प.पू. भक्तराज महाराजजी का लीलासामर्थ्य और उनके शिष्य डॉ. जयंत आठवलेजी की त्रिकालदर्शिता !
२८ नवंबर को सनातन के श्रद्धाकेंद्र प.पू. भक्तराज महाराजजी का महानिर्वाण दिन है । उस उपलक्ष्य में…
‘वर्ष २०१३ में मुझे हो रहे आध्यात्मिक कष्टों के निवारण हेतु मैं नामजप करते हुए प.पू. भक्तराज महाराजजी (प.पू. बाबा) के भजन सुनता था । उस समय मेरी सामान्य बुद्धि से मुझे भजनों का थोडा-बहुत अर्थ समझ में आता था । मुझे लगता था कि ‘साधक भी अर्थ समझकर भजन सुनें, तो उनका भाव जागृत होने में सहायता होगी ।’ एक बार मैं परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के पास गया था, तब मैंने उन्हें पूछा, ‘‘मुझे जितना भजनों का अर्थ समझ में आया, उतना लिखूं क्या ?’’ उस पर उन्होंने कहा, ‘‘अभी नहीं । अभी हमारे पास अन्य बहुत-सी सेवाएं हैं ।’’ यह सुनकर मैंने भजनों का अर्थ लिखने का विचार त्याग दिया ।
वर्ष २०२० में आदरणीय स्व. दादा दळवी की कन्या श्रीमती उल्का बगवाडकर ने भजनों के भावार्थ का ग्रंथ प्रकाशित करने की इच्छा व्यक्त की । अब वर्ष २०२१ में यह ग्रंथ प्रकाशित करने का शुभ संयोग आया है । इस ग्रंथ का भावार्थ स्वयं प.पू. बाबा द्वारा ही निर्देशित किया होने से यह ग्रंथ वास्तविक अर्थ में भावमय और परिपूर्ण हुआ है ।
ऐसा लगता है कि ‘साधक और भक्त भजनों की सीख परिपूर्णता से समझ पाएं, इसलिए स्व. दादा दळवी और श्रीमती उल्का के माध्यम से प.पू. बाबा ने ही यह लीला की ।’ ‘भविष्य में प.पू. बाबा के भजनों का अर्थ कोई तो बताएगा’, यह परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को वर्ष २०१३ में ही ज्ञात था’, यह उनकी त्रिकालदर्शिता ही है ! मुझे ऐसा लगा, ‘प.पू. बाबा के अनमोल भजनों का अर्थ लिखा जाए’, ऐसी मेरे मन की अपूर्ण इच्छा भी प.पू. बाबा और परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने ही पूर्ण की ।’
– (पू.) संदीप आळशी, सनातन के ग्रंथों के एक संकलनकर्ता (१०.६.२०२१)
प.पू. भक्तराज महाराजजी की असीम भक्ति करनेवाले स्व. नारायण रखमाजी चौधरी !
‘नारायणगांव में रहते हुए मैं कभी-कभी मनोहर बाग में श्री. शशिकांत ठुसेजी से मिलने और प.पू. काणे महाराजजी की समाधि के दर्शन करने के लिए जाता था । २ वर्ष पूर्व एक बार ऐसे ही दर्शन के लिए जाने पर श्री. ठुसे ने प.पू. भक्तराज महाराजजी के असीम भक्त श्री. नारायण चौधरी से परिचय करवाया । श्री. चौधरी का आशीर्वाद लेकर मैं और श्री. ठुसे उनके घर में चर्चा करते हुए बैठे । उस समय श्री. ठुसे ने श्री. चौधरी के विषय में निम्न जानकारी बताई ।
१. श्री. शशिकांत ठुसे द्वारा श्री. नारायण चौधरी के विषय में बताए सूत्र
१ अ. प.पू. बाबा का आज्ञापालन करना और उन पर दृढ श्रद्धा होना : श्री. ठुसे ने कहा, ‘‘श्री. नारायण प.पू. बाबा के असीम भक्त हैं । प.पू. बाबा के साथ वे नारायणगांव में ६ एकड खेत में रहते थे । प.पू. बाबा के उन्हें ‘हम दोनों ६ एकड में रहेंगे’, ऐसा बताने पर वे घरबार छोडकर प.पू. बाबा के साथ रहने लगे । प.पू. बाबा के देहत्याग उपरांत भी वे वहां अकेले रहते थे । उनका भाव था कि ‘प.पू. बाबा मेरे साथ ही हैं ।’ इन २५ वर्षाें में वे छह एकड छोडकर अन्य कहीं भी नहीं गए । वे अपने घर भी नहीं गए । स्वयं के पुत्र की दशक्रिया विधि हेतु भी वे नहीं गए । गुरु पर कितनी अगाध श्रद्धा !
१ आ. वे निरंतर प.पू. बाबा के छायाचित्र से बातें करते हैं ।
१ इ. उनकी कुछ भी रुचि-अरुचि नहीं है । उन्हें किसी भी वस्तु का लोभ नहीं है ।
१ ई. ‘स्वयं के कारण अन्य किसी को भी कष्ट न हो’, इसका वे ध्यान रखते हैं ।’
२. जब वे बीमार थे, तब श्रीकृष्ण, प.पू. भक्तराज महाराजजी और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से मुझे उनकी सेवा करने का अवसर प्राप्त होना
२ अ. भोजन का त्याग करना : उनका भोजन अत्यल्प था । अंतिम समय में उन्होंने भोजन का भी त्याग किया । तब भी उनका स्वास्थ्य अच्छा था । उन्हें भोजन ग्रहण करने के लिए अनेक लोगों ने बताया; परंतु ऐसा लगता था कि ‘उन्होंने देहत्याग करने का निर्णय ले लिया है ।’
२ आ. श्री. नारायण के कक्ष में प्रसन्नता अनुभव होना, उनकी सेवा करते हुए ‘सेवा कर रहे हैं’, ऐसा न लगना और दूसरे दिन उनका देहत्याग करना : १८.२.२०२० को सुबह श्री. ठुसे का दूरभाष आया, ‘‘नारायणजी ने अन्नत्याग कर दिया है । एक बार उनकी जांच कर लें ।’’ श्री. ठुसे के बताए अनुसार मैं सुबह ९.३० बजे मनोहर बाग गया । श्री. नारायण के कक्ष में जाने पर मुझे प्रसन्नता अनुभव हो रही थी । उनका स्वास्थ्य अच्छा था । श्री. निंबारकर की सहायता से श्री. नारायण के ‘डाइपर’ बदलने की सेवा प्राप्त हुई । सेवा करते हुए ‘हम सेवा कर रहे हैं’, ऐसा मुझे अनुभव ही नहीं हो रहा था । श्री. नारायण के दर्शन लेकर मैं घर आया । इसके पहले श्री. ठुसे से बात करते हुए उन्होंने बताया था कि ‘श्री. नारायण देहत्याग करेंगे ।’ ईश्वरीय इच्छा के अनुसार उन्होंने दूसरे ही दिन देहत्याग किया ।
प.पू. बाबा के एक असीम भक्त तथा एक संत की सेवा करने का अवसर परात्पर गुरु डॉक्टरजी और श्रीकृष्ण की कृपा से प्राप्त हुआ, इसलिए उनके चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।
३. श्री. नारायण चौधरी से सीखने के लिए मिले गुण
श्री. नारायण चौधरी से सादा जीवनयापन, असीम भक्ति, गुरु आज्ञा सर्वाेपरि होना, श्री गुरु से आंतरिक सान्निध्य, श्री गुरु के लिए सर्वस्व का त्याग करना इत्यादि गुण मुझे सीखने के लिए मिले ।’
– डॉ. राहुल दवंडे, नारायणगांव, महाराष्ट्र. (२०.६.२०२०)