसमान है’, ऐसा मुझे लगा ।

     (टिप्पणी : अडवू – नृत्य का ‘श्री गणेश’ (आरंभ) अडवू से किया जाता है । पदन्यास (पैरों की गतिविधि), हाथों की गतिविधियां और नृत्यहस्त (हाथ से की जानेवाली विविध मुद्राएं) एकत्रित रूप से करना’, इसे ‘अडवू’ कहते हैं ।)

७. ‘तै-युम-तत्-तत्-तै-युम-ता-हा’, इन बोलों पर जो अडवू है, उन पर मानस पदन्यास करते हुए अडवू के बोलों के स्थान पर मुझे ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप सुनाई दे रहा था । मुझे लगा, ‘अडवू के बोलों के स्थान पर ‘श्री निर्विचाराय नमः’ जप उन अडवू से एकरूप हुआ है ।’

३. आध्यात्मिक पीडारहित और आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक साधक को हुई अच्छी अनुभूति

श्री. मनोज कुवेलकर (आध्यात्मिक स्तर ६६ प्रतिशत)
१९.७.२०२१

     मुझे मेरे आज्ञाचक्र पर पीला प्रकाश दिखा और तदुपरांत मेरा ध्यान लगा ।

२१.७.२०२१

१. मुझे श्रीविष्णु एवं श्री दुर्गादेवी दिखाई दिया व मेरा ध्यान लगा ।

२४.७.२०२१

     जप करते हुए आरंभ में मुझे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरण दिखाई दिए । तदुपरांत ‘मेरे चेहरे से अनिष्ट शक्ति बाहर निकलकर वह आकाश में विलीन हो रही है’, ऐसा मुझे दिखाई दिया । तदुपरांत ‘मेरे चेहरे पर श्वेत प्रकाश दिखा ।’

‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप करने का महत्त्व !

     ‘मन जब तक कार्यरत है, तब तक मनोलय नहीं होता । मन निर्विचार करने के लिए स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि के भले ही कितने भी प्रयत्न किए, तब भी मन कार्यरत रहता है । इसके साथ ही किसी देवता का नामजप अखंड करने से भी मन कार्यरत रहता है । तब मन में भगवान का स्मरण, भाव इत्यादि आते हैं । इसके विपरीत ‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप अखंड करने पर, मन को दूसरा कुछ भी स्मरण नहीं रहता । इसका कारण यह है कि अध्यात्म में ‘शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं उससे संबंधित शक्ति एकत्र रहती है’, इस नियम के अनुसार इस नामजप के कारण मन उस शब्द से एकरूप होकर निर्विचार हो जाता है, अर्थात प्रथम मनोलय, तदुपरांत बुद्धिलय, फिर चित्तलय और अंत में अहंलय होता है । इससे निर्गुण स्थिति में शीघ्र पहुंचने में सहायता होगी ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

संतों और साधकों को प्राप्त सूक्ष्म ज्ञान और साधकों को हुई अनुभूतियों में समानता !

     ‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप करने पर क्या अनुभूति आती है ?, इसकी जानकारी सद्गुरु गाडगीळजी एवं सूक्ष्म ज्ञान-प्राप्तकर्ता साधिका कु. मधुरा भोसले ने बताई । उन्होंने बताई अच्छी अनुभूति अधिकांश साधकों को हुई है, यह उपरोक्त लेख से समझ में आएगा ।’– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले