परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)
‘अपने बच्चों पर किस प्रकार संस्कार करें ?’, यह सभी पाठकों को समझाने के लिए उपयुक्त लेखमाला !
‘सनातन प्रभात’ में संतों की साधनायात्रा, उनकी सीख के विषय में नियमित लेख प्रकाशित किए जाते हैं । इस लेखमाला द्वारा ‘सनातन प्रभात’ के संस्थापक-संपादक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता प.पू. बाळाजी (प.पू. दादा) आठवलेजी के विषय में लेख प्रकाशित किए जा रहे हैं ।
१ से १५ दिसंबर २०२१ को हमने प.पू. बाळाजी (प.पू. दादा) आठवलेजी और उनके संत परिजनों के छायाचित्रों से अत्यधिक मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित होता है । यह यूएएस (युनिवर्सल ऑरा स्कैनर) उपकरण द्वारा किए गए निरीक्षण में देखा । इस लेख में आगामी जानकारी देखेंगे । (भाग ५)
५. प.पू. दादा के राष्ट्र के विषय में विचार
५ अ. लोकतंत्र
५ अ १. ‘व्यक्ति स्वतंत्रतावालोें, इसका उत्तर दें ! : लोकतंत्र में राज्यशासन ने प्रकाशित किए प्रासंगिक आचारसंहिता के अनुसार हम अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करते हैं ? क्या नागरिकों को स्वयं की प्रगति की प्रेरणा देनेवाली स्वतंत्रता और नियमों की कार्यवाही में मूलभूत भेद है ?
५ अ २. चुनावों को महत्त्व देनेवालों, यह ध्यान में रखें ! : सहस्रो मूर्खाें की तुलना में एक विद्वान व्यक्ति का मत अधिक उपयुक्त होता है ।
५ आ. नागरिकों को देश के प्रति प्रेम और आदर लगता है, तभी देश बलवान होता है ! : जब व्यक्ति आत्मकेंद्रित होता है और उसे देश कल्याण की चिंता नहीं होती, तब समाज एवं देश के मूल्य अथवा गुणवत्ता अल्प होती है । स्वार्थ में वृद्धि होने पर लोग आपस में लडने लगते हैं । लोग निःस्वार्थी हो और उनमें देश के प्रति आंतरिक प्रेम निर्माण हो, तो वे एक होते हैं तथा देश मजबूत और बलवान होता है ।
५ इ. प्रत्येक को स्वार्थ छोडकर समाज और देश के प्रति अपना कर्तव्य पूर्ण करना आवश्यक ! : हमारे देशभक्तों के स्वार्थ त्याग के कारण आज हमें स्वतंत्रता के लाभ मिल रहे हैं । ‘हमारी पीढी दासता में न फंसे’, ऐसा लगता हो, तो हममें से प्रत्येक को समाज और देश के प्रति अपना कर्तव्य मानकर कुछ तो निःस्वार्थ रूप से करना चाहिए । प्रत्येक व्यक्ति भ्रष्टाचार करने लगा, रिश्वत लेने लगा और स्वार्थवश समाज को लूटने लगा, तो शीघ्र ही समाज का अधपतन होकर वह नष्ट होगा ।
५ ई. पिता पुत्र को सेना में जाने से मना न करें, इसलिए उन्हें बिना बताए सेना में भर्ती होकर उस विषय में उन्हें पत्र द्वारा सूचित करनेवाला देशभक्त बेटा : गोवा स्वतंत्रता संग्राम के समय एक नवयुवक ने अपने पिता को निम्न पत्र लिखा । ‘बाबा, आपको गोवा बहुत पसंद है और गोवा से आपको प्रेम है । उस गोवा की स्वतंत्रता के लिए मैं आज सेना में भर्ती हो रहा हूं; परंतु मैं यह आपको बिना बताए कर रहा हूं । आपको मुझसे कितना अगाध प्रेम है, इसका मुझे बोध है । मेरे पत्र के कारण आपका मन खिन्न और दुःखी होगा; परंतु ‘अन्यों का पुत्र देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान करे’, ऐसा विचार प्रत्येक पिता करेगा, तो देश कैसे स्वतंत्र होगा ?’
५ उ. सभी बेटे लडाई में मारे जाने पर भी ‘देश को अर्पण करने के लिए बेटा नहीं’, ऐसा खेद व्यक्त करनेवाली वीरमाता !
एक माता के पांचों पुत्र पाकिस्तान के विरुद्ध लडाई में मृत हुए । उसके पडोसी और देश के नेता उनकी सांत्वना करने के लिए आए । उस समय रोते-रोते उन्होंने कहा, ‘‘लडाई में मेरे पांचों बेटों की मृत्यु हुई, इसका मुझे दुःख नहीं; परंतु देश के लिए अब एक भी बेटा अर्पण नहीं कर सकती, इसका मुझे दुःख है ।’’ (खंड ३)
६. प.पू. दादा द्वारा की गई कविताएं
६ अ. ‘संतसाहित्य में ईश्वर और अध्यात्म ही केंद्रबिंदु होने से उनका काल के प्रवाह में भी नष्ट न होना ! : ‘जो न देखे रवि, वो देखे कवि’ अर्थात ‘जो (अंधकार) रवि (सूर्य) नहीं देख सकता, वह (मनुष्य के मन का अंधकार अर्थात दुःख) कवि देख सकता है’, ऐसा कहा गया है । कवि अंधकार को देखकर अपनी कविता द्वारा उसे दूर करने का प्रयास करता है । वास्तव में अज्ञान ही अंधकार का मूल है और केवल सत्य ज्ञान से (अध्यात्म से) वह दूर हो सकता है, यह संत कवि जानते हैं । सर्वसाधारण कवि और संत कवि में यही भेद है । आज तक का इतिहास देखें तो साहित्य तात्कालिक सुख देता है; अपितु संत साहित्य चिरंतन सुख (आनंद) देता है । संत साहित्य केवल शब्दार्थ नहीं, अपितु चैतन्यमय होने से अन्य साहित्यों की तुलना में उसमें अनेक गुना शक्ति होती है । साथ ही ईश्वर और अध्यात्म ही उनका केंद्रबिंदु होने से, वे काल के प्रवाह में भी नष्ट नहीं होते ।
६ आ. प.पू. दादा की कविताओं के माध्यम से दिखाई देनेवाली भाषाप्रभुता : भाषा की समृद्धि मुख्यतः विचारसंपदा और शब्दसंपत्ति पर निर्भर होती है । प.पू. दादा की विलक्षण प्रज्ञाशक्ति की प्रतीक ये कविताएं हैं । इनसे उनकी भाषाप्रभुता भी दिखाई देती है । प.पू. दादा की अंतःप्रेरणा जागृत होने से उन्होंने ये कविताएं की हैं और अध्यात्म ही उनका केंद्रबिंदु है । इन कविताओं के आरंभ और / अथवा अंतिम अक्षर जोडने पर व्यक्ति का नाम बनता है । प.पू. दादा द्वारा लिखी कविताओं की भाषा अत्यंत सरल और रसपूर्ण है । इससे भी अधिक इन कविताओं की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि सभी कविताएं आध्यात्मिक विषय से संबंधित, बोधप्रद एवं उपदेशप्रद भी है ।
६ इ. प.पू. दादा की कविताओं के विविध विषय : किसी व्यक्ति की गुणविशेषताएं बताने के साथ ही उसे प्रोत्साहन देनेवाले, ‘माया में न फंसते हुए आदर्श जीवन कैसे जीएं ?’, इसकी सीख देनेवाले, परिजनों को मार्गदर्शन करनेवाले, ऐसे विविध पहलू प.पू. दादा ने इस कविता द्वारा प्रस्तुत किए हैं । इनके साथ ही उन्होंने गुरु के विषय में भक्तिभाव दर्शानेवाली और संतों के विषय में कृतज्ञता व्यक्त करनेवाली कविताएं लिखी हैं । प.पू. दादा ने कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग, इन तीनों योगमार्गानुसार साधना की है । इसलिए इनका अद्भुत संगम भी उनकी कविताओं में दिखाई देता है ।
विविध नाम दर्शानेवाली ये कविताएं मित्रों और परिजनों को जन्मदिन के दिन शुभकामना पत्र के रूप में दे सकते हैं । उन कविताओं से यह भी ध्यान में आएगा कि ‘विविध नामों पर कविता कैसे लिखें ?’
६ ई. कविताओं की विशेषताएं : किसी के जन्मदिन अथवा महत्त्वपूर्ण दिन, ऐसे विशेष प्रसंगों में दादा कविता कर उस व्यक्ति को भेंटस्वरूप देते थे । इन कविताओं की विशेषता यह है कि अधिकांश कविताओं की प्रत्येक पंक्ति के प्रथम अक्षरों से उस व्यक्ति का नाम बनता है । कभी प्रथम अक्षर के साथ अंतिम अक्षरों से भी किसी का नाम बनता है । कभी बारी-बारी से आनेवाली पंक्ति के प्रथम अक्षर से भी व्यक्ति का नाम बनता है; परंतु प.पू. दादा के काव्य लेखन की सबसे बडी विशेषता यह कि उनकी कुछ कविताओं में बारी-बारी से आनेवाली पंक्तियों के प्रथम और अंतिम अक्षरों से भी व्यक्ति का नाम बनता है । सभी कविताएं मार्गदर्शक होती हैं । दादा की कविताओं की विशेषता दर्शानेवाली मराठी भाषा की कविता ग्रंथों में दी है । साथ ही उन्होंने अंग्रेजी भाषा में भी कविता की है । अंग्रेजी कविताएं ‘Poetry arising out of Names’ नामक अंग्रेजी ग्रंथ में दी है ।
१. सभी कविताएं व्यवहारिक अथवा आध्यात्मिक सीख देती हैं ।
२. वे किसी के नाम पर मराठी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कविता करते थे । प.पू. दादा एक ही अर्थ की कविता विविध नामों के प्रथम अक्षरों से करते थे ।
३. A से Z अक्षरों से बननेवाली पंक्ति और शब्द उन्होंने तैयार किए हैं । जिसके लिए कविता करनी है, उसके गुणधर्मानुसार शब्द चुनकर वे कविता करते थे ।
४. उन्होंने लगभग २० वर्षाें तक कविताएं की । हर एक नाम पर उन्होंने ८ से ३० कविता की हैं । कविताओं की पंक्तियां ८ से १५ शब्दों की हैं ।
५. कुछ कविताओं में व्यक्ति का नाम, तो कुछ कविताओं में व्यक्ति और उसकी पत्नी का अथवा पति का प्रथम नाम है ।
६. दादा घर की नौकरानी, अप्पा (बडे भाई सद्गुरु वसंत आठवलेजी) के यहां के सिपाही के लिए भी कविता करते थे ।
७. संतों पर कविता – प.पू. भक्तराज महाराज, प.पू. अण्णा करंदीकर, प.पू. काणे महाराज, प.पू. क्षीरसागर महाराज, पू. मलंगशहाबाबा, पू. नरेशबाबा और पू. भगतबाबा पर भी उन्होंने कविताएं की हैं ।
८. कोई कविता संतों के विषय में हो, तो हिन्दू को कविता देते हुए ‘संत’ तथा ईसाई को कविता देते हुए वे ‘फादर’ अथवा ‘बिशप’ उल्लेख करते थे ।
९. कविता की तीन बहियां – प्रत्येक बही में किसके नामों की कविता है, उनकी अनुक्रमणिका है । उसी नाम की कविता दूसरी बही में हो, तो उसका संदर्भ दोनों बहियों में दिया गया है ।
१०. दादा एक ही विषय विभिन्न शब्दों में लिखते थे, उदा. ‘बैंक का चेक’, ‘नाम’
११. दादा प्रथम राममोहन इंग्लिश स्कूल में और उसके उपरांत आर्यन एज्युकेशन सोसाइटी शाला में शिक्षक थे । उन्होंने दोनों शालाओं के मुख्याध्यापकों के सेवानिवृत्त होने पर अंग्रेजी में कविता की थी ।
१२. नाम के प्रथम अक्षरों से किए लेखन द्वारा व्यक्ति को अंतर्मुख करना : दादा ने व्यक्ति के नाम के अक्षरों के अनुसार कविताएं की हैं । ये कविताएं मराठी एवं अंग्रेजी, दोनों भाषाओं में हैं । कई बार उन्होंने कविताओं के प्रथम अक्षर एवं अंत में भी नाम के प्रथम अक्षर आएंगे, ऐसी विशेषतापूर्ण रचना की है । इन कविताओं की विशेषता यह है कि वे केवल पढने में सुखदायक न होकर उनके द्वारा दिया गया संदेश व्यक्ति को अंतर्मुख करता है । प्रत्येक कविता में जीवन, साधना इत्यादि के संदर्भ में मार्गदर्शन किया गया है ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (११.९.२०२१)
प.पू. दादा द्वारा अंग्रेजी में लिखी कविताKill desire not body (कविता की पंक्तियों में बाईं ओर के अधोरेखित अक्षर ‘Jayant’ नाम दर्शाते हैं ।) Jayant Jack told a Saint that a thief always shot |
‘आदर्श माता-पिता कैसे हो ? यह सिखानेवाली ‘सुगम अध्यात्मशास्त्र’ ग्रंथमाला‘इस लेखमाला के सभी सूत्र सनातन के ‘सुगम अध्यात्मशास्त्र’ ग्रंथमाला से संक्षिप्त स्वरूप में लिए गए हैं । लेख का कोई सूत्र पाठकों को विस्तृत रूप से पढना हो, तो ‘वह किन ग्रंथों से लिया है ?’, यह ज्ञात होने के लिए प्रत्येक सूत्र के अंत में कोष्टक में मराठी में प्रकाशित ग्रंथ का खंड क्रमांक दिया गया है । ‘सुगम अध्यात्मशास्त्र’ ग्रंथमाला के ग्रंथों में ‘दैवी गुणसंपन्नता और आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत परिवार को जन्म देनेवाले पिता ने कौन-सी सीख दी है ?’, यह ज्ञात होता है । इससे पाठकों को ‘आदर्श माता-पिता कैसे बनें ? माता-पिता के रूप में साधना के विविध अंग कौन-से हैं ?’, यह भी ज्ञात होगा । ऐसे मौलिक ज्ञानवाले ग्रंथों का केवल वाचन नहीं, अपितु उसके सूत्र आत्मसात कर तदनुसार कृति करने पर उनका परिवार भी सात्त्विक होगा ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (११.९.२०२१) |