बलात्कार पीडिता पर अन्याय करनेवाला गुवाहाटी उच्च न्यायालय का निर्णय !
१. गुवाहाटी (असम) के ‘आईआईटी’ में पढनेवाले छात्र का उसी विद्यालय की छात्रा को बलात् मद्य पिलाना, उसे अचेतन कर उस पर बलात्कार करना और अभियुक्त पर अपराध प्रविष्ट होना
‘गुवाहाटी (असम) में ‘आईआईटी (इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी)’ महाविद्यालय में १९ वर्ष की युवती रासायनिक अभियांत्रिकी की (‘केमिकल इंजीनियरिंग’ की) शिक्षा ले रही थी । वह छात्रों के चुनाव में ‘सचिव’ पद पर चुनी गई । २८ मार्च २०२१ को इसी महाविद्यालय में बी.टेक. के अंतिम वर्ष में पढनेवाले उत्सव कदम नामक छात्र ने उसे ‘सचिव पद का दायित्व कैसे संभालें ?’ यह बताने के निमित्त से महाविद्यालय के परिसर में बुलाया । वहां उसने उसे बलात् मद्य पिलाया और उसके अचेतन हो जाने पर बलात्कार किया । पीडिता को दूसरे दिन भोर में ५ बजे सुध आई । तदनंतर उसे उपचार के लिए तथा फॉरेन्सिक वृत्तांत के लिए गुवाहाटी चिकित्सा महाविद्यालय में भरती किया गया । दूसरे दिन अर्थात २९ मार्च को उसे आईआईटी के चिकित्सालय में भरती किया गया । उपचारों के पश्चात ३ अप्रैल को उसे चिकित्सालय से छुट्टी दी गई । ५ अप्रैल को अभियुक्त के विरुद्ध बलात्कार, विष देकर क्षति पहुंचाना, मार डालने का प्रयास करना और आपराधिक षड्यंत्र करना, ये अपराध प्रविष्ट किए गए ।
२. सत्यशोधक समिति द्वारा अभियुक्त को बलात्कारी पाना, पुलिस द्वारा आरोपपत्र प्रविष्ट करने पर अभियुक्त का प्रतिभू आवेदन कनिष्ठ न्यायालय द्वारा अस्वीकार करना
इस प्रकरण में अभियुक्त के विरुद्ध पुलिस थाने में प्रथमदर्शी सूचना वृत्तांत प्रविष्ट किया गया । ‘आईआईटी’ महाविद्यालय द्वारा नियुक्त सत्यशोधक समिति ने सारे प्रकरण का अध्ययन किया । उसमें समिति ने पाया कि ‘अभियुक्त ने पीडिता पर बलात्कार किया और उसे विष देकर उसकी हत्या का प्रयास किया ।’ इस प्रकरण में पुलिस ने अभियुक्त के विरुद्ध अभियोग प्रविष्ट किया । तदनंतर अभियुक्त ने प्रतिभू के लिए न्यायालय में आवेदन दिया । उसने न्यायालय से विनती की, ‘इस प्रकरण का अन्वेषण पूरा होकर अभियोग पत्र भी प्रविष्ट हुआ है । इसलिए मुझे कारागृह में रखने का कोई भी कारण नहीं है । अन्यथा मेरी पढाई और ‘करियर’ संकट में पडेगा । इस कारण मुझे प्रतिभू दिया जाए ।’ परंतु कनिष्ठ न्यायालय ने इसे अस्वीकार किया ।
३. गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा ‘आरोपी बुद्धिमान है’, ऐसा कारण देकर उसका प्रतिभू स्वीकार करना; परंतु पीडिता की बुद्धिमत्ता की अनदेखी करना
३ अ. अभियुक्त के प्रतिभू का प्रचंड विरोध होना, सर्वोच्च न्यायालय के १० से अधिक अभियोगों के संदर्भ देने पर भी उच्च न्यायालय द्वारा प्रतिभू पर छोडना : अभियुक्त प्रतिभू के लिए गुवाहाटी उच्च न्यायालय में गया; किन्तु शासन की ओर से उसके प्रतिभू का प्रचंड विरोध किया गया । शासन पक्ष ने बताया, ‘चिकित्सा प्रमाण और सत्यशोधन समिति के प्रतिवेदन से यह स्पष्ट होता है कि अभियुक्त ने पीडिता पर बलात्कार किया है ।’ शासन-पक्ष ने आगे कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के अनेक महत्त्वपूर्ण निर्णय हैं । उनमें केवल अभियोग प्रविष्ट हुआ है और अन्वेषण पूरा हो गया है; इस आधार पर अभियुक्त को प्रतिभू नहीं दिया गया । इस समय अभियुक्त को प्रतिभू न मिले, इसके लिए शासन पक्ष की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के १० से अधिक प्रकरणों के संदर्भ दिए गए; तब भी उच्च न्यायालय ने अभियुक्त को प्रतिभू पर छोड दिया ।
३ आ. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयपत्रों पर गुवाहाटी उच्च न्यायालय का चर्चा न करना और केवल अभियुक्त की बुद्धिमत्ता का विचार कर उसे प्रतिभू पर छोडना : दुर्भाग्य की बात यह है कि शासन की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के १० से अधिक प्रकरणों का संदर्भ दिया गया था, उनमें से एक भी निर्णयपत्र पर गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने चर्चा नहीं की, अर्थात उनपर विचार भी नहीं किया । ज्येष्ठ न्यायालय द्वारा किसी विषय पर मत व्यक्त करने पर वह निचले न्यायालय के लिए बंधनकारी होता है । इस कारण उन्हें संबंधित विषय की दृष्टि से यह देखना पडता है, ‘वह मत योग्य है अथवा अयोग्य ।’ ऐसा न कर और एक भी निर्णयपत्र का अपने निर्णयपत्र में संदर्भ न लेकर केवल ‘अभियुक्त बुद्धिमान और चतुर है, वह देश का भविष्य है’, ऐसे कारण देकर उसे प्रतिभू पर छोडा गया । यह अनुचित है ।
३ इ. विधिनियमों के लिए सभी समान होते हुए भी पीडिता की बुद्धिमत्ता की उपेक्षा करना : पीडिता भी उसी महाविद्यालय में अभियांत्रिकी की छात्रा थी । तो उसकी बुद्धिमत्ता की उपेक्षा क्यों की गई ? अभियुक्त को वलयांकित, खिलाडी, राजकीय, अभिनेता, उद्योगपति ऐसे मापदंड लगाना अयोग्य है । विधिनियमों के सामने सभी समान हैं । आजकल ऐसे अपराध बडी संख्या में हो रहे
हैं । इससे लडकियों और महिलाओं का जीवन संकट में है ।
३ ई. अत्याचार के विषय पर बोलते समय प्रतिभू की आवश्यकता न होना : सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के निर्णय बताते हैं कि प्रतिभू देते समय प्रत्येक न्यायालय उनके समक्ष प्रस्तुत अभियोगपत्र, चिकित्सा प्रतिवेदन, पीडिता का क्रिमिनल प्रोसिजर कोड धारा १६१ और १६४ के अंतर्गत (स्टेटमेंट) कथन, उसकी कनिष्ठ न्यायालय के सामने दी गई साक्ष आदि सब जांचे । जब उसपर हुए अत्याचार पर बोल रहे हैं, तब ऐसे में प्रतिभू देने की आवश्यकता नहीं ।
४. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बताए महिलाओं पर अत्याचारों के विषय में बताए मार्गदर्शक तत्त्वों को गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा भूलना
वर्ष २०१८ में ‘अपर्णा विरुद्ध मध्य प्रदेश राज्य’ प्रकरण में निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था, ‘कनिष्ठ न्यायालय और उच्च न्यायालय बलात्कार के अथवा महिलाओं पर यौन अत्याचार के प्रकरण में हास्यास्पद नियम बनाकर प्रतिभू देते हैं ।’ उस समय सर्वाेच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा था, ‘एक महिला के लिए उसका शरीर एक मंदिर है और उसका अनादर करना दंडनीय है । इसलिए अभियुक्त को प्रतिभू देना आवश्यक नहीं ।’ इससे भी बढकर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सभी न्यायालय, शासकीय अधिवक्ता, अभियुक्तों के अधिवक्ता, विधि महाविद्यालय में पढनेवाले छात्रों के लिए शिविर आयोजित करो और उन्हें ऐसे संवेदनशील विषय पर किस प्रकार कार्यवाही करें, यह पढाओ; किन्तु ‘गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने तीन वर्षों में ही इसे भुला दिया’, ऐसा कहना पडेगा ।
५. शासन आगे आकर पीडिता के हित की रक्षा करे !
सच में तो घृणास्पद अभियोगवाले अभियुक्त को प्रतिभू न मिले तथा उसे अधिक से अधिक कडा दंड मिले, इसके लिए शासन आगे आए और सर्वाेच्च न्यायालय में जाकर पीडिता के अधिकारों की रक्षा करे । इससे समाज में अपनेआप संदेश जाएगा कि जो महिलाओं पर अत्याचार करेगा, चाहे वह वलयांकित या प्रतिष्ठित महाविद्यालय में पढनेवाला बुद्धिमान छात्र हो, तो भी उसे प्रतिभू नहीं मिलेगी ।
हिन्दू राष्ट्र में महिलाओं का सम्मान होगा; क्योंकि तब ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।’, (जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता वास करते हैं) यह नारा होगा ।
‘श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।’
– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, संस्थापक सदस्य, हिन्दू विधिज्ञ परिषद और अधिवक्ता, मुंबई उच्च न्यायालय. (२९.८.२०२१)