भारतियों, पश्चिमी संस्कृति अनुसार १ जनवरी को नहीं, अपितु चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही नववर्षारंभ मनाएं !
‘हिन्दू वर्षारंभ का दिन अर्थात वर्ष-प्रतिपदा, अर्थात गुडी पडवा । शास्त्रों में कहा है कि ‘गुडी पडवा के दिन सूर्योदय उपरांत तुरंत ही ब्रह्मध्वजा (गुडी) का पूजन कर ध्वजा खडी करें ।’ ब्रह्मदेवजी ने सृष्टि की निर्मिति की, अर्थात सत्ययुग का प्रारंभ हुआ, वह यही दिन था । इसलिए इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है । १ जनवरी नहीं, चैत्र शुक्ल १ ही वास्तविक वर्षारंभ दिन है । चैत्र शुक्ल १ को आरंभ होनेवाला नए वर्ष का कालचक्र, विश्व के उत्पत्ति काल से संबंधित होने से सृष्टि में नवचेतना का संचार होता है । इसके विपरीत, ३१ दिसंबर की रात को १२ बजे आरंभ होनेवाले नए वर्ष का कालचक्र विश्व के लयकाल से संबंधित होता है । चैत्र शुक्ल १ को आरंभ होनेवाले नववर्ष की तुलना सूर्योदय के समय उगते तेजोमय दिन के साथ कर सकते हैं । ३१ दिसंबर को रात १२ बजे आरंभ होनेवाले नववर्ष की तुलना सूर्यास्त उपरांत आरंभ होनेवाले तमोगुणी रात्रि के साथ कर सकते हैं । निसर्ग नियम का अनुसरण कर किए कृत्य मानव के लिए पूरक होते हैं; परंतु विरुद्ध किए कृत्य मानव के लिए हानिकारक होते हैं । इसलिए पश्चिमी संस्कृति के अनुसार १ जनवरी नहीं, चैत्र शुक्ल १ के दिन नववर्षारंभ मनाने में ही हमारा वास्तविक हित है ।’
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां व अध्यात्मशास्त्र’)