केरल के कन्नूर विश्वविद्यालय में पू. गोळवलकर गुरुजी और स्वतंत्रता वीर सावरकर के पुस्तकों में निहित भाग सिखाया नहीं जाएगा !
माकपा सरकार के दबाव का परिणाम !
माकपा सरकार का हिन्दूद्वेष ! केवल द्वेष भावना से राष्ट्र पुरुषों के विचारों को अस्वीकार करनेवाले लोग क्या कभी सर्वसमावेशी हो सकते हैं ? – संपादक
कन्नूर (केरल) – कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति गोपीनाथ रवींद्रन् ने यह जानकारी दी है, कि स्नातकोत्तर शिक्षा ले रहे छात्रों को तीसरे सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक पू. गोळवलकर गुरुजी और हिन्दू महासभा के नेता स्वतंत्रता वीर सावरकर के पुस्तकों में निहित भाग सिखाया नहीं जाएगा । तीसरे सत्र के पाठ्यक्रम में, पू. गोळवलकर गुरुजी के ‘बंच ऑफ थॉट्स’ एवं स्वतंत्रता वीर सावरकर के ‘हिन्दुत्व : हू इज हिन्दू ?’ पुस्तक में समाहित कुछ भाग अंतर्भूत किया गया था ।
छात्र संघ बताते हैं कि यूनिवर्सिटी ने गोलवलकर की 'बंच ऑफ थॉट्स' समेत कई किताबों और सावरकर की 'हिंदुत्व: हू इज अ हिंदू?' से कुछ हिस्सों को तीसरे सेमेस्टर के छात्रों के पाठ्यक्रम में शामिल किया था।https://t.co/qrG479MHEK
— ऑपइंडिया (@OpIndia_in) September 17, 2021
१. कुलपती रवींद्रन् ने बताया, कि अब पाठ्यक्रम में बदलाव कर उसे छात्रों को सिखाया जाएगा । राज्य सरकार द्वारा गठित २ सदस्यीय विशेष समिति ने विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम को बदलने का निर्देश दिया था । अब यह बदलाव कर पाठ्यक्रम को विवरण समिति के पास भेजा जाएगा ।
२. केरल के कुछ छात्र संगठनों ने नए पाठ्यक्रम का विरोध किया था । उन्होंने इसे भगवाकरण करने का प्रयास होने का आरोप लगाया था । (ये छात्र संगठन वामपंथियों के हैं, इसे अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है ! – संपादक) उसके उपरांत मुख्यमंत्री पिनराई विजयन् ने भी इस संदर्भ में अपना मत व्यक्त करते हुए कहा था कि, ‘जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम से दूर रहने का प्रयास किया, ऐसे नेताओं और उनके विचारों का महिमा मंडन नहीं किया जाएगा ।’ (स्वतंत्रता वीर सावरकर ने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्रकार्य हेतु समर्पित किया, तो पू. गोळवलकर गुरुजी ने भी राष्ट्रोत्थान का कार्य किया । ऐसा होते हुए भी ऐसे वक्तव्य देनेवालों को ‘स्वतंत्रतासंग्राम में वामपंथियों का क्या योगदान था ?’, इसका उत्तर देना चाहिए ! – संपादक) उसके कारण ही यह बदलाव किए जाने के लिए बोला जा रहा है ।
३. कांग्रेस के नेता शशी थरूर ने वामपंथी सरकार के इस निर्णय का विरोध किया है । उन्होंने कहा, “किसी राजनीतिक दल की राजनीति के लिए बौद्धिक स्वतंत्रता की बलि नहीं चढनी देनी चाहिए । मैने मेरी पुस्तक में स्वतंत्रता वीर सावरकर और पू. गोळवलकर के संदर्भ की जानकारी और उसका खंडन भी किया है ।” कुछ दिन पूर्व, थरूर ने फेसबुक पोस्ट कर कहा था कि, “हमने सावरकर और गोळवलकर के विचारों को ही जान नहीं लिया, तो हम उनका खंडन कैसे करेंगे ?” (थरूर जैसे हिन्दूद्वेषियों का प्रतिवाद करने हेतु, हिन्दू धर्मप्रेमियों में वैचारिक सुस्पष्टता उत्पन्न होने की आवश्यकता है । हिन्दू धर्म के जाज्वल्य विचारों से ही थरूर और उनके धर्मनिरपेक्षतावादी गिरोह द्वारा फैलाए जा रहे वैचारिक आतंकवाद पर विजय प्राप्त करना संभव है ; इसे जान लीजिए ! – संपादक)