मानव बुद्धि की सीमाएं
सर्वाेत्तम शिक्षा क्या है ?
पू. डॉ. शिवकुमार ओझाजी (आयु ८७ वर्ष) ‘आइआइटी, मुंबई’ में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी प्राप्त प्राध्यापक के रूप में कार्यरत थे । उन्होंने भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, संस्कृत भाषा इत्यादि विषयों पर ११ ग्रंथ प्रकाशित किए हैं । उसमें से ‘सर्वाेत्तम शिक्षा क्या है ?’ नामक हिंदी ग्रंथ का विषय यहां प्रकाशित कर रहे हैं । विगत लेखों में ‘शिक्षाप्रणाली एवं उस विषय के ध्येय की दृष्टि से आवश्यक व्यापक दृष्टिकोण’, इस विषय में जानकारी पढी । अब उसके आगे का लेख देखेंगे । (भाग ८)
१६. बुद्धि द्वारा अधिक काम करने के पश्चात भी आधुनिक मनुष्य द्वारा बुद्धि की मलिनता दूर करने की ओर ध्यान न दिया जाना
‘बुद्धि द्वारा ग्रहण किया गया ज्ञान शिक्षा के माध्यम से अन्य मनुष्यों को प्राप्त कराया जाता है । आधुनिक शिक्षा संकुचित दृष्टिकोण के आधार पर स्थापित की गई । व्यापक दृष्टिकोण के अभाव ने भयंकर स्थितियों को जन्म दिया है । प्रश्न उठता कि आधुनिक शिक्षा में विभिन्न दोषों का संग्रह क्यों हुआ ? इस प्रश्न का यथोचित उत्तर आधुनिक मनुष्य के पास नहीं है । आधुनिक मनुष्य बुद्धि से काम तो अधिक लेता है; परंतु उस बुद्धि की मलिनता (गन्दगी) को दूर करने तथा शुद्ध करने का ध्यान उसको नहीं आता । बुद्धि की अशुद्धियां क्या हैं तथा उसकी सीमाएं (Limitations) क्या हैं ? ऐसे प्रश्न साधारणतया आधुनिक मनुष्य की बुद्धि में उठते ही नहीं अथवा वह इस प्रकार के प्रश्नों की उपेक्षा कर देता है ।’
१७. मनुष्य की बुद्धि सर्व प्रकार के ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ है, तब भी यह सत्य नहीं
मनुष्य शरीर में बुद्धि सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है । आधुनिक युग में विविध प्रकार के भौतिक ज्ञान एवं सुविधाओं की प्राप्ति के लिए अनेक वैज्ञानिक सिद्धांतों एवं उपकरणों की खोज बुद्धि द्वारा हुई है । ऐसी स्थिति में मनुष्य के अंतर्मन में यह धारणा बन जाती है कि मनुष्य की बुद्धि सभी प्रकार के ज्ञान पाने में समर्थ है, किंतु यह दृष्टिकोण यथार्थ नहीं है ।
१८. श्रीमद्भगवद्गीता में बताया बुद्धि का महत्त्व
बुद्धि का महत्त्व बताते हुए गीता (श्रीमद्भगवद्गीता) में कहा गया है कि काम (इच्छा) यह मन, बुद्धि एवं इंद्रियों द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित करके मनुष्य को मोहित करता है (गीता ३/४०) । शुद्ध बुद्धि द्वारा मनुष्य को अंतत: आनंद प्राप्त होता है (गीता ६/२१) और बुद्धि के नाश से (अर्थात विवेकहीन हो जाने से) मनुष्य स्वयं ही नष्ट हो जाता है (गीता २/६३) ।
१९. बुद्धि की मर्यादा जानें !
इस बात पर भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि मनुष्य की बुद्धि असीमित क्षमतावाली नहीं है । सांसारिक मनुष्य की बुद्धि की सीमाएं भी होती हैं क्योंकि सभी कुछ सोच पाना, निश्चय कर लेना अथवा न कर पाना, यह सब बुद्धि के लिए संभव नहीं है । बुद्धि की सीमाओं को जानकर ही हम वेद या वैदिक ग्रंथों के महत्त्व को समझ पाएंगे । वेद बुद्धि से परे का ज्ञान प्रकट करता है । वह ज्ञान अद्वितीय है ।
२०. ज्ञानेंद्रियों की शक्ति सीमित होना
२० अ. मनुष्य की तुलना में कुछ पशु-पक्षियों में पंचज्ञानेंद्रियां अधिक तीव्र स्वरूप में कार्यरत होने से मनुष्य की बौद्धिक शक्ति को अमर्यादित समझना अयोग्य ! : बुद्धि भी इंद्रिय समान मानी जाती है । ज्ञानेंद्रियों का आश्रय बुद्धि को प्राप्त है । पांच ज्ञानेंद्रियां हैं आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा । इन पंचज्ञानेंद्रियों की शक्ति बहुत सीमित है । मनुष्य की तुलना में किन्हीं-किन्हीं पशु पक्षियों में ये इंद्रियां अधिक शक्तिशाली (तेज) होती हैं । उदाहरण के लिए कुछ कुत्तों में सूंघने की शक्ति अधिक होती है तथा कुछ पक्षियों में देखने की शक्ति अधिक होती है । ऐसी स्थिति में मनुष्य की बौद्धिक शक्ति को असीमित समझना उचित नहीं है ।
२० आ. बाल्यावस्था में यदि (मस्तिष्क का) विकास मंद पड जाए, तो बचपन में बुद्धि मंद रहती है, बुढापे में या कुछ बीमारियों में भी बुद्धि स्वस्थ यौवनावस्था की अपेक्षा मंद हो जाती है ।
२१. बुद्धि का परिच्छिन्न होना (बुद्धि का विभाजन)
बुद्धि परिच्छिन्न है अर्थात विभक्त, बंटी हुई, परिमित अथवा सीमित है । तात्पर्य यह है कि बुद्धि यदि एक विषय में तेज है तो आवश्यक नहीं कि वह अन्य विषय (या विषयों) में भी तेज हो । दूसरी बात यह है कि वह यदि एक समय तेज है तो आवश्यक नहीं कि भविष्य में भी सदा तेज ही बनी रहे । यह भी देखा गया है कि मंद बुद्धि के कुछ बालक समय पश्चात कुशाग्र बुद्धि के हो जाते हैं ।
२२. मस्तिष्क के छोटे से भाग का कार्यान्वित रहना एवं शेष भाग बिना उपयोग के पडे रहना जिसके उपयोग के लिए भारतीय संस्कृति द्वारा बताना
आधुनिक वैज्ञानिक बताते हैं कि मस्तिष्क (Brain) का एक छोटा भाग ही काम में आता है, शेष बहुत बडा भाग जीवन भर बेकार ही पडा रहता है । भारतीय संस्कृति इस बडे भाग का उपयोग करने के लिए बताती है । (क्रमशः)
– (पू.) डॉ. शिवकुमार ओझा, वरिष्ठ शोधकर्ता एवं भारतीय संस्कृति के अध्ययनकर्ता
(साभार : ‘सर्वाेत्तम शिक्षा क्या है ?’)